10 अप्रैल 2012
हमें
'नागरिक शास्त्र' में पढ़ाया गया है- "प्रत्यक्ष प्रजातंत्र" सिर्फ 'बहुत
छोटे' देशों में ही सम्भ्व है- भारत-जैसे विशाल देश में तो इसकी कल्पना भी नहीं की
जा सकती! ...और इसलिए यहाँ नागरिकों द्वारा "जनप्रतिनिधि" चुनने की
प्रक्रिया अपनायी गयी।
नीयत अच्छी थी, मगर आज की तारीख में सारी कुव्यवस्था, सारे भ्रष्टाचार, सारे
घोटालों की जननी यह "जनप्रतिनिधि प्रणाली" ही बन गयी है। एक तो
जनप्रतिनिधि पाँच वर्षों के लिए "लाट साहब" बनकर नागरिकों से दूर हो
जाता है; दूसरे, चुनाव में खर्च किये गये करोड़ों रुपये का कईगुना वसूलने के चक्कर
में वह कदाचार में लिप्त हो जाता है।
मैं (10 वर्षों के लिए) जिस
"चन्द्रगुप्तशाही" की बात कर रहा हूँ, उसमें "प्रत्यक्ष
प्रजातंत्र" का प्रावधान है। वह भी दो स्तरों पर- राष्ट्रीय व प्रखण्ड (या
नगर/उपमहानगर) स्तर पर। जी हाँ, "प्रत्यक्ष प्रजातंत्र"- इसी भारत-जैसे
विशाल देश में!
पहले राष्ट्रीय स्तर के प्रत्यक्ष
प्रजातंत्र की बात-
चन्द्रगुप्त के सभा-भवन के दो तरफ जो गैलरियाँ होंगी,
उनमें एक तरफ सरकारी विभागों के प्रतिनिधि बैठेंगे, तो दूसरी तरफ आम नागरिक।
नागरिकों वाली गैलरी में प्रत्येक आसन देश के एक-एक जिले के लिए चिह्नित रहेगा। प्रत्येक
आसन उस चिह्नित जिले के एक नागरिक को 3 दिनों के लिए आबण्टित किया जायेगा।
इस सभा में प्रत्येक सत्र 21 दिनों का होगा और साल में
कुल 6 सत्र आयोजित होंगे, अतः आप हिसाब लगाकर देख लें- देश के प्रत्येक जिले से
प्रतिवर्ष 42 नगरिकों को इस सभा में अपनी बात रखने का मौका मिलेगा।
आप कहेंगे, जिले की जनसंख्या के हिसाब से यह संख्या तो
कम है, तो इसके दो जवाब हैं-
एक- जिन नागरिकों के पास इस सभा में उठाने के लिए कोई
"मुद्दा" होगा, उन्हें ही सभा में आना चाहिए (सिर्फ सभा
"देखने" नहीं आना चाहिए किसी को)। इसके लिए जिला स्तर पर नागरिकों को
खुद ही एक व्यवस्था कायम कर लेनी चाहिए कि किस "मुद्दे" को सभा में
उठाने के लिए "कौन" जायेगा- कोई फर्क नहीं पड़ता कि मुद्दा व्यक्तिगत है,
या स्थानीय, या राष्ट्रीय, या अन्तर्राष्ट्रीय- बस वह महत्वपूर्ण होना चाहिए। अगर
जिला स्तर पर कोई नागरिक खुद की कोई व्यवस्था नहीं बनाते, तो जाहिर है, चन्द्रगुप्त
के सभाध्यक्ष ऐसी व्यवस्था बनायेंगे।
दो- प्रखण्ड/नगर/उपमहानगर स्तर पर भी प्रत्यक्ष
प्रजातंत्र की व्यवस्था होगी- नागरिकों के ज्यादातर मसले वहीं सुलझ जायेंगे। वहाँ
निराश होने के बाद ही कोई "राष्ट्रीय" सभा में आना चाहेगा।
नागरिकों द्वारा उठाये गये मुद्दों पर सरकारी विभागों
के प्रतिनिधियों या मंत्रालयों के सचिवों को बाकायदे जवाब देना पड़ेगा। इस दौरान
चाणक्य सभा "जन-भावना" का आकलन करेगी और उसी हिसाब से चन्द्रगुप्त को
दिशा-निर्देश देगी।
दूसरे शब्दों में इस व्यवस्था के बारे में यही कहा जा
सकता है कि जहाँ आज नागरिक 5 वर्षों के लिए 1 जनप्रतिनिधि चुनते हैं, वहीं इस
व्यवस्था में प्रत्येक वर्ष 42 प्रतिनिधियों को वे चुनेंगे।
अब बात प्रखण्ड/नगर/उपमहानगर स्तर पर प्रत्यक्ष
प्रजातंत्र की-
हर दूसरे महीने प्रखण्ड
न्यायाधीशों की अध्यक्षता में सप्ताह भर का ‘प्रखण्ड जनसंसद’ का अधिवेशन बुलाया जायेगा, जिसमें प्रखण्ड के जागरुक
आम नागरिक, सभी सरकारी अधिकारी तथा सभी पंचायतों के पंच भाग लेंगे। (प्रखण्ड स्तर पर न्यायालय
स्थापित किये जायेंगे।) चूँकि महानगरों तथा नगरों
को क्रमशः जिला तथा प्रखण्ड के समतुल्य माना जायेगा, अतः नगरों/ उपमहानगरों में भी
ऐसे जनसंसद होंगे, जहाँ जागरुक नागरिक, सभी सरकारी अधिकारी, सभी सभासद एवं पार्षद
भाग लेंगे।
इन जनसंसदों में अधिकारी
तथा जनप्रतिनिधिगण अपने पिछले कार्यों तथा खर्चों के ब्यौरे पेश करेंगे और अगले
कार्यों तथा खर्चों के लिये इस संसद द्वारा पारित प्रस्तावों से दिशा-निर्देश
प्राप्त करेंगे। नागरिकों द्वारा उठाये गये
सवालों/शिकायतों का जवाब भी यहाँ सम्बन्धित अधिकारी/प्रतिनिधि देंगे और इस दौरान
किसी भी सूचना को गोपनीयता के नाम पर नहीं छुपाया जायेगा।
अधिवेशन के अध्यक्ष, यानि
प्रखण्ड न्यायाधीशों को इतना (विवेक) अधिकार प्राप्त होगा कि जनसंसद के अधिवेशन को
गम्भीरता से न लेने वाले तथा आम जनता की जरुरतों को पूरा करने में लापरवाह
अधिकारी/प्रतिनिधि को वे छह महीनों तक के लिये निलम्बित कर सकेंगे।
कुल मिलाकर यही कहा जा सकता
है कि प्रखण्ड/नगर/उपमहानगर के सर्वांगीण विकास के लिये स्थानीय नागरिक स्वयं
योजनाएँ बनायेंगे, कार्यपालिका/ग्राम पंचायत/नगर परिषद/महानगर परिषद के माध्यम से
उन्हें लागू करवायेंगे और यह सब कुछ न्यायपालिका के संरक्षण में होगा।
...अब बताईये कि आपको क्या
कहना है इस बारे में!
राष्ट्रीय सरकार सभी प्रखण्डों को
बराबर-बराबर विकास धनराशि मुहैया करायेगी, जबकि राज्य सरकारें जनसंसदों द्वारा
पारित विकास योजनाओं के आधार पर धन मुहैया करवायेगी। (इन प्रस्तावों को स्थानीय विधायक
राज्य सरकार के समक्ष पेश करेंगे।)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें