आज
के अखबार में मनेर (बिहार) की "चंचल" (19 वर्षीया युवती) तथा उसकी बहन "सोनम"
की कहानी पढ़कर जिस दुःख, जिस गुस्से का अनुभव किया, उसे मैं बयान नहीं कर सकता।
दोनों को बीते वर्ष 21 अक्तूबर को तेजाब से जला दिया गया था।
खासकर, चंचल उन दरिन्दों के निशाने पर थी- उसका चेहरा बुरी तरह से जल गया है।
उसकी जिस बात से मैंने सबसे ज्यादा बेचैनी
महसूस की, उसे मैं यहाँ अखबार से उद्धृत कर रहा हूँ:
"तब से अब तक चैन से नहीं सो पायी
हूं :
चंचल बताती है, जिन चार लड.कों (अनिल, घनश्याम, बादल और राज) ने मेरे साथ यह किया, वे रसूखदार हैं. जब वे मुझे छेड.ते थे और मैं उनको शिकायत करने की धमकी
देती थी, तो वे मुझसे कहा करते
थे कि तुम दलित हो. तुम हमारा कुछ भी बिगाड. नहीं सकती. हम तो छूट ही जायेंगे. आज
भी उनकी यह बात मेरे कानों में गूंजती है. उस रात से ले कर अब तक मैं एक भी रात
चैन से नहीं सोयी. हर रात को डर लगता है कि अभी कोई आयेगा और दोबारा मुझ पर तेजाब
फेंकेगा. कभी झपकी लग भी जाती है, तो मैं घबरा कर उठ जाती हूं. ऐसा लगता है कि वे जेल से छूट गये हैं और
मुझसे बदला लेने आ गये हैं. हर रात मेरी डर-डर कर बीतती है. उस दिन के बाद से दिन के वक्त भी छत पर जाने से डर लगता है. कभी-कभी लगता
है कि इससे तो अच्छा होता कि मर गयी होती. इतना दर्द, जलन, तकलीफ तो न सहनी पड.ती. न मैं बोल पा रही हूं.. न ठीक से खाना खा पा रही
हूं. खुल कर हंसना तो दूर की बात, मुस्कुरा भी तो नहीं सकती. जब भी टीवी में मुंहासे की क्रीम, गोरी होने की क्रीम, साबुन का विज्ञापन देखती हूं या कोई सुंदर लड.की
देखती हूं तो खूब रोना आता है मुझे. अब मैं बस उन लड.कों को सजा दिलाना चाहती हूं, जिन्होंने मेरी जिंदगी बरबाद कर दी. मैं चाहती
हूं कि लोग मेरी और मेरे जैसी लड.कियों के दर्द को समझे. मेरे साथ खडे. रहे और
मुझे न्याय दिलाएं. और ऐसे लड.कों के खिलाफ कोई एक्शन ले ताकि फिर किसी लड.की का
चेहरा मेरी तरह खराब न हो. मैं चाहती हूं कि सरकार हमारी मदद करे.
(नोट : इस घटना में
आरोपित राजकुमार व बादल फिलहाल जेल में हैं. मुख्य आरोपित अनिल कुमार को
नाबालिग होने के कारण बाल सुधार गृह, पटनासिटी में रखा गया है.)"
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मेरी
पत्नी अंशु को 24 अगस्त' 1987 की रात मेरठ के निकट गढ़मुक्तेश्वर में तेजाब से जला
दिया गया था। तब वह 11वीं की छात्रा थी। मैंने शादी उससे 9 साल बाद की, 1996 में। जहाँ तक मुझे याद है-
करीब एक-डेढ़ साल तक ऐसा होता था कि वह रात में नीन्द से अचानक जाग जाती थी, उठकर
बैठ जाती थी और मारे डर के वह काँपने और हाँफने लगती थी!
अखबार में चंचल की बात पढ़कर मुझे उन दिनों
की याद आ गयी। सोचता हूँ- 9 साल अंशु ने कैसे बिताये होंगे... किसी भी रात वह चैन
से सोयी होगी...?
अंशु का तो फिर भी आधा चेहरा जलने से बच
गया था, और वह काफी हिम्मती थी- वह कभी मायूस नहीं हुई, मगर चंचल का सारा चेहरा ही जल गया है। सोचता हूँ... क्या अपनी इस जिन्दगी
में उसे कभी चैन की नीन्द नसीब होगी...?
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बेहद शर्मनाक है यह सब...
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