दो खबरों का जिक्र करना है,
जिनपर न तो परम्परागत मीडिया में चर्चा हुई और न ही नयी मीडिया में- जबकि दोनों
खबरें इस देश की राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय दशा एवं दिशा को रेखांकित करती हैं।
पहली खबर जुलाई के पहले हफ्ते में आयी थी कि
मॉरिशस ने भारत को जुड़वाँ टापु (अगालेगा नामक) देने की पेशकश की है। इस पेशकश के बदले
उसकी इच्छा है कि भारत उसके साथ 1983 से चली आ रही दोहरा कराधान बचाव सन्धि को न
तोड़े। इस सन्धि के कारण मॉरिशस के 15,000 लोगों को रोजगार मिला हुआ है और उसकी
जीडीपी की 5 प्रतिशत आय भी इसी सन्धि के कारण होती है। भारत के नजरिये से देखा
जाय, तो 2000 से 2012 के बीच कुल (विदेशी) पूँजी निवेश का 38 प्रतिशत हिस्सा
मॉरिशस के रास्ते हुआ है। जाहिर है, भारतीयों द्वारा स्विस बैंकों में जमा किया
काला धन ही फर्जी कम्पनियों के माध्यम से इस रास्ते से भारत में आ रहा है।
मैंने इन्तजार किया कि इस पेशकश पर कि भारत
की आधिकारिक प्रतिक्रिया की जानकारी भी खबरों में देखने मिलेगी- पर अब तक नहीं
मिली; या, मैं चूक गया। जहाँ तक मेरा अनुमान है, वर्तमान व्यवस्था के अन्तर्गत
हमारी सरकार- 1. न तो इन टापुओं को स्वीकार करेगी और 2. न ही मॉरिशस के रास्ते आ
रहे काले धन के प्रवाह को रोकेगी। यानि “साँप भी नहीं मरेगा और लाठी भी टूट जायेगी!” जबकि “कूटनीति” के अनुसार, साँप
भी मरना चाहिए और लाठी भी नहीं टूटनी चाहिए!
अपनी आदत के मुताबिक मैं सुझाव (बेशक, बिना
माँगे) देना चाहूँगा कि इस अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दे पर भारत को क्या करना चाहिए-
1.
सबसे
पहले तो दोनों टापुओं पर वैधानिक रुप से अधिकार जमाया जाय;
2.
इसके
बाद एक टापू पर कृषि, दुग्ध या प्रसंस्करण आधारित अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की एक ऐसी
औद्योगिक इकाई की स्थापना की जाय, जिसमें मॉरिशस के 15 से 20,000 युवाओं को (प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष
रुप से) रोजगार मिल सके और मॉरिशस को आय का एक आदर्श जरिया मिल सके। इसी के
साथ-साथ भारत मॉरिशस-रूट से अपने यहाँ होने वाले पूँजी-निवेश को पारदर्शी बनाये-
ताकि काला धन इस रास्ते से देश में प्रवेश न कर सके!
3.
दूसरे टापू में एक छोटा-सा सैन्य अड्डा बनाये, जहाँ
भारतीय थलसेना, जलसेना और वायुसेना की एक संयुक्त कमान हमेशा तैनात रहे। सही है कि भारत दियेगो-गार्सिया टापु पर बने अमेरिकी
सैन्य अड्डे को चुनौति नहीं दे सकता और देना चाहिए भी नहीं; मगर हिन्द महासागर में
भारत की “सैन्य उपस्थिति” होनी ही चाहिए और वह भी “दबंग” किस्म की, न कि “दब्बू”!
4.
एक महत्वपूर्ण बात, इन दोनों टापुओं के पर्यावरण को हर
हाल में “प्रदूषण मुक्त” रखा जाना चाहिए; चाहे इसके लिए कितना भी खर्च क्यों न उठाना पड़े।
***
अब दूसरी खबर, जो इसी महीने
के पहले हफ्ते में आयी। भारत ने
अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह के एक टापू (वाइपर द्वीप) को 1 रुपया प्रतिवर्ष की दर
से मलेशिया की एक कम्पनी ‘रीकॉन पीएमएम प्राइवेट लिमिटेड’ को पट्टे पर दे दिया है।
उद्देश्य? कोई महान उद्देश्य नहीं है। वह कम्पनी वहाँ सैलानियों की ऐय्याशी के लिए
मरीना तथा होटल बनाकर सिर्फ और सिर्फ मुनाफा कमायेगी। आप पूछेंगे यह ‘सिर्फ और
सिर्फ’ क्यों? इसलिए कि भारत सरकार इस कम्पनी को बिजली-पानी की सुविधा के साथ-साथ
सब्सिडी भी देने जा रही है! सही सुना आपने- “सब्सिडी”! वही सब्सिडी
यानि राज-सहायता, जिसे अपने देश की आम जनता, किसानों, मजदूरों को देते हुए सरकार
का कलेजा फट जाता है; मगर धनकुबेरों, निर्यातकों, विलासिता के व्यवसाय से जुड़े
उद्योगपतियों को देने में जरा भी नहीं अखरता। आप सहज ही कल्पना कर सकते हैं कि
हमारे “देशी” धनकुबेर (चाहे वे उद्योगपति हों, अधिकारी हों या नेता) इतने
शक्तिशाली हो गये हैं कि अपनी ऐय्याशियों के लिए एक सुरक्षित एवं सस्ता “अड्डा” तक बनाने की
तैयारी करने लगे हैं!
कहानी अभी खत्म नहीं हुई है साथियों। उपसंहार बाकी है... और
उपसंहार यह है कि यह वही “वाइपर द्वीप” है, जहाँ 1857 की क्रान्ति में भाग लेने वाले 200
स्वतंत्रता-सेनानियों को (1858 में) निर्वासित किया गया था। 7-7 लोगों को एक-दूसरे
के साथ बेड़ियों में जकड़कर इस निर्जन द्वीप पर छोड़ दिया गया था- इन्हें “चैन-गैंग” का नाम दिया गया
था।
अब आप ही फैसला कीजिये कि यहाँ उन सेनानियों का स्मारक होना
चाहिए, या रईसजादों की ऐय्याशियों का अड्डा?
जयदीप शेखर जी आपका आलेख आँखे खोलने वाला है इस फेस बुक व् ट्विट्टर पर शेयर करें व् लोगों से शेयर करने के लिए भी कहें इसमें हमारे देश के प्रशासन की गैर जिम्मेदाराना सांझे दारी दिखाई दे रही है अच्छा होगा अपनी इस सूचना के स्रोत का लिंक भी प्रस्तुत करें
जवाब देंहटाएंइन दोनों समाचारों की जानकारी आपके आलेख से ही मिली वर्ना किसी को पता ही नहीं है !!
जवाब देंहटाएंhttp://timesofindia.indiatimes.com/business/india-business/Mauritius-offers-India-2-islands-in-effort-to-preserve-tax-treaty/articleshow/14697220.cms
जवाब देंहटाएंहालाँकि दूसरी खबर को सरकार ने कुछ हद तक गलत ठहराया है- http://news.webindia123.com/news/articles/India/20120910/2060791.html
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