शनिवार, 4 अगस्त 2012

आम चुनाव’ 2014: विकल्प क्या है?


आम चुनाव’ 2014: विकल्प क्या है?


सच्चाईयाँ  

2014 के आम-चुनाव के मद्दे-नजर विकल्पों की चर्चा करने से पहले कुछ कड़वी सच्चाईयों को दुहरा लिया जाय-
      1. देश की (बल्कि दुनिया की) परिस्थिति बद-से-बदतर होती जा रही है- चाहे बात गरीबी की हो, अर्थव्यवस्था की हो, पर्यावरण की हो, जनसंख्या की हो, या अन्धाधुन्ध विकास की;
      2. देश को आमूल-चूल (Upside down) परिवर्तनों की जरुरत है; (जरुरत तो दुनिया को है, मगर शुरुआत भारत से होनी चाहिए। हालाँकि यह भी खबर है कि दक्षिण-अमेरीकी देश वेनेजुएला में राष्ट्रपति ह्यूगो शावेज के नेतृत्व में आदर्श परिवर्तनों का दौर शुरु हो चुका है। भारतीय मीडिया इसकी खबर नहीं देता, क्योंकि यह परिवर्तन उदारीकरण तथा अमेरीकी-नीतियों के खिलाफ जा रहा है!)
      3. मेरा मानना है कि जब तक एक देशभक्त, ईमानदार और साहसी नेता के हाथों में देश की सत्ता नहीं आती, हम बड़े बदलावों की आशा नहीं रख सकते; (नीचे से आप छोटे-मोटे बदलाव ला सकते हैं देश में, पर राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बड़े बदलाव लाने के लिए आपको सत्ता थामकर ऊपर से ही कोशिश करनी होगी!)
      4. यह सही है कि नगरों के आम नागरिक, कस्बों के आम कस्बाई और गाँवों के आम ग्रामीण ईच्छा-अनिच्छा से भ्रष्ट आचरण में लिप्त हैं, मगर देश का हर आम आदमी इस भ्रष्टाचार से त्रस्त है और इससे मुक्ति पाना चाहता है- यह भी सही है!

विकल्प  

      आईये, अब उन विकल्पों की सूची बनायें, जो चुनाव’2014 में हमारे सामने होंगे-
      1. ज्यादातर देशवासी अन्ना हजारे और स्वामी रामदेव को ‘तारणहार’ के रुप में देखते हैं;
      2. देशवासियों का एक बड़ा वर्ग नरेन्द्र मोदी को देश के भावी नायक के रुप में देखता है;
      3. कुछ रीढ़विहीन, मस्तिष्कविहीन अभागे भारतीय ऐसे भी हैं, जो एक युवराज का राज्याभिषेक देखना चाहते हैं।
      4. क्षेत्रीय, साम्यवादी तथा (‘तथाकथित’) समाजवादी दलों का एक गठबन्धन, यानि तीसरा मोर्चा ऐन चुनाव से पहले उभर सकता है;
      5. देशभक्त, ईमानदार एवं साहसी लोगों लेकर एक नये राजनीतिक दल के गठन की योजना जमीनी रुप ले सकती है।  
      अगर 5वाँ विकल्प तैयार हो जाता है, तो ज्यादा सम्भावना इस बात की है कि अन्ना हजारे और स्वामी रामदेव इसी को अपना समर्थन दे देंगे- और इस प्रकार, कुल विकल्प चार ही रहेंगे।

विवेचना  

      अब हम चारों-पाँचों विकल्पों की नीर-क्षीर विवेचना करते हैं:

