रविवार, 23 जून 2013

145. देवभूमि में आपदा






देवभूमि में आयी आपदा से मैं दुःखी तो हुआ। पर इसपर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त करने की मेरी इच्छा नहीं हुई। (वैसे, कुछ समय मैं नेट से दूर भी रहा।) 
हर कोई जानता है कि इस क्षेत्र में न पक्की सड़कें बननी चाहिए, न कंक्रीट निर्माण होना चाहिए और न ही मोटर गाड़ियाँ चलनी चहिए। अगर ये तीनों बहुत जरूरी हों, तो इनकी एक सीमा तय होनी चाहिए। 
खासकर, यहाँ नदियों पर बाँध तो यहाँ बनने ही नहीं चाहिए।
मगर ये सारे काम यहाँ अन्धाधुन्ध तरीके से हो रहे हैं।
पता चला कि पहले 20 से 40 वर्षों के अन्दर बादल फटने की घटनायें घटती थीं, मगर पिछ्ले कुछ वर्षों से हर साल ऐसा हो रहा है।
यह भी पता चला कि अँग्रेजों ने इन पहाड़ों पर 'चीड़' बोये, जो न तो मिट्टी को जकड़ते हैं, न ही पानी को सोखते हैं। अँग्रेजों के बाद यहाँ चीड़ के स्थान पर फिर से अखरोट, बुरांश इत्यादि स्थानीय किस्म के के पेड़ बोये जाने चाहिए थे।
यह जानकर मैं तो दंग रह गया कि इस क्षेत्र में छोटे-बड़े लगभग 500 बाँध बनाने की तैयारी चल रही है! ...ज्यादातर पर काम चल भी रहा है! (पिछले साल बद्रीनाथ की यात्रा के दौरान अलकनन्दा पर बन रहे एक विशाल बाँध का निर्माण कार्य मैंने भी देखा।) यह भी जानकारी मिली कि यहाँ की हर नदी को सुरंग में डालने की योजना है।
लगे हाथ अगर राजनीति की बात की जाय, तो सबको पता होना चाहिए कि "अर्थनीति" और "विकास" से जुड़ी नीतियों के मामले में दोनों राष्ट्रीय दलों की सोच में रत्तीभर भी अन्तर नहीं है। जहाँ तक मेरी जानकारी है- हजारों वर्षों से अविरल बहती गंगा माता को "कुछ घण्टों के लिए रोक देने" का अपयश (टिहरी बाँध के निर्माण के दौरान भगीरथी को 3 या 4 सुरंगों में डाला जा रहा था- तब यह घटना घटी थी- हालाँकि यह 'हाइलाईट' नहीं हुई) अटल जी के सर पर ही आता है। (अँग्रेजों ने भी ऐसी हिमाकत नहीं की थी।)  
*** 
'फेसबुक' पर 50 साल पुरानी केदारनाथधाम की इस तस्वीर को देखकर मुझे एक बात याद आ गयी- इसलिए आज मैं अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहा हूँ। मेरे घोषणापत्र के 'शुरुआती संस्करण' में पर्यावरण अध्याय के अन्तर्गत एक विन्दु यह था कि हिमालयी पर्यटन एवं तीर्थस्थलों की यात्रा पर 5 से 7 वर्षों का प्रतिबन्ध लगाया जायेगा ताकि वहाँ का पर्यावरण 'प्राकृतिक' रुप फिर से प्राप्त कर सके और इस दौरान पर्यटन से आय प्राप्त करने वाले स्थानीय लोगों के लिए वैकल्पिक रोजगार या नियमित मुआवजे की व्यवस्था की जायेगी। 
बाद में इस विन्दु को मैंने हटा दिया- क्योंकि मुझे लगा कि लोग इसका विरोध कर सकते हैं। 
...आज देखिये.... मैं कितना सही था! प्रकृति ने खुद ही 3-4 वर्षों के प्रतिबन्ध का इन्तजाम कर दिया!! 

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