शुक्रवार, 4 अप्रैल 2014

160. भारतीय लोकतंत्र का मजाक



       देश में ये जो सैकड़ों की संख्या में क्षेत्रीय राजनीतिक दल हैं, जैसे कि सपा-बसपा, राजद-जदयू, तृणमूल-झामुमो, द्रमुक-अन्ना द्रमुक, तेदेपा-टीआरएस, शिवसेना-मनसे, अगप-एमएनएफ, अकाली-हविपा, वगैरह-वगैरह, इनमें से किसी से भी हम "अन्तर्राष्ट्रीय समझ" की उम्मीद नहीं रख सकते। यानि इनके ख्याल में कभी यह बात आ ही नहीं सकती कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, दुनिया का सबसे बड़ा चुनाव यहाँ होने जा रहा है और दुनिया के सभी प्रमुख राष्ट्र उत्सुकता के साथ इस ओर देख रहे हैं। ये दल कोल्हू के बैल या कुएँ के मेंढ़क हैं- मुफ्त धोती-साड़ी, दो रुपये किलो अनाज, मुफ्त साइकिल-लैपटॉप से आगे ये नहीं सोच सकते।
       मगर काँग्रेस, भाजपा और 'आप' से हम उक्त "अन्तर्राष्ट्रीय उत्सुकता" के प्रति सजगता की उम्मीद रख सकते हैं। लेकिन यह हो क्या रहा है?
       काँग्रेस की अध्यक्षा दिल्ली के शाही इमाम से मिलकर प्रार्थना कर रहीं हैं कि वे मुसलमानों द्वारा थोक मतदान करने का फतवा जारी करें। मोहतरमा, आपके परिवारवालों ने इस देश की जनता को- खासकर, पिछड़ों तथा मुसलमानों को जानबूझ कर जाहिल बना रखा है दशकों से- ताकि आसानी से इनसे वोट लिया जा सके। अभी भी आप इसी नीति पर चल रही हैं?
       उधर जोरहाट में इवीएम मॉक टेस्ट के दौरान एक ऐसी मशीन निकली, जिसका हर बटन भाजपा को वोट दे रहा था। क्या ऐसी एक ही मशीन होगी? जी नहीं, हजारों होंगी। एक तो गलती से प्रशिक्षण कार्यक्रम में आ गयी। बाकी का इस्तेमाल चुनाव के दौरान ही होगा। अगर मैं मुख्य चुनाव आयुक्त होता, तो इस घटना के बाद सारी चुनावी प्रक्रिया को स्थगित कर देता और ईवीएम मशीन चाहे लाखों की संख्या में हों, या करोड़ों की, सबकी जाँच करवाता- उसके बाद ही चुनाव की तिथियों की फिर से घोषणा करता। जून में संसद का गठन न होने से कोई आसमान नहीं टूट जायेगा!
       और 'आप'? कन्धमाल से इसने एक ऐसे प्रत्याशी को मैदान से उतारा है, जिसपर 28 आपराधिक मामले दर्ज हैं! मिस्टर अरविन्द केजरीवाल, व्हाट द हेल इज दिस? दिस वे यू आर गोइंग टू रिफॉर्म द इण्डियन पॉलीटिक्स!
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       मजाक बना कर रख दिया गया है भारतीय लोकतंत्र का! 

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