एक तस्वीर अक्सर जेहन में उभरती है।
एक काल्पनिक चित्र!
एक स्त्री है, जिसे प्रकृति से चिरयौवन का
वरदान प्राप्त है। हजारों वर्षों तक वह मुस्कुराती रही- रेशमी कपड़ों में लिपटी,
सोने-चाँदी के आभूषणों से लदी...
पिछली कुछ शताब्दियों से उसकी दुर्दशा का
दौर चल रहा है। ...और अभी पिछले कुछ दशकों से तो वह बेचारी सिसक रही है... रुखे
बाल, शरीर पर चिथड़े... और सबसे भयानक बात- उसके शरीर पर सैकड़ों जोंक! मोटे-मोटे
जोंक, जो हर वक्त उस स्त्री का खून चूसते रहते हैं... बालों के हजारों जूँओं तथा
हाथ-पैरों पर लाखों चीलरों को तो खैर, जाने दीजिये- ये दीखते तो नहीं हैं, हालाँकि
खून ये भी चूस रहे हैं। मगर जोंक जो हैं, वे बड़ी मात्रा में उस स्त्री का खून चूस
रहे हैं... और उस स्त्री के सन्तानों को यह साफ-साफ दिखाई दे रहा है...
...मगर अफसोस! कि उसकी सन्तान उन जोंको को
अपनी माँ के शरीर से हटाना ही नहीं चाहते! उल्टे वे जहाँ-तहाँ से अपनी माँ के ही
शरीर के कपड़ों को फाड़ देते हैं, ताकि जोंको को खून चूसने के लिए नये-नये स्थान
मिलते रहें...
समझ में नहीं आता, उसकी सन्तानों की बुद्धि
कब खुलेगी? आखिर कब वे नमक छिड़केंगे जोंको पर? एक मामूली उपाय जोंको को मारने का,
उनसे छुटकारा पाने का...
...जब उनकी माँ मरणासन्न हो जायेगी- तब बुद्धि खुलेगी उसकी
सन्तानों की?
(साथियों, क्या बताना पड़ेगा कि वह स्त्री
कौन है और उसकी सन्तान कौन है?)
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