देश की जनता काँग्रेस के कुशासन (महँगाई, भ्रष्टाचार, घोटाले
जिसके परिणाम हैं) से त्रस्त थी ही, लगता है, केन्द्र में क्षेत्रीय दलों के
अनावश्यक हस्तक्षेप से भी वह झल्लायी हुई थी। लो अब! भ्रष्ट काँग्रेस को पटखनी देने के साथ-साथ जनता ने
क्षेत्रीय दलों को भी चारों खाने चित्त कर दिया! करो अब हस्तक्षेप केन्द्र में!
अखबारों/चैनलों के बुद्धीजीवि अक्सर कहा करते थे कि अब तो गठबन्धन सरकारों का ही
दौर है! अब वे भी देखें कि जनता अब तानाशाही किस्म की सरकार पसन्द करने लगी है।
बिना विपक्षी दल की संसद को अब तानाशाही सरकार नहीं, तो और क्या कहा जाय? कहा जा
सकता है कि बड़े अरसे बाद संघ की मुराद पूरी हुई है।
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इस अवसर पर नरेन्द्र मोदी जी को बधाई देने के
साथ-साथ मैं नेताजी सुभाष का एक कथन उद्धृत करना चाहूँगा, जिसे उन्होंने आजाद
हिन्द फौज की कमान थामने के बाद सैनिकों को सम्बोधित करते हुए कहा था:
“...जैसा कि मैंने प्रारम्भ में कहा, आज
का दिन मेरे जीवन का सबसे गर्व का दिन है। गुलाम लोगों के लिए इससे बड़े गर्व, इससे
ऊँचे सम्मान की बात और क्या हो सकती है कि वह आज़ादी की सेना का पहला सिपाही बने।
मगर इस सम्मान के साथ बड़ी जिम्मेदारियाँ भी उसी अनुपात में जुड़ी हुई हैं और मुझे
इसका गहराई से अहसास है। मैं आपको भरोसा दिलाता हूँ कि अँधेरे और प्रकाश में, दुःख
और खुशी में, कष्ट और विजय में मैं आपके साथ रहूँगा।..."
जाहिर है, बड़ी सफलता बड़ी जिम्मेवारी लेकर आती है। नीतिश कुमार अपनी ऐसी ही
सफलता को पचा नहीं पाये। मोदी जी
उनके मुकाबले काफी परिपक्व हैं। आशा है, इस सफलता के बाद और ज्यादा जिम्मेदार बन
जायेंगे।
***
मोदी जी के मन में क्या है, पता नहीं। अगर
वे 100 करोड़ "भारतीयों" के लिए नीतियाँ बनाते हैं, तो वे एक महान
प्रधानमंत्री कहलायेंगे, और अगर वे 10-20 करोड़ "इण्डियन्स" के लिए ही
नीतियाँ बनाते रह जाते हैं (जो गलती वाजपेयी जी ने की थी), तो उनसे ज्यादा- मेरे
हिसाब से- यह देश की बदनसीबी होगी। आखिर किस पर भरोसा करें भारतीय?
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अन्त में, हमारे झारखण्ड के 14 में से 13
सीटों को भाजपा ने जीता है। (शिबू सोरेन तक हार गये!) एक ही सीट वह हारी है, और दुर्भाग्य
से, यह वही संसदीय सीट है, जिसमें मैं रहता हूँ... अफसोस!
