शुक्रवार, 30 मई 2014

172. यह प्रतिशत की मारामारी!


       भाड़ में जाये यह 95-96-97 प्रतिशत! इस परसेण्टेज के फितूर ने बच्चों से उनका नैसर्गिक बचपन और किशोरों से उनका स्वाभाविक अल्हड़पन छीन लिया है। 14-15 की उम्र में ही हमारे किशोर 34-35 के अधेड़-जैसे हो गये हैं। करियर, करियर, करियर! लानत है ऐसी करियर और उसकी तैयारियों पर, जो हमारे नौनिहालों को खेल के मैदानों से दूर करके उनकी आँखों में मोटे-मोटे शीशों वाले चश्मे चढ़ा देती है!
       पता नहीं, इस दिशा में कोई शोध हुआ है या नहीं, मगर मुझे लगता है, 10वीं-12वीं में 98-99 प्रतिशत अंक लाने वाले ये किशोर आगे चलकर कभी देश के जिम्मेदार नागरिक नहीं बनते होंगे। अगर ये डॉक्टर, इंजीनियर, अफसर वगैरह बन भी गये, तो सारी जिन्दगी इनकी बस निन्यानबे के फेर में बीतती होगी। अपने माता-पिता, अपने यार-दोस्त, अपने समाज, अपने देश का कोई भी कर्ज चुकाने की कोशिश ये नहीं करते होंगे। इन्सानीयत तो इनके अन्दर खोजने से भी नहीं मिलती होगी। यह कब की मर चुकी होगी इनके अन्दर घर-परिवार, दोस्त-समाज से कटकर अन्धाधुन्ध पढ़ाई करते-करते।  
       जो कोई साहित्य-कला, खेल-कूद से लेकर विज्ञान-प्रौद्योगिकी तक के क्षेत्र में देश का नाम रोशन करता है, उनका बायोडाटा उठा कर देख लिया जाय, 10वीं-12वीं में वे औसत या औसत से थोड़ा ही ऊपर रहे होंगे। बेशक, अभी यह मेरा अनुमान है, मगर शोध होने पर इसके सही होने की सम्भावना ही ज्यादा है। देश का नाम रोशन करने की बात जाने दीजिये, जिम्मेदार नागरिकों का भी बायोडाटा उठा कर देख लिया जाय, जो समाज में जनप्रिय होते हैं, वे भी अपने स्कूली दिनों में औसत ही रहे होंगे।
       हाँ, अगर कोई बच्चा असाधारण रुप से प्रतिभाशाली है और खेलते-कूदते हुए वह 90-95 प्रतिशत अंक ले आता है, तो अलग बात है। वर्ना ज्यादातर की स्थिति तो ऐसी है कि उनके माता-पिता उन्हें एक मानसिक "प्रेशर कूकर" में डाल देते हैं।
       ये बड़े-बड़े स्कूल, जहाँ बच्चों को मिलीटरी टाईप अनुशासन में रखा जाता है- अगर कोढ़ हैं देश पर, तो ये बड़े-बड़े कोचिंग इंस्टीच्यूट वाले कोढ़ में खाज हैं!

       पता नहीं, कभी हमारी शिक्षा व्यवस्था के दिन कभी सुधरेंगे या नहीं...        

