शनिवार, 7 जुलाई 2012

“रामसेतु” के बहाने कुछ सोच-विचार



      पूर्वाग्रहों से रहित होकर सोच-विचार करने पर हम पायेंगे कि रामसेतु एक प्राकृतिक संरचना ही होनी चाहिए। हजारों साल पहले जब समुद्र का जलस्तर एकाध मीटर नीचा रहा होगा, तब इस संरचना का बड़ा हिस्सा जल से बाहर रहा होगा। फिर भी, एक अच्छा-खासा बड़ा हिस्सा जल में डूबा हुआ होगा। 
     (टिप्पणी: I-SERVE की वेबसाईट http://serveveda.org के एक लेख Scientific Dating of Ramayan Era में बताया गया है कि  7000 से 7200 साल पहले समुद्र की सतह आज के मुकाबले 3 मीटर नीची थी. आज इस संरचना का ज्यादातर हिस्सा 3 मीटर ही डूबा हुआ है. यानि जब रामचन्द्रजी ने इस पुल से श्रीलंका पर चढ़ाई की थी, तब इसका ज्यादातर हिस्सा पानी से बाहर था- कम ही हिस्सा पानी में डूबा हुआ रहा होगा.)
      रामचन्द्रजी की सेना ने इन्हीं डूबे हुए हिस्सों पर पत्थरों को कायदे से जमाकर तथा कुछ खास तरीकों से बाँधकर इस प्राकृतिक संरचना के ऊपर एक प्रशस्त पुल तैयार किया होगा, जिससे होकर एक बड़ी सेना गुजर सके।
      जब नल और नील-जैसे इंजीनियरों की देख-रेख में सैनिक या मजदूर सही जगह पर पत्थरों को डाल रहे होंगे, तब ये पत्थर समुद्र की अतल गहराईयों में डूब नहीं जाते होंगे, बल्कि जल के नीचे की प्राकृतिक संरचना के ऊपर टिक जाते होंगे। इस प्रकार, पत्थरों की पहली, दूसरी, तीसरी, या चौथी परत डलते ही वे जल के ऊपर नजर आने लगते होंगे। आम सैनिकों या मजदूरों को यह किसी चमत्कार से कम नहीं लगता होगा कि पत्थर समुद्र की अतल गहराई में डूब नहीं रहे हैं। तभी से पत्थरों के तैरने की किंवदन्ति प्रचलित हो गयी होगी।
      हजारों वर्षों बाद लहरों के आघात से जमे-जमाये और बँधे हुए ये पत्थर अपनी जगह से खिसक कर गहराई में डूब गये होंगे। समुद्र का जलस्तर भी बढ़ गया होगा। तब से इस प्राकृतिक संरचना का ज्यादातर हिस्सा जल के नीचे ही है।
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अगर यह एक प्राकृतिक संरचना है, तो जाहिर है कि यह लाखों साल पुराना होगा। और अगर यह लाखों साल पुराना है, तो जाहिर है कि इसके आस-पास पलने वाले समुद्री जीव-जन्तुओं, वनस्पति इत्यादि ने खुद को यहाँ की खास स्थिति के हिसाब से ढाल लिया होगा। ऐसे में, इस संरचना में यदि तोड़-फोड़ की जाती है और यहाँ से जलजहाजों का आवागमन शुरु होता है, तो इन जीव-जन्तुओं एवं वनस्पतियों के अस्तित्व पर संकट मँडराने लगेगा- इसमें कोई दो राय नहीं होनी चाहिए। अतः पर्यावरण संरक्षण के नजरिये से देखा जाय, तो तथाकथित ‘सेतु समुद्रतम’ परियोजना को त्याग देने में ही समझदारी है।
दूसरी बात, चूँकि इस संरचना के ऊपर ही पुल बाँधकर रामचन्द्रजी लंका गये होंगे, इसलिए इस संरचना के प्रति भारतीयों के मन आस्था होना स्वाभाविक है। ऐसे में सिर्फ और सिर्फ जलजहाजों के आवागमन के लिए एक शॉर्टकट बनाने के लिए करोड़ों भारतीयों की भावना को ठेस पहुँचाना कोई बुद्धिमानी नहीं है। हाँ, अगर आस्था एवं विश्वास शब्दों से ही नफरत रखने वाले कुछ खास लोग इसे तोड़ने की जिद ठान लें, तो यह अलग मामला बन जाता है।
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मेरा व्यक्तिगत सुझाव यह है कि इस प्राकृतिक संरचना के ऊपर फिर से पुल बाँध दिया जाय, ताकि भारत-श्रीलंका के बीच यातायात के लिए एक थल मार्ग बन जाय
ध्यान रहे- इस प्राकृतिक संरचना को तोड़कर जलजहाजों के लिए शॉर्टकट बनाना एक विध्वंसात्मक कार्रवाई होगी; जबकि इस संरचना के ऊपर पुल बनाकर दो पड़ोसी देशों के बीच यातायात को सुलभ बनाना एक रचनात्मक कार्रवाई होगी। ...और हर हाल में रचनात्मक सोच व काम बेहतर होता है बनिस्पत विध्वंसात्मक काम व सोच के।
‘विज्ञान’ एवं ‘तकनीक’ के बल पर ‘प्रकृति’ एवं ‘पर्यावरण’ पर ‘विजय’ प्राप्त करने की मनुष्य की जो ‘लालसा’ है, वह ‘आत्महत्या’ के समान है। क्योंकि हमने हवा और पानी में मकानों और गाड़ियों को तिनकों की तरह उड़ते और बहते हुए देखा है। सूर्य एक किलोमीटर भी अगर धरती की ओर खिसक जाय, तो हम सब खाक हो जायेंगे। ऐसे में, बेहतर है कि हम प्रकृति एवं पर्यावरण का सम्मान करें और उनके साथ सामंजस्य बिठाते हुए जीने की कला सीख लें।
भावना से रहित प्रतिभा और प्रतिभा से रहित भावना दोनों ही बेकार है। उसी प्रकार, आस्था से रहित विज्ञान और विज्ञान से रहित आस्था भी बेकार है।

