सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

107. 'घोषणापत्र' के क्रियान्वयन की शुरुआत...?



       मेरे 'घोषणापत्र' का एक छोटा-सा अध्याय है- 'आम रिहाई', जिसमें तीन घोषणायें हैं:
38.1          संगीन अपराधों के अभियुक्तों, दोषियों और आदतन अपराधियों, हिस्ट्रीशीटर को छोड़कर शेष समस्त कैदियों को जेलों से रिहा किया जाएगा।
38.2          रिहाई कई चरणों में हो सकती है- जैसे, बीमार, बुजुर्ग, महिला, नाबालिग़, विचाराधीन इत्यादि।
38.3          आम रिहाई पाने वालों के पुनर्वास के लिए सरकार विशेष ध्यान देगी। (अध्याय 4: सबके लिए रोजगार, अध्याय 21: बेसहारों के लिए।)
       खुशी की बात है कि हमारी सरकार "विचाराधीन" कैदियों की रिहाई के लिए गम्भीर हो गयी है- ऐसी एक खबर आज के अखबार में है। दरअसल, जो गरीब अभियुक्त छोटे-मोटे अपराधों में जेलों में बन्द होते हैं, वे उन अपराधों के लिए तय सजा से कहीं ज्यादा समय जेलों में बिता लेते हैं। क्योंकि एक तो उनके पास जमानत के पैसे नहीं होते; दूसरे, वकील रखने के पैसे नहीं होते; तीसरे, वकील भी उनका आर्थिक शोषण करते हैं; चौथे, उनकी पहुँच य पैरवी नहीं होती; और पाँचवे, न्यायाधीशगण उनके प्रति 'विवेक' एवं 'मानवता' नहीं दिखलाते।
       काश, कि राजनीतिक दल एक-एक कर इन घोषणाओं को अमली जामा पहनाना शुरु कर दें!

       2003 में इस 'घोषणापत्र' को पुस्तिका के रुप में प्रकाशित करने के बाद डाक द्वारा और 2009 में इसे ऑनलाईन बनाने के बाद मैंने ई'मेल द्वारा देश के सभी प्रमुख रजनीतिक दलों के पास भेजा था, पर सबने इसे कचरा ही समझा होगा।   

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