रविवार, 25 मई 2014

171. नोस्त्रादमूस की भविष्यवाणी तथा नरेन्द्र मोदी


       20-22 साल पहले नोस्त्रादमूस की भविष्यवाणियों पर एक किताब पढ़ी थी। किताब के अनुसार, नोस्त्रादमूस कहते हैं कि अगर उन्होंने अपनी इन भविष्यवाणियों को सीधे-सपाट तरीके से तथा क्रम से लिखा, तो उनका जीना दूभर हो जायेगा। इसलिए वे क्रम बिगाड़कर, संकेतों का प्रयोग करते हुए इन्हें लिख रहे हैं। वैसे भी, चूँकि उस जमाने में हवाई जहाज, पनडुब्बी, मिसाइल इत्यादि नहीं बने थे, इसलिए इनके लिए संकेतों का इस्तेमाल होना ही था।
       खैर। बात भारत की। किताब के अनुसार, नोस्त्रादमूस ने "तीन तरफ पानी से घिरे" जिस देश का जिक्र किया है, वह भारत है। इसी प्रकार, "एक समुद्र के नाम पर पुकारे जाने वाले" जिस धर्म का जिक्र किया है, वह हिन्दू धर्म है।
       तो इस देश तथा इस धर्म से जुड़ी कुछ भविष्यवाणियों की व्याख्या मुझे याद हैं, जो उस किताब में थीं।
       इस देश में एक ऐसे राजा का जिक्र है, जो "आकाश से उतरकर" राजा बनेगा। इसे राजीव गाँधी से जोड़ा गया था।
       आगे चलकर एक "नीली पगड़ी वाले राजा" का जिक्र था, जो शुरु में नाम कमायेगा, मगर बाद में बहुत बदनाम हो जायेगा। जैसा कि मैंने बताया, यह किताब मैं 1992-94 के बीच कभी पढ़ रहा था, तो उस वक्त मेरी समझ में नहीं आया था कि पगड़ी वाला राजनेता भला कौन है, जिसके प्रधानमंत्री बनने की सम्भावना हो? हरकिशन सिंह सुरजीत के लिए कोई सम्भावना नजर नहीं आ रही थी और डॉ. मनमोहन सिंह के नाम पर तो विचार करना भी मुश्किल था- प्रथम श्रेणी की राजनीति में वे कहीं ठहरते ही नहीं थे!  
       मगर देखिये, कि प्रायः 10 साल बाद वक्त बदला और डॉ. सिंह प्रधानमंत्री बने। आर्थिक सुधारों को "मानवीय चेहरा" देने की बात कहकर देश-दुनिया में काफी वाह-वाही बटोरी उन्होंने, मगर अन्तिम दिनों में एक "खड़ाऊँ" प्रधानमंत्री के रुप में तथा घोटालेबाजों को प्रश्रय देने वाले के रुप में काफी बदनाम हुए।
       इसके बाद एक ऐसे राजा का जिक्र है, जिसके राज में हिन्दू धर्म की पताका यूनान तक लहरायेगी। ठीक से याद नहीं, पर शायद इसी राजा के बहुत कठोर हो जाने का भी जिक्र था किताब में।
       कल नरेन्द्र मोदी जी प्रधानमंत्री पद का शपथ लेंगे। उन्हें जैसा अप्रत्याशित बहुमत मिला है संसद में, उसे देखकर तो यही लगता है कि इस बार के चुनाव में हिन्दुओं ने थोड़ी-सी एकजुटता दिखायी है!
       ...तो क्या यह मान लिया जाय, कि नरेन्द्र मोदी ही नोस्त्रादमूस की भविष्यवाणी में वर्णित "तीन तरफ पानी से घिरे" उस देश के राजा हैं, जिनके राज में "एक समुद्र के नाम पर पुकारे जाने वाले" धर्म का झण्डा दुनिया में दूर-दूर तक लहरायेगा...?  

शुक्रवार, 16 मई 2014

170. जनादेश-2014: नरेन्द्र मोदी जी को बधाई!


