शनिवार, 26 अप्रैल 2014

167. आदरणीय नरेन्द्र मोदी जी




आदरणीय नरेन्द्र मोदी जी,
       जय हिन्द!

       साउथ ब्लॉक से लेकर कस्बों की नुक्कड़ तक और प्रिण्ट/इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक- सभी जगह यह माना जाने लगा है कि आप ही अगले प्रधानमंत्री बनने वाले हैं
       कल के अखबार में देखा, लॉर्ड स्वराज पाल कह रहे हैं, "हम उम्मीद करते हैं कि भारतीय प्रधानमंत्री के रुप में जिसका भी चयन करेंगे, वह अच्छा काम करेगा। मुझे उम्मीद है कि जो भी चुनाव जीतेगा, वह सिर्फ कुछ उद्योगपतियों के बजाय देश के 1.2 अरब लोगों की चिन्ता करेगा।"
       नाजुक मसलों/मौकों पर समझदार लोग अक्सर इशारों में बात कहते हैं। लॉर्ड पॉल साहब का यह कथन भी एक इशारा ही है- कम-से-कम मेरी नजर में। यानि वे कहना चाहते हैं कि नरेन्द्र मोदी साहब को चाहिए कि वे प्रधानमंत्री बनने के बाद सिर्फ कुछ औद्योगिक घरानों को फायदा पहुँचाने के लिए आर्थिक नीतियाँ न बनायें, बल्कि वास्तव में "जनकल्याणकारी" आर्थिक नीतियाँ बनायें। देश की जनता त्रस्त है! मुझे ऐसा लगता है लॉर्ड पॉल साहब आशा तो रखते हैं कि आप देश की सवा अरब जनता को ध्यान में रखकर नीतियाँ बनायें, मगर उनके मन में यह आशंका भी है कि आप शायद ऐसा न करें... आप शायद मुट्ठीभर उद्योगपतियों, बहुत हुआ, तो 5-10 प्रतिशत खाते-पीते, भोग-विलास का जीवन बिताते भारतीयों (क्षमा, इण्डियन्स!) के प्रधानमंत्री बन कर रह जायें!
       खैर। यह कथन पढ़कर मुझे याद आया कि मैंने भी कभी ऐसा ही कुछ लिखा था। ब्लॉग खोजा, तो पाया, नौ महीने पहले 18 जुलाई 2012 को (तब 25 जुलाई को अन्ना हजारे का तथा 9 अगस्त को स्वामी रामदेव का अन्दोलन प्रस्तावित था) मैंने निम्न पंक्तियों में अपनी आशा-आशंका को अभिव्यक्ति दी थी:
       (उद्धरण शुरु)
       "मैं आशा करता हूँ कि 2014 के आम चुनाव के बाद नरेन्द्र मोदी जी देश के प्रधानमंत्री बने; देश की कमान थामने के बाद वे- 1.) देश की अर्थव्यवस्था को विश्व बैंक और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के चंगुल से बाहर निकालें, 2.) घरेलू संसाधनों एवं प्रतिभा के बल पर ही सूई से लेकर जहाज तक के निर्माण में स्वदेशीकरण को अपनायें, 3.) देश में जड़ें जमा चुकी बहुराष्ट्रीय निगमों को देश से निकाल बाहर करें, 4.) खेतीहर मजदूरों एवं सीमान्त किसानों को जमीन दिलाते हुए खेती योग्य जमीन का पुनर्वितरण करें, 5.) सरकारी वेतनमान में न्यूनतम व अधिकतम वेतन-भत्तों-सुविधाओं के बीच 1:15 से ज्यादा का अन्तर न रहने दें, 6.) आयात-निर्यात के मामले में शत-प्रतिशत बराबरी यानि 1:1 का अनुपात अपनायें, 7.) राष्ट्रमण्डल की सदस्यता का परित्याग करें, 8.) अमेरीकी प्रभुत्व के सामने झुकने से इन्कार करें और 9.) तिब्बत की आजादी का समर्थन करते हुए चीनी धमकियों से डरना छोड़ दें।
      "मगर मुझे डर है कि ऐसा कुछ नहीं होगा। या तो जनता को बरगला कर तथा राष्ट्रपति महोदय के माध्यम से दाँव-पेंच खेलकर काँग्रेस फिर से सत्ता हथिया लेगी; या फिर, सत्ता थामने के बाद नरेन्द्र मोदी जी वैश्वीकरण, उदारीकरण एवं निजीकरण के अगले चरणों को लागू करने में अपनी सारी ताकत झोंक देंगे, ताकि बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ और देशी पूँजीपति/उद्योगपति जबर्दस्त मुनाफा कमा सके!
      ***
      "मैं आशा करता हूँ कि मेरे उपर्युक्त डर गलत साबित हों; अन्ना हजारे के नेतृत्व में 'लोकपाल' बने तथा भ्रष्टाचार पर लगाम लगे; स्वामी रामदेव के नेतृत्व में कालेधन का राष्ट्रीयकरण हो तथा देश का नवनिर्माण हो; और नरेन्द्र मोदीजी के नेतृत्व में भारत एक खुशहाल, स्वावलम्बी एवं शक्तिशाली देश बने। अगर ऐसा होता है, तो इस देश में मुझसे ज्यादा खुश कोई और नहीं हो सकता।
      मगर मुझे डर है कि मेरे उपर्युक्त डर कहीं सही न साबित हो जायें! अगर ऐसा होता है, तो मेरा अनुमान कहता है कि 2017 तक देश की स्थिति बहुत खराब हो जायेगी।"
       (उद्धरण समाप्त)
महोदय, मैं यह जानता हूँ कि एक आम नागरिक का पत्र एक राजनेता तक कभी नहीं पहुँचता और यह पत्र भी कभी आप तक नहीं पहुँचेगा। फिर भी, अपनी बात मैं कह देना चाहता हूँ।
       इससे पहले भाजपा के नेतृत्व में जो सरकार बनी थी, उसने अपनी सारी नीतियाँ देश के पूँजीपतियों, उद्योगपतियों को लाभ पहुँचाने तथा 5-10 प्रतिशत इण्डियन्स के जीवन में चमक लाने के लिए बनायी थी; देश के 90-95 प्रतिशत भारतीयों को उस सरकार ने एक प्रकार की "सुखानुभूति" की दशा में रखा था- परमाणु विस्फोट वगैरह करके। इस शाइनिंग इण्डिया और फीलगुड के दम पर सरकार अपनी वापसी को लेकर इतनी अश्वस्त थी कि समय से पहले आम चुनाव करवाये गये, मगर "भारतीयों" ने इस सरकार को दुबारा मौका नहीं दिया। (इण्डियन्स हैं ही कितने! और कितने निकलते हैं वोट देने!) यहाँ तक कि बाद वाले आम चुनाव में भी नहीं दिया।
       इस प्रकार, देखा जाय तो 10 साल बाद फिर बड़ी उम्मीद से देश की जनता आपके हाथों में सत्ता सौंपने जा रही है। इस बार भी अगर देश की आम जनता की अनदेखी हुई, उसे किसी किस्म के बहकावे, भुलावे में रखते हुए पूँजीपतियों, उद्योगपतियों, "इण्डियन्स" के फायदे, भोग-विलास के लिए सारी नीतियाँ बनायी गयीं, तो याद रखा जाय, 5 साल बहुत लम्बा समय नहीं होता। देखते-देखते यह समय बीत जायेगा और फिर जो देश के "भारतीय" आपकी पार्टी को सत्ता से बेदखल करेगी, तो शायद इस बार 20 साल में भी उसका गुस्सा ठण्डा न हो!
       व्यक्तिगत रुप से मेरा किसी से राग-द्वेष नहीं है। हाँ, अपने विचार मैं सीधे ढंग से (स्ट्रेट फॉरवार्ड) ढंग से व्यक्त करता हूँ। यह जमाना निन्दक नियरे राखिये का है भी नहीं। इस लिहाज से मुझे यह सब नहीं लिखना चाहिए था शायद...
       ...मगर चूँकि मैं एक मतदाता हूँ और मैंने मत दिया है; जिन मतों के बल पर आप प्रधानमंत्री बनेंगे, उनमें मेरा भी मत शामिल होगा, इसलिए मैं समझता हूँ कि मुझे हक है कि मैं आपसे कुछ उम्मीदें रखूँ और साथ ही, यह भी जता दूँ कि आपका क्या करना, कौन-सी नीति अपनाना मुझे पसन्द नहीं आयेगा।
       इति। 
       शुभकामनाओं के साथ,

