मुझे कभी-कभी हँसी आती है। जिस “ज्ञान” की प्राप्ति मुझे 1995-96 में हो गयी थी कि देश का कोई भी
(दुहरा दूँ- कोई भी!) राजनीतिक दल देश का भला नहीं कर सकता, उस ज्ञान की प्राप्ति
अब जाकर लोगों को धीरे-धीरे हो रही है....!
आज के ‘प्रभात खबर’ में छपा आलेख “एक कुजात
स्वयंसेवक का पत्र” इसका उदाहरण है।
बचपन में
मैं भी संघ की शाखाओं में गया हूँ, मगर जब मुझपर “बैठकों” में शामिल होने
के लिए दवाब डाला जाने लगा, तो मेरे पिताजी ने मुझे सावधान कर दिया था- बैठकों में
तुम्हारी मगजधुलाई (ब्रेनवाशिंग) हो सकती है! ...और मैं “सावधान” हो गया था... वहाँ से मैं जो भी, खासकर- देशभक्ति, और जितना भी सीख सकता था, उतना मैंने सीखा; इसके लिए मैं संघ का आभार मानता हूँ, मगर मैंने
अपनी मगजधुलाई नहीं होने दी। जो कट्टर स्वयंसेवक हैं संघ के, वे हो सकता है, मेरी
इन बातों का बुरा मान जायें, मगर मैं जानता हूँ कि मैं सही हूँ। मैं आज “गलत को गलत व सही
को सही” कहने का साहस रखता हूँ- यह साहस कट्टर समर्थकों में नहीं
पाया जाता- चाहे वे किसी भी विचारधारा, किसी भी दल के हों- वे बस “येन-केन-प्रकारेण” अपने दल, अपनी
विचारधारा का बचाव करते रहते हैं; और जब करना मुश्किल हो जाता है, “तुम्हारे दाग
मेरे दाग से ज्यादा गहरे हैं” की नीति पर उतर जाते हैं।
खैर, मैं
जानता हूँ कि आज की तारीख में कोई भी दल देश का, देश की आम जनता का भला करने की
स्थिति में नहीं है, इसलिए मैं वर्तमान संसदीय प्रणाली को दस वर्षों के लिए
निलम्बित करने की वकालत करता हूँ।
("हमें यह पत्र राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के पुराने
कार्यकर्ता ने भेजा है. यह पत्र राजनीति में आये स्खलन को दर्शाता है. यह
पत्र उन तमाम ईमानदार और निष्ठावान राजनीतिक कार्यकर्ताओं की स्थिति का भी
बयान करता है. हालांकि यह पत्र भाजपा के पूर्णकालिक कार्यकर्ता रहे व्यक्ति
का है, परंतु उन्होंने जो मुद्दे उठाये हैं, वह सभी राजनीतिक दलों में
एक-सी है. हर दल में चापलूसों और अवसरवादियों को ही बढ.ावा मिलता है. पत्र
लेखक विज्ञान में स्नातक हैं. छात्र जीवन से ही विद्यार्थी परिषद और संघ के
सदस्य रहे हैं. महर्षि दयानंद-विवेकानंद, दीनदयाल उपाध्याय, राममनोहर
लोहिया, जयप्रकाश नारायण, गुरुजी गोलवलकर से प्रभावित हैं."- http://epaper.prabhatkhabar.com/epapermain.aspx )
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