       देश की जनता काँग्रेस के कुशासन (महँगाई, भ्रष्टाचार, घोटाले जिसके परिणाम हैं) से त्रस्त थी ही, लगता है, केन्द्र में क्षेत्रीय दलों के अनावश्यक हस्तक्षेप से भी वह झल्लायी हुई थी। लो अब! भ्रष्ट काँग्रेस को पटखनी देने के साथ-साथ जनता ने क्षेत्रीय दलों को भी चारों खाने चित्त कर दिया! करो अब हस्तक्षेप केन्द्र में! अखबारों/चैनलों के बुद्धीजीवि अक्सर कहा करते थे कि अब तो गठबन्धन सरकारों का ही दौर है! अब वे भी देखें कि जनता अब तानाशाही किस्म की सरकार पसन्द करने लगी है। बिना विपक्षी दल की संसद को अब तानाशाही सरकार नहीं, तो और क्या कहा जाय? कहा जा सकता है कि बड़े अरसे बाद संघ की मुराद पूरी हुई है।
       ***
       इस अवसर पर नरेन्द्र मोदी जी को बधाई देने के साथ-साथ मैं नेताजी सुभाष का एक कथन उद्धृत करना चाहूँगा, जिसे उन्होंने आजाद हिन्द फौज की कमान थामने के बाद सैनिकों को सम्बोधित करते हुए कहा था:
...जैसा कि मैंने प्रारम्भ में कहा, आज का दिन मेरे जीवन का सबसे गर्व का दिन है। गुलाम लोगों के लिए इससे बड़े गर्व, इससे ऊँचे सम्मान की बात और क्या हो सकती है कि वह आज़ादी की सेना का पहला सिपाही बने। मगर इस सम्मान के साथ बड़ी जिम्मेदारियाँ भी उसी अनुपात में जुड़ी हुई हैं और मुझे इसका गहराई से अहसास है। मैं आपको भरोसा दिलाता हूँ कि अँधेरे और प्रकाश में, दुःख और खुशी में, कष्ट और विजय में मैं आपके साथ रहूँगा।..."
       जाहिर है, बड़ी सफलता बड़ी जिम्मेवारी लेकर आती हैनीतिश कुमार अपनी ऐसी ही सफलता को पचा नहीं पाये। मोदी जी उनके मुकाबले काफी परिपक्व हैं। आशा है, इस सफलता के बाद और ज्यादा जिम्मेदार बन जायेंगे।
       ***
       मोदी जी के मन में क्या है, पता नहीं। अगर वे 100 करोड़ "भारतीयों" के लिए नीतियाँ बनाते हैं, तो वे एक महान प्रधानमंत्री कहलायेंगे, और अगर वे 10-20 करोड़ "इण्डियन्स" के लिए ही नीतियाँ बनाते रह जाते हैं (जो गलती वाजपेयी जी ने की थी), तो उनसे ज्यादा- मेरे हिसाब से- यह देश की बदनसीबी होगी। आखिर किस पर भरोसा करें भारतीय?
       ***

       अन्त में, हमारे झारखण्ड के 14 में से 13 सीटों को भाजपा ने जीता है। (शिबू सोरेन तक हार गये!) एक ही सीट वह हारी है, और दुर्भाग्य से, यह वही संसदीय सीट है, जिसमें मैं रहता हूँ... अफसोस! 
*****
       पुनश्च: 
16 मई की रात टीवी पर समाचार चैनलों द्वारा दिखाये गये आँकड़ों के आधार पर मैंने यह लिखा कि झारखण्ड में 14 में 13 सीटें भाजपा को मिली हैं। अगली सुबह पता चला कि 13 नहीं, 12 सीटें मिली हैं और शिबू सोरेन जीते हैं। जाहिर है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जल्दीबाजी की होड़ में में ऐसी गलतियाँ करता है। इस मामले में प्रिण्ट मीडिया ज्यादा गम्भीर है- उसका सम्पादन विभाग ज्यादा मुस्तैद रहता है। ...रेडियो की तो पूछिये ही मत- उसके शब्दों में वाकई "आकाशवाणी"-सा असर होता है। वहाँ तो एक शब्द भी गलत प्रसारित नहीं होना चाहिए! रेडियो वाले अपनी इस विश्वसनीयता को बनाये रखने में सफल भी रहे हैं।
*** 
पुनश्च-2: (18 मई को फेसबुक पर मैंने जो टिप्पणी की-)
भारत के संविधान की रक्षा करने तथा सरकारी आलमारियों की गोपनीयता बनाये रखने की शपथ लेने से अगर कोई प्रधानमंत्री इन्कार कर दे, तो देश का उत्थान पर्व उसी क्षण से प्रारम्भ हो जायेगा! अभी जो बहुमत मिला है, उसके तहत मोदी जी चाहें, तो ऐसा कर सकते हैं. मेरे हिसाब से "संविधान" तथा "गोपनीयता" शब्दों का इस्तेमाल किये बिना उन्हें कुछ वैसा ही शपथ लेना चाहिए, जैसाकि नेताजी सुभाष ने लिया था: “ईश्वर के नाम पर मैं यह पवित्र शपथ लेता हूँ कि मैं भारत को और अपने अड़तीस करोड़ देशवासियों को आजाद कराऊँगा। मैं सुभाष चन्द्र बोस, अपने जीवन की आखिरी साँस तक आजादी की इस पवित्र लड़ाई को जारी रखूँगा। मैं सदा भारत का सेवक बना रहूँगा और अपने अड़तीस करोड़ भारतीय भाई-बहनों की भलाई को अपना सबसे बड़ा कर्तव्य समझूँगा। आजादी प्राप्त करने के बाद भी, इस आजादी को बनाये रखने के लिए मैं अपने खून की आखिरी बूँद तक बहाने के लिए सदा तैयार रहूँगा।”
हालाँकि उम्मीद कम ही है कि ऐसा कुछ होगा... 