                                                                                               एक आम नागरिक
                                                                                                जयदीप शेखर    

रविवार, 20 अप्रैल 2014

166. आर.वी.


       रॉबर्ट वढेरा (या वाड्रा, जो भी हो) ने अगर 5 वर्षों (2007 से 2012) के अन्दर अपनी 90 हजार की पूँजी को 324 करोड़ बना लिया, तो जाहिर है कि ऐसा उसने अपनी प्रतिभा या मेहनत के बल पर नहीं किया है; बल्कि राजसत्ता के प्रभाव का दुरुपयोग करते हुए किया है
       किसी भी सभ्य, स्वतंत्र एवं सम्प्रभु राष्ट्र के दण्ड विधान के नजरिये से देखें, तो इसे एक गम्भीर अपराध माना जायेगा और उस देश में ऐसा करने वाले को इतनी कठोर सजा मिलेगी कि दूसरों को सबक मिले। मगर भारत का औपनिवेशिक दण्ड विधान सत्ताधारियों द्वारा लूट को अमतौर पर गलत नहीं मानता- ऐसे मामलों में खुद संज्ञान तो कभी नहीं लेता। यहाँ की राजभक्त जनता के लिए भी यह स्वाभाविक है- वह कहेगी, अरे इतने बड़े परिवार का दामाद है, थोड़ा-बहुत पैसा बना लिया तो कौन-सी आफत आ गयी!
       फिर भी, कुछ सरफिरे लोग अगर न्यायपालिका पहुँच ही जायें, तो क्या होगा? 10 साल जाँच, 20 साल सुनवाई, 10 साल फैसला सुरक्षित, और उसके बाद दोषी की उम्र एवं स्वास्थ्य को देखते हुए उसे जेल नहीं भेजने का निर्णय। सुखराम के मामले में ऐसा ही हुआ था। अगर किसी लुटेरे को जेल हो भी गयी, तो खानापूरी के लिए वह कुछ हफ्ते जेल में बिताता है, फिर बाहर आ जाता है- जैसे कि लालू प्रसाद यादव। एक और विचित्र परिपाटी है इस दण्ड विधान की- कभी किसी बड़े राजनेता को तीन साल की कैद से अधिक सजा न दी जाय- ताकि अदालत में ही गिरफ्तार करके उसे जेल भेजने की नौबत न आये। इसके उदाहरण नरसिंहाराव, जयललिता इत्यादि हैं।
कहने का तात्पर्य इस देश में लूट या घोटाले की कमाई का पूरा-पूरा उपभोग करने का अवसर सत्ताधारियों को प्राप्त होता है। रॉबर्ट वढेरा का भी बाल बांका नहीं होगा- चाहे मोदी प्रधानमंत्री बन जायें, या केजरीवाल, या फिर कोई और। भारत की शासन-प्रणाली, यहाँ का प्रशासनिक ढाँचा, यहाँ की पुलिस व्यवस्था, यहाँ की न्यायपालिका, यहाँ का संविधान- सबके-सब औपनिवेशिक हैं- इन सबका उद्देश्य है- गुलामों पर राज करना। इस व्यवस्था के तहत कभी किसी बड़े राजनेता (या उसके परिजन) को उसके किये की पूरी-पूरी सजा नहीं दी जा सकती!
सबसे माशाअल्लाह तो यहाँ की पब्लिक है- क्या शिक्षित, क्या अशिक्षित.....
       *** 
This issue was highlighted in 2012 also. That time I had written following note. This is a complete imagination (hypothesis)- need not to be taken seriously:- 
  • Conversation started 14 अक्टूबर 2012
  • जयदीप शेखर
    जयदीप शेखर

