रविवार, 15 जुलाई 2012

देश व्यवस्था में “क्रान्तिकारी” बदलाव माँग रहा है...



अमेरीकी प्रभुत्व को चुनौती देते हुए तथा आर्थिक उदारीकरण के पहिए को उल्टी दिशा में घुमाते हुए मैं एक ऐसी समाजवादी व्यवस्था देश में कायम करना चाहता हूँ, जो देश को खुशहाल, स्वावलम्बी और शक्तिशाली बनायेगा
      अब तक मैं सोचता था कि ऐसा करने वाला मैं शायद विश्व का पहला शासक होऊँगा; मगर आज के दैनिक प्रभात खबर’ के सम्पादकीय पृष्ठ को देखकर मेरी आँखें खुलीं- (दक्षिण अमेरीकी देश) वेनेजुएला में राष्ट्रपति ह्यूगो शावेज के नेतृत्व में इस प्रयोग की शुरुआत हो चुकी है। मैं कितना बड़ा मूर्ख था कि इस जानकारी से अब तक मैं दूर था! (क्या इसमें मीडिया का हाथ है, जो उदारीकरण तथा अमेरीकी प्रभुत्व के खिलाफ जानेवाली खबरों को सेन्सर कर देती है? ‘प्रभात खबर’ की बात जरा अलग है- मैंने पहले भी लिखा था कि इसके सम्पादक हरिवंश जी के प्रति मेरी धारणा अच्छी है- वे बाकायदे सम्पादकीय धर्म निभाते हैं।)
      आज ओबामा के नेतृत्व वाला अमेरीका वैसी घिनौनी हरकत करने से बचेगा, जैसा अतीत में उसने घाना के अन्क्रूमा, चिली के अयेन्दे और मिश्र के सादात के खिलाफ किया था। वियेतनाम-जैसी गलती भी वह नहीं दुहराना चाहेगा। ऐसे में, मुझे पूरा विश्वास है कि शावेज अपने अभियान में सफल होंगे। आज उनके देश के अन्दर जो मुट्ठीभर अमीर उनका विरोध कर रहे हैं, कल को देश की खुशहाली देखकर वे भी शावेज के समर्थक बन जायेंगे- ऐसी मैं आशा करता हूँ। हालाँकि अमेरीका को बिलकुल शरीफ देश समझना भी भूल होगी। हो सकता है, अपनी नीति में परिवर्तन लाते हुए सेना के ‘जेनरलों’ के बजाय ‘अमीरों’ के माध्यम से ही सी.आई.ए. कोई खतरनाक चाल चल दे!  
      ***

      इसी अखबार के सामने वाले पृष्ठ पर तीन सामग्रियाँ छपी हैं- एक, नेतृत्वहीन राष्ट्रीय राजनीति!, दो, राज्य में सिमटे छत्रप और तीन, नेतृत्व की तलाश... चौराहे पर खड़ी पार्टियाँ
      मैं लम्बे समय से यही बात कहना चाह रहा हूँ कि हमारे देश का संसदीय लोकतंत्र बीमार हो चुका है- इसे शल्यक्रिया की जरुरत है। देश को फिलहाल एक तानाशाही लोकतंत्र की जरुरत है, न कि संसदीय! एक तानाशाह ही संसदीय लोकतंत्र को बेहोश करके उसकी शल्यक्रिया कर सकता है और उसके अन्दर से कैन्सर की चारों गाँठों (भ्रष्ट राजनेता, भ्रष्ट उच्चाधिकारी, भ्रष्ट अरबपति और माफिया सरगना) को निकाल बाहर कर सकता है। बेशक, यह तानाशाह निरंकुश नहीं होगा, बल्कि एक चाणक्य सभा के दिशा-निर्देशन में शासन करेगा।
      आज अन्ना हजारे और स्वामी रामदेव जी यह आशा रखते हैं कि वे आन्दोलन तथा अनशन करके वर्तमान सरकारों को ही भ्रष्टाचार के खिलाफ कदम उठाने तथा कालेधन को देश के काम में लगाने के लिए बाध्य कर सकते हैं। मैं इससे सहमत नहीं हूँ। देश का एक-एक राजनेता, एक-एक राजनीतिक दल भ्रष्टाचार और कालेधन का समर्थक है- आप किसी से उम्मीद नहीं रख सकते। इन्हें दस वर्षों के लिए निकोबार के किसी टापू पर छुट्टी बिताने के लिए भेजना ही होगा- तभी देश में कुछ अच्छा किया जा सकता है।
      ध्यान रहे- राष्ट्रीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों का हावी होना कोई शुभ लक्षण नहीं है। और राष्ट्रीय दलों की हैसियत अब राष्ट्रीय नहीं रही।
      देश व्यवस्था में क्रान्तिकारी बदलाव माँग रहा है- सड़े-गले घाव पर पट्टियाँ बदलने से अब कुछ नहीं होगा। देश के नौजवान जितनी जल्दी मेरी बात समझेंगे, उतना ही अच्छा! 

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