रविवार, 11 मई 2014

169. ब्रूटस, यू टू?


       भ्रष्ट उच्चाधिकारियों को बचाने वाली संविधान की एक धारा को सर्वोच्च न्यायालय ने असंवैधानिक ठहराया, तो अखबारों ने इस पर और भी जानकारियाँ दीं
       पता चलता है कि न्यायपालिका ने इसे 1997 में खारिज किया था। तब 1998 में अध्यादेश के जरिये न्यायपालिका के निर्णय को निष्प्रभावी कर दिया गया था। अदालत ने फिर हस्तक्षेप किया, तब जाकर अध्यादेश हटा।
       यहाँ तक तो बात ठीक है, क्योंकि यह काँग्रेस की सरकार थी, जिसने यह अध्यादेश लाया था। मगर ताज्जुब तो यह जानकर हुआ कि 2003 में सरकार ने पुलिस एक्ट की उस धारा को बाकायदे कानून बनाकर फिर से लागू कर दिया.... और यह सरकार थी वाजपेयी जी की!!!
       ***
       बात निकलती है, तो दूर तलक जाती है।
       पिछले दिनों मुझे जानकारी मिली थी कि 1961 से 1996 तक जितनी भी समितियाँ बनी थीं, सबने मण्डपम और धनुषकोडि के बीच की जमीन को काटते हुए नहर बनाने का सुझाव दिया था... किसी ने भी "रामसेतु" को क्षतिग्रस्त करने की बात नहीं कही थी!
       मगर 2001 में भारत सरकार ने आश्चर्यजनक एवं रहस्यमयी तरीके से "रामसेतु" को तोड़ते हुए नहर बनाने का आदेश दिया.... और यह सरकार थी वाजपेयी जी की!!!
       ***
       बहुत दिनों पहले कहीं पढ़ा था कि टिहरी बाँध के निर्माण के दौरान गंगा मैया को 8 घण्टों के लिए बहने से रोक दिया गया था! लाखों साल से बहती जिस पवित्र नदी को रोकने का दुस्साहस अँग्रेज नहीं कर पाये थे, उसे भारतीयों की एक सरकार ने कर दिखाया- और उस सरकार के नेता थे- वाजपेयी जी!!!
       ***

       व्यक्तिगत रुप से मैं किसी के भी प्रति दुर्भावना नहीं रखता। मगर दुर्भाग्य, कि अपने मन की बातों को सीधे-सपाट ढंग से कहना मेरा स्वभाव है... शायद। कृपया बुरा न मानें। अगर मेरी जानकारी गलत साबित हुई, तो मैं तत्क्षणात् क्षमायचना करूँगा। 

168. "जज साहब, सारा संविधान ही असंवैधानिक है!"


