शनिवार, 10 अगस्त 2013

152. भगत सिंह क विचारों को सरकारी मान्यता?


आखिरकार भारत सरकार ने अमर शहीद भगत सिंह की मुखाकृति वाले  पाँच रुपये के सिक्के को जारी कर ही दिया।
इसे क्या समझा जाय- हमारी सरकार ने भगत सिंह के विचारों को मान्यता देना शुरु कर दिया? 
अगर ऐसा ही है, तो फिर लगे हाथ शहीदे-आजम के विचारों को भी जान लिया जायः-

भगत सिंह का एक आलेख साप्ताहिक "मतवाला" (वर्ष-2, अंक- 38) में 16 मई 1925 को बलवन्त सिंह के नाम से प्रकाशित हुआ था. "युवक" शीर्षक वाले इस आलेख में अमेरिका के एक युवक दल के नेता पैट्रिक हेनरी का उल्लेख करते हुए भगत सिंह लिखते हैं:

"जब ऐसा सजीव नेता है, तभी तो अमेरिका के युवकों में यह ज्वलन्त घोषणा करने का साहस भी है कि 'We believe that when a Government becomes a destructive of the natural right of man, it is the man's duty to destroy that Government.' अर्थात् अमेरिका के युवक विश्वास करते हैं कि जन्मसिद्ध अधिकारों को पद-दलित करने वाली सत्ता का विनाश करना मनुष्य का कर्तव्य है.
"ऐ भारतीय युवक! तू क्यों गफलत की नीन्द में पड़ा बे-खबर सो रहा है. उठ, आँखें खोल, देख, प्राची दिशा का ललाट सिन्दुर-रंजित हो उठा. अब अधिक मत सो. सोना हो, तो अनन्त निद्रा की गोद में में जाकर सोता रह. कापुरुषता की क्रोड़ में क्यों सोता है? माया-मोह-ममता का त्याग कर गरज उठ-
      'Farewell Farewell My true Love
            The army is on move,
            And if I stayed with you Love,
            A coward I shall prove.'
            "तेरी माता, तेरी प्रातःस्मरणीया, तेरी परम वन्दनीया, तेरी जगदम्बा, तेरी अन्नपूर्णा, तेरी त्रिशूलधारिणी, तेरी सिंहवाहिनी, तेरी शस्यश्यामांचला आज फूट-फूट कर रो रही है. क्या उसकी विकलता तुझे तनिक भी चंचल नहीं करती? धिक्कार है तेरी निर्जीवता पर! तेरे पितर भी नतमस्तक हैं इस नपुंसकत्व परक़ यदि अब भी तेरे किसी अंग में कुछ हया बाकी हो, तो उठकर माता के दूध की लाज रख, उसके उद्धार का बीड़ा उठा, उसके आँसुओं की एक-एक बून्द की सौगन्ध ले, उसका बेड़ा पार कर और बोल मुक्त कण्ठ से- वन्देमातरम! 
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भगत सिंह के आलेख वाला अंश : "अहा जिन्दगी" (अगस्त'2013) से साभार 


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