    किसी के व्यक्तिगत मामलों में रुचि रखना उचित नहीं है; मगर जब किसी के व्यक्तिगत प्रसंग किसी राष्ट्र, किसी समाज की दशा एवं दिशा को प्रभावित करने जा रहे हों, या अतीत में किसी के व्यक्तिगत प्रसंगों ने किसी कौम की नियति को प्रभावित किया हो, तो फिर उन प्रसंगों का अन्त्य-परीक्षण होना ही चाहिए- चाहे वे कितने भी व्यक्तिगत क्यों न रहे हों!

    मिसाल के तौर पर, अगर प्रश्न उठता है कि क्या JLN-LEM के प्रेम प्रसंग ने स्वतंत्र भारत की नियति को प्रभावित किया है- तो फिर इस प्रसंग की बाकायदे जाँच होनी चाहिए कि सत्ता-हस्तांतरण के समय भारतीय पक्ष के कमजोर पड़ने के पीछे इस प्रेम-प्रसंग का कितना बड़ा हाथ रहा था?

    फिलहाल, कुछ दिनों से PG-RV की जोड़ी चर्चा में है। जोड़ी ‘बेमेल’ है, फिर भी, अब तक सोच-विचार करने की जरुरत नहीं पड़ी थी कि आखिर यह बेमेल जोड़ी बनी तो क्यों? मगर अब लग रहा है कि अगले 5-7 वर्षों के अन्दर यह जोड़ी देश की नियति को प्रभावित कर सकती है, इसलिए इस पर सोच-विचार की जरुरत आन पड़ी है।

    JLN ने लम्बे समय तक देश पर शासन किया- एक “विधुर” के रुप में। IG ने भी लम्बे समय तक देश पर शासन किया- एक “विधवा” के रुप में। RG-1 पहले भारतीय राजनीति से दूर थे, मगर “टुअर” बनते ही उन्हें देश पर शासन करने का अवसर मिल गया। ...क्या कोई “शातिर” दिमाग इन बातों को “नोट” कर रहा था? क्या उसे पक्का विश्वास हो गया कि इस परिवार के सदस्यों के “सत्तासीन” होने लिए उनका “विधुर”, “विधवा” या “टुअर” होना अनिवार्य है?? क्या उसने तभी से जाल बिछाना शुरु कर दिया??? इनका कोई आइडिया लगाना फिलहाल तो मुश्किल है, मगर SG “विधवा” बनीं और थोड़े समय के अन्दर वे इस देश की “भाग्य-विधाता” बन गयीं।

    “राजतंत्र” को आगे भी कायम रखना है। इसके लिए जरुरी है कि RG-2 या तो “टुअर” बनें या फिर “विधुर”। “टुअर” बनने का मतलब है, खुद SG की मृत्यु- अतः इसका सवाल ही नहीं उठता। “विधुर” के साथ हालाँकि कोई खास आकर्षण नहीं है, फिर भी, विधुर बनने के लिए जरुरी है कि RG-2 एक “मामूली” “देशी” लड़की से विवाह करे, जिसके साथ RG-2 का “प्यार-लगाव” न हो। मगर RG-2 नहीं माने- वे अपनी विदेशी गर्लफ्रेण्ड से ही विवाह करने के इच्छुक थे, जिससे वे “प्यार” करते थे। RG-2 को उसके हाल पर छोड़ दिया गया।

    अब PG से कहा गया कि वह एक नालायक (Lull) हिन्दुस्तानी से विवाह करे, ताकि समय आने पर PG “विधवा” बनकर देश की राजगद्दी पर बैठ सके। PG राजी हो गयी और उसने RV से विवाह कर लिया। जब तक विधवा बनने का “सुअवसर” नहीं आता है, तब तक उस नालायक के माध्यम से कमाई करके कालाधन स्विस बैंक में जमा करना है- यह योजना भी बनी। फिलहाल इसी योजना पर हंगामा बरपा हुआ है।

    ऐसा लगता है कि SG के दिमाग में “मिशन-2014” नहीं, बल्कि “मिशन-2019” है। 2019 से ठीक पहले PG को “विधवा” बनाकर उसका राज्याभिषेक करने की योजना है। इस बीच “रिस्क” के रुप में 2014 में RG-2 के राज्याभिषेक के लिए एकबार कोशिश करके देखनी है- हालाँकि उम्मीद कम ही है SG को। 2009 में भी RG-2 खुद को साबित नहीं कर पाये थे। यानि 2014 में बिना “टुअर” या “विधुर” बने RG-2 राज्याभिषेक हो, या न हो; मगर 2019 में “विधवा” के रुप में PG के राज्याभिषेक के प्रति SG आश्वस्त हैं!