1. अन्ना हजारे और स्वामी रामदेव

अन्ना हजारे एवं स्वामी रामदेव पिछले साल से भ्रष्टाचार एवं कालेधन के खिलाफ आन्दोलन चला रहे हैं। भ्रष्टाचार, महँगाई और गरीबी से त्रस्त जनता उन्हें ‘तारणहार’ के रुप में देखती है। उनके आन्दोलन को लगभग सारा देश समर्थन देता है- मैं भी समर्थन करता हूँ। मगर शुरु से ही मेरा मानना है कि हम आज के अपने राजनेताओं को भ्रष्टाचार एवं कालेधन के खिलाफ कार्रवाई करने या चुनाव-प्रक्रिया में सुधार लाने के लिए बाध्य नहीं कर सकते। वे बहुत घाघ होते हैं- उनपर ‘अनशन-सत्याग्रह’ का कोई असर नहीं पड़ने वाला। वे खुद ही भ्रष्ट आचरण में लिप्त हैं तथा भ्रष्टों को प्रश्रय देते हैं; वे खुद ही काला धन पैदा एवं जमा कर रहे हैं तथा ऐसे लोगों को बचाते हैं; और एक गन्दी चुनाव-व्यवस्था उनके लिए वरदान है। मेरी अवधारणा है कि अगर आपको बदलाव लाना है, तो आपको सत्ता की बागडोर थामनी ही होगी- ऐसा मैं शुरु से ही सोशल मीडिया पर लिखता आ रहा था।
      अभी-अभी अन्ना हजारे ने इस अवधारणा को स्वीकार किया है। (हालाँकि स्वीकार करने के पीछे जो कारण है, वह गर्व करने योग्य नहीं है। अरविन्द केजरीवाल तथा साथियों ने जोश में आकर आमरण अनशन का व्रत ले लिया था, जबकि शहीद होने की हिम्मत उनके अन्दर नहीं थी। जब सरकार ने उनके साथ बातचीत नहीं की, तो अनशन तोड़ने के लिए उन्हें एक सम्मानजनक बहाने की तलाश थी। अतः जल्दीबाजी में, बिना व्यापक विचार-मन्थन के, देश को राजनीतिक विकल्प देने की बात कही जा रही है। विचार-मन्थन अब शायद हो।) जो भी हो, मैं देखना चाहूँगा कि स्वामी रामदेव इस अवधारणा से कब तक सहमत होते हैं।
      वैसे, मुझे नहीं लगता कि अन्ना हजारे या स्वामी रामदेव के पास देश के पुनर्निर्माण का कोई खाका, कोई रोडमैप, या कोई ब्लूप्रिण्ट है; या उन्होंने मन की आँखों से देश की कोई छवि देख रखी है। जबकि मेरे अनुसार, अगर आपके पास सुस्पष्ट खाका नहीं है देश के पुनर्निर्माण का, तो आपके द्वारा सफलतापूर्वक चलाया गया बड़े-से-बड़ा आन्दोलन भी कोई बदलाव नहीं ला पायेगा! एक अच्छी फिल्म तभी बनती है, जब मेहनत करके उसकी पटकथा तैयार की गयी हो (‘पटकथा’ में बारीक-से-बारीक बातों का भी जिक्र होता है) और निर्देशक के पास बनने से पहले ही मन की आँखों से उस फिल्म को देख लेने की क्षमता हो! हाँ, अगले कुछ महीनों में अगर खाका तैयार हो जाय और भावी भारत की तस्वीर खींच ली जाय, तो अलग बात है।
      मगर यहाँ दो दुर्भाग्य भी हैं-
1. न तो अन्ना हजारे और न ही स्वामी रामदेव देश का प्रधानमंत्री बनना चाहेंगे; और
2. अन्ना हजारे एवं स्वामी रामदेव एक संयुक्त मोर्चा बनायेंगे- इसकी कोई झलक नहीं दीख रही (कोई अप्रत्याशित घटना घट जाय, तो अलग बात है)।
ऐसे में, राजनीतिक विकल्प देने की कोशिश विफल हो जाय; या सफल होने के बाद जे.पी. आन्दोलनएवं जनता पार्टी राज की पुनरावृत्ति हो जाय, तो कोई आश्चर्य नहीं।

