बुधवार, 31 दिसंबर 2014

189. नये साल की (अ)शुभकामना


       साथियों, जय हिन्द। जैसा कि मैंने तय किया है, 2014 के बाद देश-दुनिया-समाज के बारे में सोच-विचार करना नहीं है। करना भी है, तो उसे अभिव्यक्ति नहीं देनी है। यानि मेरे इस ब्लॉग "देश-दुनिया" में अब लिखना बन्द। निम्नलिखित (कविता जैसी) पंक्तियों को इस ब्लॉग का अन्तिम पोस्ट माना जा सकता है।
       हालाँकि अपने, अपनों तथा अपने आस-पास के बारे में कभी-कभार मैं लिखता रहूँगा- अपने दूसरे ब्लॉग "कभी-कभार" में। और हाँ, खुद को अनुवाद के काम में व्यस्त रखूँगा।
       इति, जय हिन्द।

भगवान करे
नया साल बहुत ही अशुभ
बहुत ही अमंगलमय साबित हो
इस देश के लिए

बैंक, रेलवे, पोस्ट ऑफिस से लेकर
सेना, पुलिस, न्यायपालिका तक का
निजीकरण हो जाय।
हरेक सरकारी विभाग
सिर्फ, सिर्फ और सिर्फ
"मुनाफे" के लिए काम करे।

दुनिया के लिए यह देश
सिर्फ एक "बाजार" बनकर रह जाय
और भारत सरकार बन जाय-
गवर्नमेण्ट ऑव इण्डिया प्राइवेट लिमिटेड!
जिसमें पूँजी लगी हो
अम्बानी-अडाणी से लेकर
पेप्सी और कोका कोला तक की।

देश की निन्यानबे प्रतिशत पूँजी एवं संसाधनों पर
कब्जा हो जाय एक प्रतिशत ताकतवर लोगों का
और दाने-दाने को मोहताज हो जायें आम लोग।

इससे भी ज्यादा भयानक हो
इसका अगला साल
और फिर उससे भी भयानक हो
उसका अगला साल।
ऐसे ही चलता ही रहे
तब तक...

...जब तक कि इस देश के लोग
इस देश के आम नागरिक
और बेशक, सेनाओं के आम सैनिक
शोषण-दोहन-उपभोग पर आधारित
सड़ी-गली बदबू मारती इस औपनिवेशिक व्यवस्था को
दफनाकर या जलाकर
इसके स्थान पर
सुभाष-भगत के पदचिह्नों पर चलकर
समता-पर्यावरणमित्रता-उपयोग पर आधारित
एक नयी व्यवस्था को अपनाने के लिए
राजी नहीं हो जाते


आमीन... एवमस्तु... 

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