रविवार, 11 अगस्त 2013

154. "ना-पाक"-इस्तान


एक होता है- लड़ते हुए शहीद होना- यह अलग मामला है- आमतौर पर अपने यहाँ इसपर फख्र किया जाता है. मगर जब सीज-फायर का उल्लंघन करते हुए धोखे से किसी सैनिक को मारा जाता है, तो यह शर्म की बात होती है. ...और मार कर सैनिक का सर काटकर ले जाना- ट्रॉफी के रुप में- यह हद से ज्यादा शर्मनाक है! 


सारी दुनिया में एक पाकिस्तानी कौम ही है, जो ऐसा कर सकती है. मुझे नहीं लगता कि चीनी सैनिक कभी भारतीय सैनिकों पर धोखे से हमला करेंगे, या उनका सर काटकर ले जायेंगे. एक नीच कौम ही ऐसा कर सकती है. और उस नीच कौम से बातचीत? छिः! 

(प्रसंगवश, 1962 में चीन का आक्रमण 'धोखा' नहीं था- तिब्बत पर चीन के बलात् अधिग्रहण के साथ ही युद्ध की पटकथा लिखी जाने लगी थी. 'हिन्दी-चीनी भाई-भाई' की रेत में सिर गाड़े सिर्फ नेहरूजी के लिए यह 'धोखा' था- बाकी सभी जानते थे कि चीन आक्रमण करने वाला है.)  

सोचिये कि जब धोखे से मारे गये सैनिकों के शव उनके घरों में पहुँचते होंगे, तो घर वालों पर क्या बीतती होगी! वे फख्र करें भी तो कैसे इस शहादत पर? 

और हमारे नेता? शहीदों की तस्वीर तो छोड़िये, नामपट्ट तक संसद भवन की दीवारों पर नहीं लगते. हमसे बेहतर तो अँग्रेज थे, जिन्होंने प्रथम विश्वयुद्ध में ब्रिटिश सेना की ओर से लड़ते हुए शहीद होने वाले भारतीय सैनिकों के नाम खुदवा कर बाकायदे "इण्डिया गेट" बनवा दिया! 

अगर एक नेता के मुँह से यह निकल जाता है कि इन सैनिकों को तो तनखा मिलती ही है शहीद होने के लिए- तो फिर जान लीजिये कि आज के सारे राजनेताओं के मन की यह बात है! 

कम-से-कम पाक-अधिकृत काश्मीर में चलने वाले आतंकवादी शिविरों पर तो भारत आक्रमण कर ही सकता है- क्योंकि भारत इसे अपना हिस्सा बताता है. अगर युद्ध की शुरुआत हो जाय, तो हो जाय- डर क्या है? खत्म कर दिया जाय पाकिस्तान नामक राष्ट्र को, उसकी सेना को, उसकी गुप्तचर संस्था (आई.एस.आई) को और तालिबानी मदरसों को! बना दिया जाय पंजाब, सिन्ध, बलूचिस्तान और पख्तूनिस्तान को नये राष्ट्र!

हो सकता है कि चीन और अमेरिका इस सैन्य अभियान का समर्थन न करे, ऐसे में भारत को चाहिए कि वह रूस को भरोसे में ले. 

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