    “बलि का बकरा” बेचारा RV कब तक खैर मना पाता है- देखा जाय! (उसके परिवार में जिन्दा बचा ही कौन है, जो उसकी “बलि” पर जाँच की माँग करेगा?)

शनिवार, 19 अप्रैल 2014

165. सियाचिन


       कुछ भी कहिये, पूर्व वायुसेनाध्यक्ष एयर चीफ मार्शल एस पी त्यागी साहब ने हम पूर्व वायुसैनिकों का सर झुका दिया है। पहले तो वीवीआईपी हेलीकॉप्टर डील में उनका नाम आया (मेरे ख्याल से, वे अभी तक सन्देह के दायरे में हैं); और आज देख रहा हूँ कि वे सितम्बर' 2012 में उस गुप्त भारतीय दल का नेतृत्व कर रहे थे, जो सियाचिन से भारतीय सैनिकों को हटाने के लिए पाकिस्तान से समझौता कर रहा था।
       आज फेसबुक पर ब्रिगेडियर अरूण वाजपेयी साहब का एक आलेख देखा, जिसमें उन्होंने एक पूर्व प्रशासनिक एवं सैन्य अधिकारी एम.जी. देवसहायम का लेख उद्धृत किया है। (फेसबुक पर मूल पोस्ट को देखने के लिए यहाँ क्लिक करें।) उस लेख तथा उसकी टिप्पणियों में सारी जानकारियाँ हैं। उन्हीं जानकारियों के आधार पर मैं अपनी बात लिख रहा हूँ।
       अभी भले पूर्व एयर चीफ मार्शल त्यागी साहब यह कहें कि उनके दल को सरकार ने नियुक्त नहीं किया था, वे लोग "निजी" तौर पर यह समझौता कर रहे थे, मगर यह बात कोई मानेगा नहीं कि वे ग्यारह उच्चाधिकारियों के साथ बैंकॉक, दुबई, अमेरिका और लाहौर में इतने संवेदनशील मुद्दे पर निजी तौर पर समझौता कर रहे थे। यह प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की ख्वाहिश थी, जिसे श्रीमती सोनिया गाँधी का समर्थन प्राप्त था। सम्भवतः अमेरिका ने भरोसा दिलाया होगा डॉ. सिंह को कि ऐसा होने पर उनका नाम शान्ति के नोबल पुरस्कार के लिए प्रस्तावित किया जायेगा। दूसरी बात, चूँकि डॉ. सिंह का जन्मस्थान पाकिस्तान में है, इसलिए उनका पाकिस्तान के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर होना स्वाभाविक है। पूर्व प्रधानमंत्री आई.के. गुजराल साहब का भी जन्म पाकिस्तान में हुआ था। उनके समय में भी सियाचिन से भारतीय सैनिकों को हटाने की बात हुई थी। (अब यह मत पूछिये कि जनाब नवाज शरीफ या जनरल परवेज मुशर्रफ भारत के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर क्यों नहीं रखते? "महानता" का जो कीड़ा होता है, वह विशुद्ध रुप से "भारतीय" जीन में पाया जाता है और नेहरूजी से लेकर इन्दिराजी और वाजपेयी तक बहुतों में यह कीड़ा सक्रिय था! (अफसोस कि नोबल किसी को नसीब नहीं हुआ!))
       ***    
       अब मेरी अपनी बात
       मेरे घोषणापत्र का 18वाँ अध्याय है- "भारत की नागरिकता"। इसके पहले दो विन्दु निम्न प्रकार से हैं:
"18.1 जो भारतीय मूल के हैं (यानि जिनके पूर्वज भारतीय हैं), जिनका जन्म भारत में हुआ है और जो भारत में ही रहकर आजीविका प्राप्त कर रहे हैं, उन्हें भारत का पूर्ण या मुख्य नागरिक माना जायेगा- उन्हें भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त सभी अधिकार और सुविधायें प्राप्त होंगी और वे भारत सरकार की विधायिका, न्यायपालिका तथा सेना के अन्तर्गत उच्च एवं महत्वपूर्ण पद प्राप्त करने के योग्य होंगे।
"18.2 जिन भारतीयों का जन्म भारत से बाहर हुआ है; या जिनके माता या पिता भारतीय नहीं हैं; या जिनकी पत्नी/जिनके पति का जन्म भारत से बाहर हुआ है; या जिनकी पत्नी/जिनके पति विदेशी मूल के हैं; या जो कुल मिलाकर ढाई वर्ष से अधिक समय भारत से बाहर बिता चुके हैं, उन्हें भारत सरकार के अन्तर्गत किसी उच्च या महत्वपूर्ण पद पर आसीन नहीं होने दिया जायेगा।"
यानि मैंने अपने घोषणापत्र में यह जो बात लिखी है, यह बिलकुल सही है और इसे लागू होना ही चाहिए!
*** 

