शुक्रवार, 2 अगस्त 2013

151. "विखण्डन" व "संयोजन"- साथ-साथ! (प्रसंग: राज्यों का पुनर्गठन)


       एक राष्ट्र को कई राज्यों में बाँटना अगर "विखण्डन" है, तो कई राज्यों को एकसूत्र में बाँधना "संयोजन"। अपने भारत में दोनों प्रक्रिया को साथ-साथ चलाने की जरुरत है। हालाँकि मैं जिस ढंग के पुनर्गठन की बात कर रहा हूँ, वह वर्तमान व्यवस्था में सम्भव नहीं है- यह भी सच है।
       मेरे हिसाब से भारत को कुल-मिलाकर 54 राज्यों में बाँटने की जरुरत है। यह "अन्तिम" पुनर्गठन होना चाहिए- यानि इसके बाद हजार-दो हजार वर्षों तक पुनर्गठन का, या किसी नये राज्य के गठन का प्रश्न ही पैदा नहीं होना चाहिए!
       आप कहेंगे, 54 राज्यों का तो नाम भी याद नहीं रखा जा सकता? और फिर 54 ही क्यों- 53 या 55 क्यों नहीं? इन सवालों का जवाब मिल रहा है।
       सबसे पहले यह बता दिया जाय कि राज्यों के पुनर्गठन के लिए जनता की इच्छा या माँग के साथ भौगोलिक स्थिति, सभ्यता-संस्कृति, भाषा, प्रशासनिक सुविधा को भी ध्यान में रखा जाय।
       54 राज्यों का गठन होने के बाद एक अँचल के 9 राज्यों को एक "अँचल" के रुप में संगठित किया जाय। देश में कुल 6 अँचल होने चाहिए- 1. उत्तरांचल, 2. दक्षिणांचल, 3. पूर्वांचल, 4. उत्तर-पूर्वांचल, 5. पश्चिमांचल और 6. मध्यांचल। इस प्रकार, किसी को एक पंक्ति में 54 राज्यों के नाम याद रखने की जरुरत नहीं पड़ेगी। सबको सिर्फ 6 अँचलों के नाम याद रखने हैं। अब एक अँचल के अन्दर के जितने भी राज्यों के नाम याद रह जायं, उतना ही काफी है!
       ये अँचल देश की "सांस्कृतिक" इकाई होंगे, न कि "राजनीतिक"। यह एक "अँचलपाल" के अधीन होगा, जिनकी भूमिका दोहरी होगी- 1. वे अपने अँचल के 9 राज्यों के लिए "राज्यपाल" की भूमिका निभायेंगे और 2. देश के लिए वे "उपराष्ट्रपति" की भूमिका में होंगे।
       54 संख्या के पीछे कोई रहस्य या टोटका नहीं है। दरअसल, आज जो तीन तरह के पहचानपत्र प्रचलन में हैं- 1. मतदाता पहचानपत्र, 2. 'पैन' कार्ड और 3. 'आधार' कार्ड,- इन तीनों को एकीकृत करते हुए एक "राष्ट्रीय नागरिक पहचानपत्र" बनाने की जरुरत है। इसमें लोकसभा एवं विधानसभा चुनावों में मतदान के लिए बाकायदे "विन्दु" भी होंगे, जिन्हें मतदान के दौरान बाकायदे "पंच" भी किया जायेगा। यानि मतदान को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए और भाग न लेने वालों पर जुर्माना लगना चाहिए। कुल-मिलाकर यह एक "बहुद्देशीय" पहचानपत्र होगा।
       अब इस पहचानपत्र को जब नम्बर देंगे, तब यह 54 की संख्या काम आयेगी। एक अँचल में 9 राज्य हो गये, अब एक राज्य में 9 जिले/महानगर  हों, एक जिले/महानगर में 9 प्रखण्ड/नगर/उपमहानगर, एक प्रखण्ड/नगर/उपमहानगर में 9 थाने और एक थाने में 9 पंचायत/वार्ड हों।
       अब देखिये कि पहचानपत्र में सिर्फ "6 अंक" डालकर हम किसी भी नागरिक के अँचल, राज्य, जिला, प्रखण्ड, थाने और पंचायत का पता लगा सकते हैं! इसके बाद के तीन या चार अंक धारक नागरिक की अपनी संख्या होगी, जिसे वह याद रखेगा।  
       हालाँकि व्याख्या की गुंजाइश अभी और है, मगर 'थोड़ा कहा, बहुत समझना' के तहत बात समाप्त की जा रही है और ऊपर कही गयी एक बात को फिर से दुहराया जा रहा है: यह सच है कि वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था में ऐसा पुनर्गठन सम्भव नहीं है!
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