       माननीय जज साहब,
       कुछ समय पहले आपको जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(4) असंवैधानिक नजर आयी थी, जो सजायाफ्ता जनप्रतिनिधियों को एक तरह से सुरक्षा प्रदान करती थी
       अभी आपको भ्रष्ट उच्चाधिकारियों को सुरक्षा प्रदान करने वाली धारा 6(1) (दिल्ली स्पेशल पुलिस स्टेब्लिशमेण्ट एक्ट) असंवैधानिक नजर आयी है।
       (हालाँकि मुझे यह समझ में नहीं आ रहा है कि संविधान में ही लिखी गयी कोई बात भला असंवैधानिक कैसे हो सकती है!? चलिए, मान लेता हूँ कि आपका आशय है कि ये धारायें "आदर्शवादिता", "मर्यादा", "नैतिकता" इत्यादि के खिलाफ है।)
       मैं संतुष्ट हूँ कि अँग्रेजों के जाने के मात्र 6-7 दशकों बाद ही आपको कम-से-कम दो धारायें असंवैधानिक नजर आ गयीं! आशा है, यह तरक्की जारी रहेगी और 6-7 शताब्दियाँ बीतते-बीतते आपलोगों को यह अहसास जरूर हो जायेगा कि यह जो अपना महान संविधान है, वह सारा-का-सारा संविधान ही असंवैधानिक है! क्योंकि इसका दो-तिहाई हिस्सा "1935 के अधिनियम" पर आधारित है। इस अधिनियम को अँग्रेजों ने किसी स्वतंत्र एवं सम्प्रभु राष्ट्र को खुशहाल स्वावलम्बी एवं शक्तिशाली बनाने के लिए नहीं गढ़ा था, बल्कि दुनिया के सबसे बड़े गुलाम देश पर राज करने के लिए बनाया था!
       बेशक, बाद में दुनियाभर के संविधानों की कुछ अच्छी बातों को कट करके इसमें पेस्ट जरूर किया गया था, मगर उनमें जो सबसे महत्वपूर्ण था- "नीति-निदेशक तत्व"- उसे बाध्यकारी बनाया ही नहीं गया! यानि सरकारें इन अच्छी बातों का पालन करे या न करे, कोई फर्क नहीं पड़ता। कहते हैं कि गाँधीजी कहीं संविधान के बारे में कहीं उल्टा-सीधा न कह दें- इस डर से बिल्कुल अन्तिम क्षणों में इसे जोड़ा गया था- वर्ना ऐसी अच्छी बातें जोड़ने का कोई इरादा अम्बेदकर साहब का नहीं था। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद-जैसों का दवाब पड़ा था अन्त में, तब जोड़ा गया।  
       कुछ गैर-भारतीय अवधारणायें भी जबरन इसमें घुसेड़ दी गयीं- जैसे "धर्मनिरपेक्षता", जो कि एक "नकारात्मक" अवधारणा है। भारतीय अवधारणा "सर्वधर्म समभाव" तथा "वसुधैव कुटुम्बकम" को नजरअन्दाज किया गया, जो कि "सकारात्मक" अवधारणायें हैं।
       15 अगस्त 1945 के बाद भी लॉर्ड माउण्टबैटन सालभर तक भारत के वायसराय बने रहे- यह कैसी स्वतंत्रता, कैसी सम्प्रभुता थी?
       जज साहब, इस देश की शासन प्रणाली (जिसमें बिना चुनाव लड़े एक व्यक्ति प्रधानमंत्री बन जाता है), यहाँ का प्रशासनिक ढाँचा, यहाँ की पुलिस व्यवस्था, यहाँ का सैन्य ढाँचा, यहाँ तक कि आपकी न्यायपालिका भी- सबके-सब असंवैधानिक है! बोलिये क्यों, क्योंकि "स्वतंत्र भारत की अन्तरिम सरकार" का गठन 1945 में ही हो चुका था- उसकी अपनी न्यायपालिका, अपनी राष्ट्रीय सेना, अपना बैंक, सबकुछ था- वही भारत की "राष्ट्रीय व्यवस्था" थी! यह जो व्यवस्था है, जिसे "सत्ता-हस्तांतरण की शर्तों" के तहत ज्यों-का-त्यों अपना लिया गया है, यह वास्तव में "औपनिवेशिक" व्यवस्था है, जिसमें एक पक्ष शासक होता है, दूसरा गुलाम; जिसका मकसद होता है- देश की प्राकृतिक संसाधनों की लूट!

       आज आप मुझे जेल भेज सकते हैं देशद्रोह के आरोप में, मगर 6-7 शताब्दियों के बाद आप ही की न्यायपालिका को इस कृत्य के लिए माफी भी माँगेगी पड़ेगी- इतना जरूर ध्यान रखियेगा....