2. भाजपा तथा नरेन्द्र मोदी

2014 में भाजपा को सत्ता सौंपने तथा नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने की इच्छा रखने वालों की संख्या भी काफी बड़ी है देश में। ऐसा हो भी सकता है। मगर मैं यहाँ साफ-साफ घोषणा कर रहा हूँ कि सत्ता पाने के बाद भाजपा दूसरी काँग्रेस साबित होगी; वैश्वीकरण, उदारीकरण, निजीकरण को और भी आक्रामक तरीके से लागू करेगी, जिसके फलस्वरुप बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ तथा देशी उद्योगपति एवं पूँजीपति और भी अमीर होते जायेंगे तथा गरीब और भी गरीब होते जायेंगे। जो कोई भी मुझसे सहमत नहीं हैं, वे भाजपा मुख्यालय को पत्र लिखकर (या सूचना के अधिकार के तहत माँग करके) उनकी आर्थिक नीतियों की जानकारी ले सकते हैं- वे खुलकर स्वीकार करेंगे कि उदारीकरण के अगले चरणों को वे जोर-शोर से लागू करेंगे! जबकि सबको दीख रहा है कि पिछले बीस वर्षों में इस उदारीकरण ने अमीरी-गरीबी के बीच की खाई को और चौड़ा किया है तथा घपलों-घोटालों की बारम्बारता को तेज किया है।
2014 में अगर भाजपा की (या भाजपा के नेतृत्व में) सरकार बनती है, तो यह देखना वाकई दिलचस्प होगा कि संसद में भाजपा सत्ता पक्ष की ओर से खुदरा बाजार में प्रत्यक्ष विदेशी पूँजीनिवेश (एफ.डी.आई.) के समर्थन में प्रस्ताव ला रही है और विपक्षी दल के रुप में काँग्रेस इसका विरोध कर रही है!  
नरेन्द्र मोदी जी की नीतियाँ भाजपा से कोई अलग नहीं हो सकतीं। वे भी अमीरों को नाराज करने का खतरा नहीं मोल लेंगे। (ध्यान रहे- देशभर के अमीर अगर अभी से उनका गुणगान कर रहे हैं, तो इसके पीछे ‘कुछ’ तो है!) जबकि अमीरों की तरक्की को कुछ समय के लिए रोककर गरीबों को कुछ आगे लाने की जरुरत है- इसे कुछ इस तरह से समझा जाय कि अगर मैं अपने तीन बेटों के साथ सड़क पर चल रहा हूँ, और मेरा बड़ा बेटा कुछ ज्यादा ही आगे-आगे चल रहा है, तो मैं उसे रुकने के लिए कहूँगा, मँझले बेटे को धीमे चलने कहूँगा, ताकि मेरा छोटा बेटा, जो दुर्भाग्य से लकवाग्रस्त भी है, काफी पीछे न छूट जाय!- यह भी मेरी एक अवधारणा है!
हाँ, इतना है कि भाजपा, या नरेन्द्र मोदी जी कुछ भावनात्मक किस्म के निर्णय लेकर अपने समर्थकों को सुखानुभूति की दशा में बनाये रखने में जरुर सफल होंगे।

3. काँग्रेस तथा राहुल गाँधी

      कई बार देश की आम जनता ने जागरुक मतदाता की भूमिका निभायी है, मगर ज्यादातर समय वह भावनात्मक लहरों पर सवार होकर ही मतदान करती है। ऐसे में, ठीक चुनाव से पहले एस.आर.पी. (सोनिया-राहुल-प्रियंका की तिकड़ी) अगर एक लहर पैदा करने में सफल हो जाती है, तो अरबों-खरबों के घपलों-घोटालों के बावजूद काँग्रेस इस देश में फिर जीत जायेगी और राहुल गाँधी (या प्रियंका बढेरा) प्रधानमंत्री बन जायेंगे। बहुतों को यह असम्भव लग रहा होगा, पर ऐसा होने पर मुझे कोई आश्चर्य नहीं होगा! यह विचित्र देश है।
      अगर ऐसा होता है, तो भारत कुछ दशक और पीछे चला जायेगा और तब इसके पुनर्निमाण या पुनरुत्थान के लिए और ज्यादा कोशिश करनी पड़ेगी।