बुधवार, 16 अप्रैल 2014

164. भारत की बीमारियों का जड़


 (8 अप्रैल को फेसबुक पर लिखा था.)
जिन्होंने सबका घोषणापत्र देखा है, क्या वे कृपया बता सकते हैं कि 20 या 30 साल से अधिक पुराने गोपनीय दस्तावेजों को सार्वजनिक करने का वादा किस दल ने किया है?
मेरा वोट उसी दल को जायेगा
मेरी दिली इच्छा है कि सत्ता-हस्तांतरण की शर्तों तथा नेताजी सुभाष के अंतर्धान से जुड़े रहस्यों पर से पर्दा उठे
जी नहीं, मैं अतीतजीवि नहीं हूँ मुझे पता है कि किसी बीमारी के "जड़" का इलाज जब तक नहीं होगा, बीमारी लाइलाज ही रहेगी
स्वतंत्र भारत बीमार है और इसकी बीमारी की जड़ इन्हीं दो "गोपनीयता" में छुपी है
जब तक इसकी जड़ में दवा नहीं दी जायेगी, इस देश रुपी महीरूह के पत्ते पीले ही रहेंगे...
क्या किसी को इसमें कोई सन्देह है?
स्वतंत्र भारत के इतिहास के कुछ पन्नों को फिर से- बिना किसी भेदभाव के- लिखे बिना हम एक महान भारत का निर्माण नहीं कर सकते- ऐसा मेरा विश्वास है!
*** 
(23 जनवरी को अपने ब्लॉग 'नाज़-ए-हिन्द सुभाष' पर लिखा था.)
"युवराज" की बात जाने दीजिये, मैं मैदान में उतरे एक "राजनेता" तथा एक "जननेता" की बात करता हूँ
आपको क्या लगता है- प्रधानमंत्री बनने के बाद ये हमारे नेताजी सुभाष से जुड़े गोपनीय दस्तावेजों को सार्वजनिक करने का आदेश दे सकते हैं? साथ ही, रूस-जापान सरकारों से ऐसा ही करने का अनुरोध कर सकते हैं?
हो सकता है, आपका उत्तर "हाँ" में हो। फिर भी, मैं यही कहूँगा कि एकबार उनसे पूछ कर देख लीजिये। या उनसे कहिये कि वे अपने घोषणापत्र में इसका जिक्र करें।  
मेरा आकलन कहता है कि "राष्ट्रमण्डल" के "कोहिनूर" सदस्य देश का प्रधानमंत्री, जिसने "सत्ता-हस्तांतरण की शर्तों" के तहत "1935 के अधिनियम" की रक्षा तथा "गोपनीयता" की शपथ ले रखी हो, ऐसा कभी नहीं कर सकता! 

शनिवार, 12 अप्रैल 2014

163. मतदान



किसी को ध्यान भी है- भारतीय सशस्त्र सेनाओं के सदस्य तथा उनके ज्यादातर परिजन वोट नहीं डाल पाते हैं एक डाक द्वारा मतदान की प्रणाली है जरुर, मगर यह व्यवहारिक और कारगर नहीं है। अन्यान्य नौकरियों के जो लोग चुनाव ड्यूटी करते हैं, उनकी भी यही गति है। मेरे साथ भी ऐसा होते आया है।
***
आज सूचना तकनीक की तरक्की जिस मुकाम पर है, उस लिहाज से मतदान ऑनलाईन होना चाहिए ऐसा होने पर एक मतदाता को वोट डालने के लिए अपने गृहक्षेत्र में नहीं जाना पड़ेगा; 24 से 48 घण्टों के अन्दर सारे देश में एकसाथ मतदान हो जायेगा और 72 घण्टों के अन्दर परिणाम आ जायेंगे। (फिर बेचारा चुनाव आयोग महीने-दो महीने के मार्शल लॉ का आनन्द कहाँ ले पायेगा- यह भी एक विचारणीय प्रश्न है!)
***
       तब ऐसा है कि इसके लिए देशभर में बूथों की स्थायी व्यवस्था करनी होगी; (बेशक, "घुमन्तु" बूथ की भी व्यवस्था करनी पड़ेगी कुछ इलाकों के लिए) चुनाव आयोग में पूर्णाकालिक कर्मचारी-अधिकारी तैनात करने होंगे; मतदाता पहचानपत्र, आधार कार्ड तथा पैन कार्ड को एकीकृत करते हुए एक बहुद्देशीय नागरिक पहचानपत्र बनाना होगा; तथा और भी कुछ काम करने होंगे, जिनकी दूर-दूर तक सम्भवना नहीं है।
***
सम्भावना क्यों नहीं है- इसके पीछे कारण न बताकर एक कहानी बता रहा हूँ। जेम्स वाट ने ब्रिटिश संसद के लिए एक वोटिंग मशीन का आविष्कार किया। संसद में उसके प्रदर्शन के समय सबने उसकी तारीफ की। मगर बाद में प्रधानमंत्री जेम्स को अपने कक्ष में ले जाकर पूछते हैं- इसके परिणामों से छेड़-छाड़ करने का तरीका क्या होगा? जेम्स वाट के होश उड़ गये। उन्होंने कान पकड़ लिया कि वे कभी राजनीतिज्ञों के लिए कोई आविष्कार नहीं करेंगे!
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अगर यह कहा जाय कि देश के कुछ इलाके दुर्गम हैं; कुछ इलाकों में नक्सलवाद, तो कुछ में आतंकवाद हावी है; सुरक्षा बलों की संख्या कम है, इसलिए कई चरणों में मतदान कराना मजबूरी है, तो जवाब में यही कहा जा सकता है कि साहेबान, पिछले छह-सात दशकों से आपलोग कर क्या रहे हैं, जो ऐसी स्थितियाँ पनपीं?
*****   