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3 टिप्‍पणियां:

  1. am setu hamari bhavana evam astha se juda hua hain iski xati ham nahi sahenge. bhale hi aaj ye log koi bhi tark de magar ye NAL NIL ka banaya hain AUR USKE UPAR PRABHU RAM KE CHARAN PADE HAIN, USKE SAATH CHHEDCHHAD HAMARI ASTHA EVAM SHRADDHA KE SATHE CHHED CHHD HAIN, sonia aur christian missionaries ye chahate hain ki hindu o ko mitaqne ke liye unki aisi dharoharo ko khatma kardo aur hindu apne aap mit jayega. ye concept ki vajah se ab hindu o ki aisi nishani o ko mitaya ja raha hain.

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  2. इस आलेख को लिखने के कुछ समय बाद मुझे पता चला कि वैज्ञानिक तरीके से यह साबित हो चुका है कि 7000 से 7200 साल पहले समुद्र का सतह आज के मुकाबले 3 मीटर नीचा था. आज इस संरचना का ज्यादातर हिस्सा 3 मीटर ही डूबा हुआ है. यानि जब रामचन्द्रजी ने इस पुल से श्रीलंका पर चढ़ाई की थी, तब इसका ज्यादातर हिस्सा पानी से बाहर था. यानि मेरा अनुमान या मेरा सोचना सही ही था.
    एक उद्धरण-

    "The use of this bridge as land route between India and Sri Lanka depended on the fluctuations in sea level for thousands of years as it was sometimes above the sea level and was at other times submerged under the seawater. Dr. Rajiv Nigam, Scientist-G and Head of Palaeoclimate Project, Geological Oceanography Division, National Institute of Oceanography, Goa, in his paper on “Sea level Fluctuations during last 15000 years and their Impact on Human Settlements”, explained that between 7000 – 7200 BP the water level was about three meters below the present level. Incidentally, the astronomical dating of the Ram era has been placed around 7100 BP (DoB 10th Jan, 5114 BC) and Ramsethu is found submerged at about three meters depth at present, implying thereby that in 5100 BC this Sethu was above the sea level and could be used as a land route between Rameshwaram and Sri Lanka. Thus even fluctuations in sea levels corroborate references to Ramsethu in Ramayan."

    (http://serveveda.org/?p=87)

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