4. तीसरा मोर्चा

      फिलहाल तीसरा मोर्चा बनने के आसार नहीं दीख रहे- सभी क्षत्रप अपने-अपने राज्य की राजनीति के कीच-स्नान में मस्त नजर आ रहे हैं। फिर भी, चुनावी बुखार शुरु होते ही यह मोर्चा बन सकता है। मगर इसे सत्ता हासिल नहीं हो सकती। हुई भी तो चार-छह महीनों में ही सर-फुटौव्वल शुरु हो जायेगा, जिसकी परिणति काँग्रेस या भाजपा के परोक्ष सत्ता-अधिग्रहण से होगी।

 5. नया राजनीतिक दल

      मुझे लगा था- पहले एक नया राजनीतिक बनेगा और तब उसे अन्ना हजारे और स्वामी रामदेव का समर्थन मिलेगा। मगर अन्ना ने पहले ही राजनीतिक दल बनाने की घोषणा करके मेरे आकलन को गड़बड़ा दिया है। दल का क्या नाम होगा, किन-किन बड़े लोगों का समर्थन इसे हासिल होगा, इसका घोषणापत्र कैसा होगा- यह सब सामने आना अभी बाकी है।
फिर भी, मैं जो देख रहा हूँ, वह इस प्रकार है-
1. इस देश के आम मतदाताओं को पिछले 60-65 वर्षों से साजिशन अशिक्षित एवं गरीब बनाये रखा गया है और उन्हें भावनात्मक मुद्दों में बहकर मतदान करने तथा अपने मत को बेचने का बाकायदे प्रशिक्षण दिया गया है। इन्हें समझाने के लिए नये दल को खासी मशक्कत करनी पड़ेगी।
2. मध्य वर्ग आम तौर पर अपना फायदा देखकर मतदान करता है। अगर घोषणापत्र में आपने इस वर्ग को ज्यादा नहीं लुभाया, तो यह आपको वोट नहीं भी दे सकता है।
3. अमीरों की बात ही जुदा है। वे मानते हैं कि वे हर किसी को खरीद सकते हैं, हर दल को भ्रष्ट बना सकते हैं!
कुल-मिलाकर, नये राजनीतिक दल की राह मुझे तो कठिन नजर आ रही है। हो सकता है कि चुनाव में सफल होने के लिए इसे भी किसी लहर का ही सहारा लेना पड़े!

उपसंहार

      2014 में चाहे जो भी हो, मगर मुझे लगता है कि 2017 तक इस देश की जनता की सारी उम्मीदें एक-एक कर टूट जायेंगी... न अन्ना हजारे और न स्वामी रामदेव देश के ‘तारणहार’ बन पायेंगे... न नरेन्द्र मोदी देश के ‘उद्धारकर्ता’ साबित होंगे... राहुल गाँधी को चाहनेवालों को तो मैंने खैर, पहले ही रीढ़विहीन, मस्तिष्कविहीन कह दिया है... क्षेत्रीय दलों के क्षत्रप कभी ‘राष्ट्रीय’ एवं ‘अन्तर्राष्ट्रीय’ सोच रख ही नहीं सकते... किसी नये युवा में इतना मसाला नजर नहीं आ रहा कि वर्तमान कठिन राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों में वह देश के स्टेट्समैन की भूमिका निभा सके...