रविवार, 6 अप्रैल 2014

162. मेरे मन के सवाल का उत्तर



       इतना तो मुझे जानने वाले जान ही गये हैं कि मैं इस देश में 10 वर्षों की "जनकल्याणकारी तानाशाही" का समर्थक हूँ हालाँकि भारत में यह असम्भव है, फिर भी, कभी अगर "नागरिकों व सैनिकों" के सम्मिलीत सहयोग से ऐसी कोई व्यवस्था कायम होती है देश में और मुझे जिम्मेवारी दी जाती है, तो मैं सिर्फ इतना कह सकता हूँ कि मैं समता, पर्यावरण-मित्रता और उपयोग (उपभोग नहीं) पर आधारित व्यवस्था कायम करूँगा। भावनात्मक रुप से स्पष्ट किया जाय, तो वैसा ही सब करूँगा, जैसा कि नेताजी सुभाष देश का प्रधान बनने के बाद करते!
       जो एक सवाल अक्सर मुझे मथता था, उसका उत्तर मुझे परसों मिला और अब मैं उस सवाल को लेकर परेशान नहीं हूँ। मेरे मन का सवाल यह था कि तानाशाह के रुप में लिये गये मेरे किसी निर्णय को अगर सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जाय और न्यायालय का फैसला आये कि इस निर्णय को वापस ले लिया जाय, तो मुझे क्या करना चाहिए?
       एक उदाहरण: मेरे घोषणापत्र के अनुसार, गोल्फ के मैदानों को (दो-एक को छोड़कर) चारागाह सह गौशाला में बदलना है। जाहिर है, मामला कोर्ट में जायेगा और यह भी जाहिर है कि कोर्ट का फैसला सरकार के निर्णय के खिलाफ ही आयेगा। भले इसका जिक्र घोषणापत्र में हो और भले देश की आम जनता भी यही चाहती हो, फिर भी, न्यायालय तो न्यायालय है। वह भला एक करोड़पति के शौक की रक्षा क्यों न करे?
       खैर, तो परसों मुझे इसका उत्तर मिल गया। परसों के प्रभात खबर में अब्राहम लिंकन पर एक लेख छपा है:  'अमेरिकी राष्ट्र का चरित्र निर्माता'; लेखक हैं- रविदत्त वाजपेयी। लेख के दो पाराग्राफ निम्न प्रकार है:
       "अब्राहम लिंकन के राष्ट्रपति बनते ही अमेरिका के दक्षिणी राज्यों ने स्वयं को अमेरिकी संघीय ढांचे से अलग करना शुरु कर दिया। राष्ट्रपति लिंकन ने अमेरिकी राष्ट्र को एकसूत्र में बाँधे रखने के लिए युद्ध पर जाने का निर्णय लिया। इस युद्ध के दौरान राष्ट्रपति लिंकन ने अपने पास लगभग सारे अधिकार केन्द्रित कर लिये। युद्ध के दौरान लिंकन ने सदन, न्यायालय, अन्य संवैधानिक प्रक्रिया-जैसी परम्पराओं की अवहेलना करने से भी परहेज नहीं किया। एक पत्र में राष्ट्रपति लिंकन ने लिखा- 'देश गँवा के संविधान बचाने का क्या औचित्य है?... शरीर बचाने के लिए एक अंग काटा जाता है लेकिन एक अंग बचाने के लिए पूरे शरीर को नष्ट नहीं किया जा सकता।'
       "एक जनवरी, 1863 में राष्ट्रपति लिंकन ने 'दासत्व मुक्ति घोषणा' के द्वारा इस युद्ध में अमेरिका के एकीकरण के साथ ही गुलामी का समापन भी जोड़ दिया। 1864 में गृहयुद्ध के चरम पर भी राष्ट्रपति लिंकन ने चुनाव पर जाने का निर्णय लिया, जबकि राष्ट्रपति के सलाहकारों ने भी लिंकन के चुनाव हारने की आशंका जतायी थी। युद्ध के बीच एक राष्ट्रपति के रुप में असाधारण अधिकारों से सम्पन्न होते हुए भी लोकतांत्रिक व्यवस्था बनाये रखने के चुनाव का निर्णय लेना राष्ट्रपति लिंकन के साहस और ईमानदारी का प्रमाण है।"
       ***
       कहने की आवश्यकता नहीं, फिर भी कह दूँ कि मेरी 10 वर्षीय जनकल्याणकारी तानाशाही के जो तीन उद्देश्य हैं, उनमें से तीसरा है: 10 वर्षों के बाद देश में आदर्श चुनाव का आयोजन करवाते हुए स्वस्थ, सबल, टिकाऊ लोकतंत्र की स्थापना करना। ...और मेरे घोषणापत्र का घोषणा क्रमांक 1.12 कहता है: दस वर्ष बाद होने वाले आगामी चुनाव की तिथियों की घोषणा की जायेगी। यानि तानाशाही कायम होते ही 10 साल बाद होने वाले चुनावों की तिथियाँ घोषित कर दी जायेंगी।
       *****  

