बुधवार, 1 मई 2013

133. ज्यादा खुश होने की जरुरत नहीं...



      केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो के निदेशक की स्वीकारोक्ति पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की गयी तल्ख टिप्पणियों से मैं खुद को जरा भी उत्साहित महसूस नहीं कर रहा हूँ कि कुछ बदलाव आयेगा, सीबीआई स्वतंत्र होगी, बड़ी मछलियाँ जेल जायेंगी, वगैरह-वगैरह
        करीब दो दशक पहले जब प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहा राव के खिलाफ गैर-जमानती वारण्ट जारी हुआ था (मामला 'चार सौ बीसी' तथा कुछ अन्य धाराओं का था- लखूभाई पाठक द्वारा आरोप लगाये गये थे); और आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में जयललिता को कारावास की सजा सुनायी गयी थी, तब भी देश का माहौल खुशनुमा हो चला था कि बस अब देश में बदलाव आने ही वाला है। तब 'अमर-उजाला' वालों ने मेरे एक पत्र को (पाठकों के पत्र स्तम्भ के अन्दर) 'बॉक्स' में प्रकाशित किया था, जिसमें मैंने लिखा था कि- "आज खुश होने वाले जल्दी ही यह शेर गुनगुनाते हुए पाये जायेंगे- "बड़ा शोर सुनते थे पहलू में जिगर का, जो चीरा, तो इक कतरा-ए-खूँ निकला!"'
       अपनी उसी बात पर मैं आज भी कायम हूँ। यह सब कुछ नहीं है, छलावा मात्र है, अँग्रेजी में जिसे कहते हैं- "आई वाश!"
       ...और कोयला घोटाले के दोषियों को सजा?????? हे भगवान, ऐसा तो सोचना भी इस देश में पाप होगा! "ड्राफ्ट, रिपोर्ट, हलफनामा" का खेल खेलते-खेलते ही 18-20 साल बीत जायेंगे.....
       मुझे नहीं लगता कि इस देश में न्यायपालिका "अभियुक्त दोषी है या नहीं"-इस मुद्दे पर कभी विचार करती है- वह हमेशा "गौण मुद्दों" पर वर्षों तक बहस करना पसन्द करती है। वर्ना 'दामिनी' के दरिन्दों को हफ्तेभर में ही सजा नहीं मिल जाती?
       हमने देखा नहीं है क्या, एक समय सर्वोच्च न्यायालय ने "संसद में नोट लहराने" वाले काण्ड पर सख्ती बरत कर जनता की कितनी वाहवाही लूटी थी! फिर क्या हुआ? जैसे ही अमर सिंह का नाम आया, सब ठण्डे बस्ते में। आज तक अमर सिंह से यह नहीं पूछा गया है कि आपको नोट किसने दिये थे?
       जेनरल वीके सिंह का मामला हम भूल गये क्या? एक ईमानदार सेनाध्यक्ष को सालभर पहले ही रिटायर कर दिया गया। सच्चाई कौन नहीं जानता है? हथियारों के एक दलाल ने उनके दफ्तर में घुसकर चुनौती दी थी कि या तो घूँस लीजिये, या फिर चलते बनिये!   
       ***
       यह सब डबल गेम है- जनता को लूटो भी और वह बगावत न कर बैठे, इसकी भी व्यवस्था साथ-साथ करते रहो- उसे खुशफहमी में रखो। सरकार हो या न्यायपालिका, सबकी-सब ब्रिटिश साम्राज्य, बल्कि "कम्पनी सरकार" का प्रतिनिधित्व कर रही हैं।
किसी को भी देश से मतलब नहीं कि है कि यह रसातल में जा रहा है! 

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