कुल-मिलाकर, यह एक राजनीतिक निर्वात्  की स्थिति होगी।
और हम जानते हैं कि निर्वात् के बाद आँधी आती है...
हमारे देश की राजनीति में भी तब आयेगी परिवर्तनों की आँधी... बनी-बनायी सारी मान्यतायें सर के बल खड़ी नजर आयेंगी... देश की (तथाकथित) आजादी के इतिहास के कई अध्याय फिर से लिखे जायेंगे... 1935 के अधिनियम पर आधारित वर्तमान शासन-प्रशासन के स्थान पर एक नयी व्यवस्था कायम होगी, जो जन-भावना के अनुरुप कार्य करेगी... भारत एक बार फिर से सारी दुनिया को राह दिखायेगा... 

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही बढ़िया विश्लेषण है २०१४ के बाद की स्थितियो का. एक जगह मैं आपसे थोड़ी से असहमति रखता हूँ.
    वैसे तो मेरी असहमति से ही आप समझ जायेंगे कि मैं भाजपा का समर्थक हूँ. लेकिन ऐसा नहीं है और मैं किसी का भी अंध समर्थक नहीं बनना चाहता. हालाँकि मैंने हमेशा भाजपा को भी वोट दिया है लेकिन सोशल साइट्स और अन्ना हजारे जी ने सिखा दिया कि कभी किसी व्यक्ति की अंधभक्ति मत करो हाँ विचारधारा का सम्मान करो और जो व्यक्ति देश और गरीब के उत्थान की विचारधारा रखता हो उसका समर्थन अवश्य करो. इसलिए ही मैंने अन्ना जी का समर्थन किया "था".

    तो मेरी असहमति ये हैं कि आपने लिखा भाजपा की सरकार आने पर अमीर और अमीर तथा गरीब और गरीब होंगे अर्थात जैसा चल रहा है वैसा ही चलता रहेगा. मेरा मानना हैं कि अगर हम गुजरात को देखें तो नज़र आता हैं कि गुजरात का जो विकास हुआ है उसमे अमीर के साथ साथ गरीब को भी फायदा हुआ है...तो अगर नरेंदर मोदी को भाजपा प्रधानमंत्री पर पर आसीन करती है तो क्या ये संभव नहीं की वो अपने विकास मोडल को ही लागू कर पाने में सफल हों..हालाँकि एक राज्य और पूरे देश में फर्क होता है पर फिर भी यदि आज के परिद्रश्य में कोई राजनेता लोगों के लिए कार्य करता दिखाई देता है तो वो नरेंदर मोदी ही हैं...क्योंकि मेरा मानना हैं सारी बात सिर्फ सोच की है संसाधन वही हैं. एक नेता अपने विकास की सोच रखता हैं और एक नेता जनता के विकास की सोच रखता है और यहीं से फर्क शुरू हों जाता है.

    वैसे मेरा राजनैतिक ज्ञान बहुत सीमित है...इसलिए कृपया अज्ञानी समझ कर ही सही मेरे कमेन्ट का उत्तर जरूर दीजियेगा. धन्यवाद

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    1. मेरा भी राजनीतिक ज्ञान शून्य है. ज्यादातर मैं "मन की आवाज" पर लिखता हूँ. मैं स्पष्ट देख रहा हूँ कि गुजरात तरक्की कर रहा है और सम्भवतः वहाँ के गरीबों का भी जीवन-स्तर शालीन हो रहा होगा; मगर दो बातों के चलते मुझे ऐसा लगता है कि उनके नेतृत्व में बनने वाली सरकार से जनता का मोहभंग होगा-
      1. जिस प्रकार के क्रान्तिकारी परिवर्तनों (यानि विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ, अमेरिकी वर्चस्व, देशी पूँजीपतियों/उद्योगपतियों के दवाब के खिलाफ जाने) की जरुरत इस वक्त देश को है, उन्हें भाजपा या मोदीजी लागू नहीं कर पायेंगे.
      2. "मेरा मन" ऐसा कहता है कि जब तक इस देश की जनता की "सारी उम्मीदें" एक-एक टूट नहीं जातीं, तब तक वे "लीक से हटकर" सोचने के लिए तैयार नहीं होंगे. और जब तक लीक से हटकर एक "नयी व्यवस्था" (टेम्प्रोरी ही सही) के बारे में लोग नहीं सोचते- सब कुछ ऐसे ही चलते रहेगा.
      ईति.