शनिवार, 5 अप्रैल 2014

161. एम.एच. 370: रहस्य गाथा



       भूमिका
फेसबुक मित्र दीपक जैन यति साहब अन्तर्राष्ट्रीय विषयों में अच्छा दखल रखते हैं। उन्होंने एक लिंक साझा किया था फेसबुक पर, जिसमें सीक्रेट ऑव द फेड डॉट कॉम नामक वेबसाइट ने लापता मलेशियाई विमान के रहस्य पर से पर्दा उठाया है- बेशक, अपने अन्दाज में। इसके कुछ समय बाद फेसबुक पर ही ब्रिगेडियर अरूण वाजपेई साहब ने भी इस विषय पर एक थ्योरी पेश की। दोनों ही रहस्योद्घाटनों को '2+2' की स्थिति में रखने पर पूरे प्रकरण का एक खाका तैयार हो जाता है।
अनुमानित घटनाक्रम  
ब्रिगेडियर साहब ने जो थ्योरी पेश की है, उसे संक्षेप में बयान करने पर कहानी कुछ यूँ बनती है:
अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान से लौट रहे हैं। ऐसे ही एक दल पर तालिबान कब्जा कर लेता है- दो सील कमाण्डो को मार गिराते हुए। यह दल चालक रहित "ड्रोन" विमान के कमाण्ड एण्ड कण्ट्रोल सिस्टम का था। तालिबान अन्यान्य साजो-सामान के साथ ही ड्रोन का कमाण्ड एण्ड कण्ट्रोल इक्विपमेण्ट भी हथिया लेता है। यह सामान 20 टन वजनी था तथा यह 6 क्रेटों में पैक किया हुआ था। यह घटनाक्रम बीते फरवरी माह का है।
तालिबान को चाहिए पैसा- इतनी उन्नत तकनोलॉजी उसके किसी काम की नहीं। वह रूस और चीन से सम्पर्क साधता है। रूस फिलहाल क्रीमिया मुद्दे पर व्यस्त है- वह रुचि नहीं दिखाता। चीन इस तकनोलॉजी का रहस्य भेदने के लिए भूखा बैठा है। वह लाखों डॉलर देने के वादे के साथ अपने 8 शीर्ष रक्षा वैज्ञानिकों का दल अफगानिस्तान भेजता है।
मार्च के शुरु में कभी 8 चीनी वैज्ञानिकों का दल तथा 6 क्रेटों का कार्गो मलेशिया पहुँचता है- अमेरिकी जासूसों की नजर से बचने के लिए यह रास्ता चुना जाता है। मलेशिया से चीन की उड़ान मात्र साढ़े चार घण्टों की है। मलेशिया में कार्गो को दूतावास में रखा जाता है- कूटनीतिक सुरक्षा के साथ।
इस बीच इजरायली गुप्तचरों के साथ अमेरिकी गुप्तचर उस कार्गो को दुबारा हासिल करने के लिए कमर कस चुके थे। जाहिर है, वे कार्गो के मलेशिया में होने का पता लगा लेते हैं।
चीनियों को नागरिक विमान से कार्गो ले जाना सही लगता है- कि अमेरिका को सन्देह नहीं होगा और होगा भी तो इतने निर्दोष नागरिकों को नुक्सान पहुँचाने से वह हिचकेगा। एमएच 370 सबसे उपयुक्त विमान था।
उस विमान में 5 अमेरिकी तथा इजरायली एजेण्ट भी सवार होते हैं- बेशक, किसी और पहचान के साथ। जिन 2 इरानियों की बात हो रही है- फर्जी पासपोर्ट वालों की, वे इजरायली सीक्रेट एजेण्ट हो सकते हैं।
थोड़ा-सा विषयान्तर। 9/11 के बाद से सभी बोइंग विमानों में "रिमोट कण्ट्रोल" सिस्टम लगाया जाने लगा है- यानि इन विमानों को जमीन से भी नियंत्रित किया जा सकता है। ऐसा आतंकवादियों द्वारा विमान के अपहरण को नाकाम करने के लिए किया गया है।
तो जैसे ही एमएच 370 मलेशिया की वायु सीमा को छोड़कर वियेतनामी वायु सीमा में प्रवेश करता है, अमेरिकी अपने किसी बेस से AWAC के माध्यम से विमान के सिगनल को जाम कर देते हैं, पायलट कण्ट्रोल सिस्टम को नकारा कर देते हैं और विमान को रिमोट कण्ट्रोल मोड में ले आते हैं। इसी दरम्यान विमान ने- थोड़ी देर के लिए- अपनी ऊँचाई खोयी थी।
इसके बाद विमान में सवार अमेरिकी/इजरायली एजेण्ट हरकत में आते हैं, विमान को कब्जे में लेते हैं, ट्रान्सपोण्डर तथा अन्यान्य सूचना तंत्रों को नाकामयाब करते हैं और विमान को पश्चिम की ओर मोड़ देते हैं।
विमान को पूर्व की ओर फिलीपिन्स या गुआम स्थित अमेरिकी सैन्य अड्डे की तरफ भी ले जाया सकता था, मगरिक दक्षिणी चीन सागर के चीनी राडारों का खतरा था। सो, विमान को पश्चिम मोड़ा गया- हिन्द महासागर  स्थित अमेरिकी सैन्य अड्डे दियेगो गार्सिया पर उतारने के लिए। इधर सिर्फ भारतीय राडारों का भय है, जिसे अमेरिका बस एक "घुड़की" में दूर कर सकता है। यही हुआ भी होगा।  मलेशिया और थाइलैण्ड के अलावे भारतीय राडारों ने भी विमान की गतिविधि को नोट किया है, मगर अमेरिकी घुड़की से सभी चुप हैं। (ध्यानरहे, "पुरुलिया" हथियार काण्ड वाले विमान के पायलट किम डेवी केरहस्योद्घाटन के अनुसार उसका विमान भारत सरकार की अनुमति से ही उड़ान भर रहा था-मगर भारत सरकार ने आज तक इसे स्वीकार नहीं किया है।)
उत्तरी सुमात्रा, दक्षिण भारत होते हुए विमान मालदीव में उतरता है और वहाँ वह ईंधन लेता है। मालदीव भी चुप है- अमेरिकी घुड़की से। इसके बाद विमान दियेगो गार्सिया पहुँचता है। विमान से कार्गो तथा ब्लैक बॉक्स निकाला जाता है। यात्रियों को किसी प्राकृतिक तरीके से- जैसे, ऑक्सीजन की कमी- सदा के लिए सुला दिया जाता है। इसके बाद विमान को रिमोट कण्ट्रोल से उड़ाकर दक्षिणी हिन्द महासागर में कहीं डुबो दिया जाता है। ताकि ऐसा लगे कि ईंधन की कमी से विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया हो।
इजरायल के अलावे ऑस्ट्रेलिया भी इस खेल में अमेरिका का सहयोगी है। चीन को अपने यात्रियों की कम, अपने शीर्ष रक्षा वैज्ञानिकों की चिन्ता ज्यादा है।
काली तस्वीर

