मंगलवार, 2 अप्रैल 2013

120. वशिष्ठ नारायण



      आज के 'प्रभात खबर' से पता चला कि आज- 2 अप्रैल को- वशिष्ठ नारायण जी का जन्मदिन है। मेरा अनुमान कहता है कि शायद ही कोई जागरुक भारतीय होगा, जो इस नाम से अपरिचित हो- भले ही यह नाम उनके 'अवचेतन' मस्तिष्क में दर्ज हो। आज 'प्रभात खबर' (भागलपुर से मुद्रित अररिया संस्करण) ने अपने पहले दो पृष्ठ उन्हीं को समर्पित किये हैं।
       फिलहाल मैं यहाँ उनके बारे में कुछ और कहना चाहता हूँ। अखबार में जो सामग्री दी गयी है, उसमें वशिष्ठ जी के भाई कहते हैं कि उन्हें नहीं पता कि अचानक वशिष्ठ जी अपना मानसिक सन्तुलन क्यों खो बैठे थे!
       मैंने एक जमाने में 'मनोहर कहानियाँ' या इसी-जैसी किसी पत्रिका में पढ़ा था कि वशिष्ठ नारायण अमेरिका में (अपने गुरू) प्रो. केली के सुपुत्री से प्रेम करने लगे थे। अगर वे उनसे विवाह कर लेते और 'नासा' में आठ-दस साल और नौकरी कर लेते, तो वे शायद अपना मानसिक सन्तुलन नहीं खोते। कुछ साल नौकरी करके पैसे जमा करके उन्हें भारत आकर गणित का अपना खुद का एक शिक्षण संस्थान बनाना चाहिए था, जहाँ वे खुद भी शोध कार्य करते और अगली पीढ़ी को गणित की ऊँचे दर्जे की शिक्षा देते।
       मगर वे देशसेवा की भावना से जल्दी ही देश लौट आये। उन्हें यहाँ की आई.आई.टी. वगैरह में शिक्षण की बजाय दफ्तरी एवं प्रशासनिक काम दिये गये।
       इधर उनके पिता ने एक अमीर की नकचढ़ी बेटी से उनकी शादी कर दी।
       कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि उनके अपने व्यक्तिगत प्रेम, भारतीय संस्थानों की घटिया राजनीति तथा नकचढ़ी अमीर पत्नी- इन तीनों के कारण उन्होंने अपना मानसिक सन्तुलन खो दिया।
       मेरी उक्त जानकारी उसी पत्रिका (जिन्हें आमतौर पर 'सी ग्रेड' का माना जाता है, 'प्रामाणिक' तो हर्गिज नहीं माना जाता) की सामग्री पर आधारित है। सो, ये गलत भी हो सकती हैं। मगर मेरी अन्तरात्मा कहती है कि इन्हीं तीनों चीजों ने भारत की एक महान प्रतिभा को नष्ट कर दिया, जो न केवल विश्व को गणित के क्षेत्र में बहुत कुछ दे सकती थी, बल्कि गणितज्ञों की एक नयी पीढ़ी भी तैयार कर सकती थी।
       मैंने यह भी पढ़ा था कि राँची के मानसिक अस्पताल ने इस महान प्रतिभा का इलाज ढंग से नहीं किया था- क्योंकि उन्हें उनकी "फीस" नहीं मिल रही थी। जब जनता पार्टी की सरकार बनी, तब जाकर सरकार ने उनके इलाज का खर्च उठाना शुरु किया, मगर तब तक देर हो चुकी थी।
       खैर, 'प्रभात खबर' में दी गयी सामग्रियों को साभार उद्धृत करते हुए मैंने "फेसबुक" पर वशिष्ठ नारायण जी पर एक "पृष्ठ" बना दिया है, जहाँ जाकर आप उनके बारे में अपनी जानकारियों को ताजा कर सकते हैं। उस "पृष्ठ" का लिंक- https://www.facebook.com/VasisthaNarayana

उनके जन्मदिन पर मैं उनके लिए शुभ की कामना भला क्या करूँ? इस देश के समाज ने और इस देश की व्यवस्था ने एक महान प्रतिभा को तो प्रायः नष्ट ही कर दिया है।
हाँ, 'प्रभात खबर' को मैं जरूर साधूवाद देना चाहूँगा, उनके इस अच्छे प्रयास के लिए।
आपसे से भी अनुरोध है कि अपने किशोर एवं युवा बच्चों को उनके बारे में जानने के लिए प्रेरित करें।
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सोचता हूँ, इस देश के नीके दिन और कितने दूर हैं भला..... ????? 

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