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  2. आपकी सोच एकदम परफेक्ट है और विश्लेषण भी ...किसी को भी देश से या आम जनता से कुछ लेना देना नहीं बस हर बार की तरफ कुछ झूठे वादे करके बेवकूफ बनाना है ! सभी पार्टीया इस मामले एक ही दृष्टि वाली है और रहा अन्ना या बाबा का सवाल तो अन्ना तो किसी पार्टी का जोकर निकलेगा जिसे जब तब बजी जितने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है और बाबा जो एक दावा का मुनाफाखोर व्यापारी है उसको सिर्फ रोकड़े से मतलब है ये सिर्फ दिखावा है की बाबा काला धन वापस भारत लाना चाहता है असल में तो विदेशी कंपनियों की लूट बता कर स्वदेशी के नाम पर खुद लूट रहा है और पैसा इंग्लॅण्ड और अमेरिका में इन्वेस्ट कर रहा है ...यानि बाबा मेरी नज़र में एक बहुत ही धुरंधर व्यापारी है जिसे पता है की अपना माल बाज़ार में ऊँचे दामो में कैसे बेचा जाता है ! रही मोदी की बात ...तो मेरी नज़र में अगर मोदी प्रधान मंत्री बनता है तो आपने जो लिखा है वो तो होगा परन्तु साथ में एक वैदिक कट्टरपंथियों का तालिबान भारत में बनेगा जिसमे भारत की साड़ी जनता पिस जाएगी ! राहुल को अभी राजनीती की समझ नहीं है वो देश चला नहीं पायेगा ...अब देखना ये है की २०१४ में होता क्या है क्योंकि भारत के लोगो के पास कोई भी सही विकल्प नहीं है ! सभी के सभी नेता चोर है .....मेरा तो मानना है की देश में सुधर के लिए टी एन शेषण और कलाम साहब जैसे आदमियों की ज़रुरत है ऐसे ज़मीर वाले ५० आदमी भी अगर मुख्या कार्यकारणी में आ जाये तो भारत का सुधर एक वर्ष में हो जायेगा !
    हालाँकि मुझसे ज्यादा राजनीती की समझ आपको है आप इस क्षेत्र के महारथी है फिर भी अगर मेरे से आप इत्तेफाक रखते हो तो ज़वाब ज़रूर देना जी धन्यवाद !

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    1. अगर कुल 14 विषयों (पत्रकारिता, समाजसेवा, पर्यावरण, अर्थनीति, संविधान, राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेश नीति, नारी सशक्तिकरण, शिक्षा, संस्कृति, विज्ञान, खेल-कूद, किसानी और मजदूरी) के जानकारों को लेकर भी अगर एक कार्यकारिणी बना दी जाय, और इन साढ़े पाँच सौ अजगरों को छुट्टी मनाने भेज दिया जाय- 10 साल के लिए, तो देश में परिवर्तन लाया जा सकता है. वे 14 नाम ऐसे होने चाहिए जिनपर किसी को आपत्ति न हो. जैसे, पर्यावरणवादी के रुप में सुन्दरलाल बहुगुणा, संविधान विशेषज्ञ के रुप में सुभाष कश्यप, इत्यादि. बेशक, टी.एन. शेषण, ए.पी.जे. कलाम-जैसे दिग्गजों को भी इसमें रखा जा सकता है.
      मगर इसे कहेंगे "लीक से हटकर" एक व्यवस्था कायम करने के बारे में सोचना. और जब तक इस देश की जनता के मन में उम्मीद की एक भी किरण बाकी है, वह लीक से हटकर नहीं सोचेगी!
      अतः मेरी दुआ है कि 2017 तक सारी उम्मीदें टूट जायें... इसके बाद लोग कुछ नया सोचेंगे और करेंगे...