अब उस वेबसाइट की खबर, जो एक काली तस्वीर के आधार पर गढ़ी गयी है। इस तस्वीर को अपने डेस्कटॉप पर सेव करके आप भी अगर इसकी Properties देखें, तो पायेंगे कि यह तस्वीर एप्पल आइफोन से खींची गयी है 18 मार्च को। तस्वीर काली इसलिए है कि इसे अन्धेरे कमरे में किसी तरह से खींचा गया है। वेबसाइट के दावे के अनुसार, तस्वीर के साथ निम्न सन्देश भी था:
"हमारे विमान के अपहरण के बाद अज्ञात सैन्यकर्मियों द्वारा मुझे बन्धक बनाकर रखा गया है (आँखों पर पट्टियाँ बाँधकर)। मैं आई.बी.एम. में काम करता हूँ और मैं अपने सेलफोन को चड्ढी में छुपाने में सफल रहा था। मुझे अन्य यात्रियों से अलग कर दिया गया है और मैं एक सेल में हूँ। मेरा नाम फिलिप वुड है। मुझे लगता है, मुझे नशा भी दिया गया है क्योंकि मैं ठीक से सोच नहीं पा रहा हूँ।"(“I have been held hostage by unknown military personal after my flight was hijacked (blindfolded). I work for IBM and I have managed to hide my cellphone in my ass during the hijack. I have been separated from the rest of the passengers and I am in a cell. My name is Philip Wood. I think I have been drugged as well and cannot think clearly.”)

एप्पल आईफोन जानता है कि वह कहाँ पर है। वेबसाइट के अनुसार, itouchmap.com की मदद से पता चलता है यह तस्वीर निम्न अक्षांश-देशान्तर पर ली गयी हैं:
अक्षांश: -7 18 58.3
देशान्तर: 72 25 35.6
...और यह स्थान दियेगो गार्सिया के निकट का है।
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शुक्रवार, 4 अप्रैल 2014

160. भारतीय लोकतंत्र का मजाक



       देश में ये जो सैकड़ों की संख्या में क्षेत्रीय राजनीतिक दल हैं, जैसे कि सपा-बसपा, राजद-जदयू, तृणमूल-झामुमो, द्रमुक-अन्ना द्रमुक, तेदेपा-टीआरएस, शिवसेना-मनसे, अगप-एमएनएफ, अकाली-हविपा, वगैरह-वगैरह, इनमें से किसी से भी हम "अन्तर्राष्ट्रीय समझ" की उम्मीद नहीं रख सकते। यानि इनके ख्याल में कभी यह बात आ ही नहीं सकती कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, दुनिया का सबसे बड़ा चुनाव यहाँ होने जा रहा है और दुनिया के सभी प्रमुख राष्ट्र उत्सुकता के साथ इस ओर देख रहे हैं। ये दल कोल्हू के बैल या कुएँ के मेंढ़क हैं- मुफ्त धोती-साड़ी, दो रुपये किलो अनाज, मुफ्त साइकिल-लैपटॉप से आगे ये नहीं सोच सकते।
       मगर काँग्रेस, भाजपा और 'आप' से हम उक्त "अन्तर्राष्ट्रीय उत्सुकता" के प्रति सजगता की उम्मीद रख सकते हैं। लेकिन यह हो क्या रहा है?
       काँग्रेस की अध्यक्षा दिल्ली के शाही इमाम से मिलकर प्रार्थना कर रहीं हैं कि वे मुसलमानों द्वारा थोक मतदान करने का फतवा जारी करें। मोहतरमा, आपके परिवारवालों ने इस देश की जनता को- खासकर, पिछड़ों तथा मुसलमानों को जानबूझ कर जाहिल बना रखा है दशकों से- ताकि आसानी से इनसे वोट लिया जा सके। अभी भी आप इसी नीति पर चल रही हैं?
       उधर जोरहाट में इवीएम मॉक टेस्ट के दौरान एक ऐसी मशीन निकली, जिसका हर बटन भाजपा को वोट दे रहा था। क्या ऐसी एक ही मशीन होगी? जी नहीं, हजारों होंगी। एक तो गलती से प्रशिक्षण कार्यक्रम में आ गयी। बाकी का इस्तेमाल चुनाव के दौरान ही होगा। अगर मैं मुख्य चुनाव आयुक्त होता, तो इस घटना के बाद सारी चुनावी प्रक्रिया को स्थगित कर देता और ईवीएम मशीन चाहे लाखों की संख्या में हों, या करोड़ों की, सबकी जाँच करवाता- उसके बाद ही चुनाव की तिथियों की फिर से घोषणा करता। जून में संसद का गठन न होने से कोई आसमान नहीं टूट जायेगा!
       और 'आप'? कन्धमाल से इसने एक ऐसे प्रत्याशी को मैदान से उतारा है, जिसपर 28 आपराधिक मामले दर्ज हैं! मिस्टर अरविन्द केजरीवाल, व्हाट द हेल इज दिस? दिस वे यू आर गोइंग टू रिफॉर्म द इण्डियन पॉलीटिक्स!
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       मजाक बना कर रख दिया गया है भारतीय लोकतंत्र का!