कार्टून: फेसबुक पेज "पवन टून" से साभार |
जैसे महाभारत में
सिर्फ कृष्ण ही कृष्ण छाये हुए थे, वैसे ही देवभूमि की त्रासदी में बस भारतीय थलसेना,
वायुसेना और भारत-तिब्बत सीमा वाहिनी के जवान ही जवान नजर आ रहे हैं- चारों तरफ-
बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक को बचाते हुए। कहाँ है मोटी पगार पाने वाला सरकारी
अमला? कहाँ हैं, बीडीओ, सीओ, डीसी, डीडीसी तथा उनके स्टाफ वगैरह? कहाँ है आपदा प्रबन्धन
वाला सरकारी विभाग?
मुझे 2008 की कोसी की
प्रलयंकारी बाढ़ याद आ रही है। (उस वक्त मैं पूर्णिया में ही था- जब नेपाल की तराई
में वीरनगर बराज का 'कुसहा' बाँध टूटा था और कोसी ने अपना रास्ता बदलते हुए रौद्ररुप धारण कर
लिया था।) नीतिश बाबू को गुमान था कि उनके सुशासनी अफसर और कर्मी सब सम्भाल लेंगे।
मगर या तो वे अफसर-बाबू मैदान छोड़कर भाग खड़े हुए थे, या फिर पॉलीथीन शीट खरीदने के
लिए कमीशन तय करने में जुट गये थे। तीन दिनों तक लोग तिल-तिल कर मरते रहे। चौथे
दिन जब सेना उतरी, तब जाकर लोगों को सुरक्षित स्थानों तक लाने का अभियान शुरु हुआ।
आखिर सैनिकों के
भरोसे कब तक काम चलेगा?
आखिर नागरिक
अफसर-कर्मी कब अपनी जिम्मेवारी समझेंगे??
क्या राहत कार्यों के
लिए अलग से एक सेना नहीं होनी चाहिए???
***
अगर मन्थन किया जाय, तो
दो निष्कर्ष सामने आयेंगे-
एक- देश के
किशोरों-युवाओं के लिए "सैन्य शिक्षा" आवश्यक होनी चाहिए।
दो- राहत-कार्यों के
लिए अलग से एक सेना होनी चाहिए।
***
मैंने बहुत पहले से ही
इन विषयों को अपने घोषणापत्र में शामिल कर रखा है-
28.4 उच्च विद्यालयों में (यानि 7 वीं से 12 वीं कक्षा तक)
यूनिफ़ॉर्म और सैन्य शिक्षा को आवश्यक बनाया जाएगा- हालाँकि सैन्य शिक्षा कड़ाई से
नही दी जाएगी।
40.1 सैन्य-जीवन एक पेशा तो है ही, इसे 'सैन्य-शिक्षा' के रूप में भी अपनाया जाएगा और इसके लिए दसवीं पास विद्यार्थियों को 8
वर्षों की सामान्य सेवा तथा 2 वर्षों की आरक्षित सेवा की शर्तों पर सेना में भर्ती
किया जाएगा।
40.2 'सेना मुक्त
विश्वविद्यालय' की स्थापना की जायेगी, जो सैनिकों को उनकी 8 वर्षों की सेवा के दौरान स्नातकोत्तर (एम.ए.) स्तर तक की शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था करेगा।
40.3 न्यूनतम 8 वर्षों की 'सैन्य शिक्षा प्राप्त' युवाओं को अन्यान्य सरकारी/निजी नौकरियों
में प्राथमिकता एवं वरीयता दी जायेगी; या फिर, 20 प्रतिशत अंकों का ‘ग्रेस’ उन्हें दिया जाएगा।
39.7 विभिन्न प्रकार की त्रासदियों से निपटने के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित एवंसुसज्जित एक 'देवदूत' बल का गठन किया जाएगा। (इनका निवास जिला स्तर पर बनने वाला 'खेल
गाँव' (क्रमांक 26.6) होगा- इस प्रकार,
आपात्कालीन स्थितियों में राहत कार्य का अपना प्राथमिक कर्तव्य
निभाने के अलावे बाकी समय में वे 'खेल गाँव'
की देखभाल भी कर सकेंगे।)
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अन्त में- यह सही है कि भारतीय वायु सेना में रहते हुए मैंने किसी
बचाव कार्य में भाग नहीं लिया, मगर मुझे गर्व है कि मुझे अपनी अपनी युवावस्था के
20 साल इस सेना को प्रदान करने का अवसर मिला।
जय हिन्द ... जय हिन्द की सेना !
जवाब देंहटाएंआज की हकीकत यही है कि सेना की सहायता के बिना कोई भी बचाव कार्य पूर्ण ही नहीं हो सकता है !!
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