एडवर्ड
स्नोडेन प्रकरण सामने आने के बाद मैं बदमाश शासक-प्रशासकों के किस्मों पर विचार कर
रहा था।
यहाँ यह स्पष्ट कर दूँ कि बदमाश सिर्फ शासक और
प्रशासक ही होते हैं- किसी भी देश के आम देशवासी आमतौर पर अच्छे होते हैं- ऐसा मेरा
मानना है। व्यक्तिगत रुप से मैं चीन, जापान, कोरिया, रूस, अमेरिका, ब्रिटेन, भारत,
पाक, बाँग्ला इत्यादि सभी देशों के "आम देशवासियों" को अच्छा मानता हूँ।
मेरा यह भी मानना है कि अगर "शासक"
ईमानदार और सख्त हो जाये, तो "प्रशासक" तुरन्त सुधर जाते हैं, जिससे सारी
व्यवस्था भी चाक-चौबन्द हो जाती है; अन्यथा शासन-प्रशासन-व्यवस्था इतना नीचे गिर
जाती है कि उसकी व्याख्या के लिए घृणित शब्दों का इस्तेमाल करना पड़ेगा- जो फिलहाल
मैं नहीं करना चाहता।
खैर, तो मैं इस
निष्कर्ष पर पहुँचा कि ये बदमाश तीन तरह के होते हैं-
1. खाँटी बदमाश। ये खुले आम
बदमाशी करते हैं- जो करते हैं उसे सीना ठोंकर स्वीकार भी करते हैं। लोक-लिहाज की
परवाह नहीं करते। चीन और उत्तर कोरिया-जैसे देशों के शासकों-प्रशासकों को इस
श्रेणी में लाया जा सकता है। व्यवस्था बदलने पर ये आम तौर पर फाँसी ही चढ़ते हैं।
2. शरीफ बदमाश। ये बातें
अच्छी करते हैं, मगर काम गुप्त रुप से बुरे करते हैं। जैसे, "लोकतंत्र"
एवं "मानवाधिकार" की बातें करना और "बदनाम तानाशाहों" की मदद
करना और लोगों के "ईमेल की जासूसी" करवाना। अमेरिका और ब्रिटेन-जैसे
देशों के शासकों-प्रशासकों को इस श्रेणी में लाया जा सकता है। हाँ, पकड़े जाने पर
ये आम तौर पर दोष स्वीकार करते हैं, माफी माँगते हैं, इस्तीफा देते हैं और सजा भी
स्वीकार करते हैं।
3. चोरी और
सीनाजोरी वाले बदमाश। ये बेशर्म किस्म के बदमाश होते हैं, इनकी चमड़ी गैण्डे से
भी ज्यादा मोटी, इनका दिमाग लोमड़ी से भी ज्यादा शातिर और इनकी भूख हाथी से ज्यादा तेज
होती है। ये आपके सामने मुर्गे की टाँग भकोसेंगे, मगर कहेंगे यही कि वे शुद्ध
शाकाहारी हैं! आप कहेंगे- आप तो मुर्गे की टाँग चेप रहे हैं, वे कहेंगे- यह तो
विरोधियों की साजिश है मुझे बदनाम करने की। भारत, पाकिस्तान-जैसे देशों के
शासकों-प्रशासकों को इस श्रेणी में रखा जा सकता है। ऐसे देश में अगर एक न्यायाधीश
की आँखों के सामने कत्ल हो जाय, तो भी उस न्यायाधीश को बीस से तीस साल लग जाते
हैं, हत्यारे को सजा देने में। एक डीसी के सामने गिनकर दस शव पड़े होंगे, तो भी वह
यही कहेगा कि जाँच बैठायी गयी है, रिपोर्ट आने के बाद ही मृतकों की संख्या बतायी
जा सकती है। ऐसे देशों में पुलिस को हफ्ता पहुँचाये बिना कोई भी गैर-कानूनी काम
करना असम्भव होता है। जाहिर है कि यहाँ ये न दोष स्वीकार करते हैं और न ही इन्हें सजा
मिलती है। मुकदमे तब तक चलते हैं, जबतक कि इनकी टाँगें कब्र में न लटक जायें और
फिर स्वास्थ्य कारणों से उन्हें जेल नहीं भेजा जाता।
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सही कहा है !!
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