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  3. करीब-करीब सहमत हूँ! आप सब मैं से किसी ने अरविन्द की स्वराज पढ़ी है क्या? उस आधार पर कुछ लिखेगें।
    स्वराज को घौषणा-पत्र कहा था 29 को अनशन शुरु करने से पहले अन्ना हजारे ने।

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  4. सही विश्लेषण है आपका , लेकिन 2017 के आने के पहले 2014, 15 और 16 को तो जीना ही होगा ! अतः निर्वात की स्थिति आने और सब कुछ बदलने के लिए शुरुवात तो होगी ही कहीं से ! और उसके लिए 2014 में मोदी का विकल्प सबसे अच्छा है ! मोदी का राज --दूसरा कांग्रेस कभी नहीं बनेगा ऐसा मेरा विश्वास है !

    2014 में सत्ता मोदी के हाथ में ही होनी चाहिए ! निर्वात नहीं आयेगा! एक बेहतर शुरुवात होगी ! आँधियों का दौर चल ही रहा है , 2013 तक इसकी तीव्रता और बढ़ेगी ! कांग्रेस का विनाश तय है ! 2014 में शान्ति और खुशहाली आएगी !

    जनता को एकाएक बदलाव की उम्मीद भी नहीं रखनी चाहिए ! कांग्रेस की फैलाई गंदगी साफ़ करने में भी तो कुछ वक्त लगेगा , उसके बाद ही नयी सरकार के सकारात्मक प्रयास, प्रभावी रूप में दिखाई देंगे।

    किसी भी हालत में बिना रीढ़ की हड्डी वाले विकल्प को तो आकार लेने ही नहीं देना है।

    तख्ता पलटना बहुत ज़रूरी है , तभी लोकतंत्र बचेगा और देश सुरक्षित रहेगा , विकास करेगा !

    जय हिंद ! वन्देमातरम !

    .

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  5. hello sir romen hindi me likh rha hu.hindi typing nhi aati.mera nam akhil he.aapne kaha nirwat aayega tabhi ummeed khatm hone par bhartiy aadmi nya vikalp sochega.par badti aabadi or uske mukhya karan par kon dhyan de rha he.aabadi control kro sab kuch thik ho jayega.jra aap soch kar jwab dijiye.muze bhi kafi maslo par gyan netra kulne ka aabhas hota rha he.par duniya to suruaat se hi esi chali aa rhi he.kya englend ne sanghars nhi bhugta.kya america gulam nhi rha.kya china ki puri 1 peedi afimchee or nasedi gulam nhi hui thi.bharat ne sabhyta ka charam dekha he fir sosanr dekha he.gulami dekhi he.kabhi hamne raj kiya.koi ab kar rha he .nature(god(agar he to))sabko moka deti he.samy ke chakra me ham jis deskal me peda hue usi ke hidsab se vyavhar karna padega.is deskal ka dharm he rajneeti.yhi nibhana padega.kyoki low or econmics ki najayaj olad he politics.or nature ne ab najayaj(politics) ko moka diya he raj karne ka. smajwad,tanasahi,rajsahi in sabko to nature ne moka de diya.or manv sabhyta ise ji chuki. ab ye vyavstha purane nasur ki tarh ho sadne lagi he.iska marham se nhi opration se ilaj hoga.manv svbhav sirf apni dhekhne ka he. chahe vo ram rajy rha ho ya budh,mahaveer,pegambar ka seen unke jane ke bad kya hal huaa batane ki jarurt nhi aapko .abhi taja letest dekhiye sai baba ka mamla. kafee bate karni pa rbad me aapka blog dekh kar lga ki aapse bat karni chaiya. mera mail id he akhil220186@gmail.com apni mail id mail kariye

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