16 मई की रात टीवी पर समाचार चैनलों द्वारा दिखाये गये आँकड़ों के आधार पर मैंने यह लिखा कि झारखण्ड में 14 में 13 सीटें भाजपा को मिली हैं। अगली सुबह पता चला कि 13 नहीं, 12 सीटें मिली हैं और शिबू सोरेन जीते हैं। जाहिर है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जल्दीबाजी की होड़ में में ऐसी गलतियाँ करता है। इस मामले में प्रिण्ट मीडिया ज्यादा गम्भीर है- उसका सम्पादन विभाग ज्यादा मुस्तैद रहता है। ...रेडियो की तो पूछिये ही मत- उसके शब्दों में वाकई "आकाशवाणी"-सा असर होता है। वहाँ तो एक शब्द भी गलत प्रसारित नहीं होना चाहिए! रेडियो वाले अपनी इस विश्वसनीयता को बनाये रखने में सफल भी रहे हैं।
***
पुनश्च-2: (18 मई को फेसबुक पर मैंने जो टिप्पणी की-)
भारत के संविधान की रक्षा करने तथा सरकारी आलमारियों की गोपनीयता बनाये रखने की शपथ लेने से अगर कोई प्रधानमंत्री इन्कार कर दे, तो देश का उत्थान पर्व उसी क्षण से प्रारम्भ हो जायेगा! अभी जो बहुमत मिला है, उसके तहत मोदी जी चाहें, तो ऐसा कर सकते हैं. मेरे हिसाब से "संविधान" तथा "गोपनीयता" शब्दों का इस्तेमाल किये बिना उन्हें कुछ वैसा ही शपथ लेना चाहिए, जैसाकि नेताजी सुभाष ने लिया था: “ईश्वर के नाम पर मैं यह पवित्र शपथ लेता हूँ कि मैं भारत को और अपने अड़तीस करोड़ देशवासियों को आजाद कराऊँगा। मैं सुभाष चन्द्र बोस, अपने जीवन की आखिरी साँस तक आजादी की इस पवित्र लड़ाई को जारी रखूँगा। मैं सदा भारत का सेवक बना रहूँगा और अपने अड़तीस करोड़ भारतीय भाई-बहनों की भलाई को अपना सबसे बड़ा कर्तव्य समझूँगा। आजादी प्राप्त करने के बाद भी, इस आजादी को बनाये रखने के लिए मैं अपने खून की आखिरी बूँद तक बहाने के लिए सदा तैयार रहूँगा।”
हालाँकि उम्मीद कम ही है कि ऐसा कुछ होगा...
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पुनश्च: 16 मई की रात टीवी पर समाचार चैनलों द्वारा दिखाये गये आँकड़ों के आधार पर मैंने यह लिखा कि झारखण्ड में 14 में 13 सीटें भाजपा को मिली हैं। अगली सुबह पता चला कि 13 नहीं, 12 सीटें मिली हैं और शिबू सोरेन जीते हैं। जाहिर है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जल्दीबाजी की होड़ में में ऐसी गलतियाँ करता है। इस मामले में प्रिण्ट मीडिया ज्यादा गम्भीर है- उसका सम्पादन विभाग ज्यादा मुस्तैद रहता है। ...रेडियो की तो पूछिये ही मत- उसके शब्दों में वाकई "आकाशवाणी"-सा असर होता है। वहाँ तो एक शब्द भी गलत प्रसारित नहीं होना चाहिए! रेडियो वाले अपनी इस विश्वसनीयता को बनाये रखने में सफल भी रहे हैं।
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पुनश्च-2: (18 मई को फेसबुक पर मैंने जो टिप्पणी की-)
भारत के संविधान की रक्षा करने तथा सरकारी आलमारियों की गोपनीयता बनाये रखने की शपथ लेने से अगर कोई प्रधानमंत्री इन्कार कर दे, तो देश का उत्थान पर्व उसी क्षण से प्रारम्भ हो जायेगा! अभी जो बहुमत मिला है, उसके तहत मोदी जी चाहें, तो ऐसा कर सकते हैं. मेरे हिसाब से "संविधान" तथा "गोपनीयता" शब्दों का इस्तेमाल किये बिना उन्हें कुछ वैसा ही शपथ लेना चाहिए, जैसाकि नेताजी सुभाष ने लिया था: “ईश्वर के नाम पर मैं यह पवित्र शपथ लेता हूँ कि मैं भारत को और अपने अड़तीस करोड़ देशवासियों को आजाद कराऊँगा। मैं सुभाष चन्द्र बोस, अपने जीवन की आखिरी साँस तक आजादी की इस पवित्र लड़ाई को जारी रखूँगा। मैं सदा भारत का सेवक बना रहूँगा और अपने अड़तीस करोड़ भारतीय भाई-बहनों की भलाई को अपना सबसे बड़ा कर्तव्य समझूँगा। आजादी प्राप्त करने के बाद भी, इस आजादी को बनाये रखने के लिए मैं अपने खून की आखिरी बूँद तक बहाने के लिए सदा तैयार रहूँगा।”
हालाँकि उम्मीद कम ही है कि ऐसा कुछ होगा...
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