यह देखते हुए भी कि भारतीय वैज्ञानिकों, तकनीशियनों, डिजाइनरों,
इंजीनियरों इत्यादि ने मिलजुल कर हाइड्रोजन बम का निर्माण किया है, सुपर कम्प्यूटर
बनाया है, कृत्रिम उपग्रह प्रक्षेपक यान बनाये हैं, अन्तर्महाद्वीपीय बैलेस्टिक
सहित दर्जनों तरह के मिसाइल बनाये हैं; अगर मैं यह कहूँ कि ये अपनी सेनाओं की
जरुरत के अनुसार रायफल, मशीनगन, तोप, टैंक, राडार, युद्धक विमान, युद्धक जलपोत
वगैरह नहीं बना सकते, बल्कि विदेशी शस्त्र निर्माता ही हमारी सेनाओं की जरुरतों को
पूरा कर सकते हैं, तो....
....या तो मेरी रगों में दौड़ता हुआ खून सच्चा भारतीय नहीं है;
...या मैं एक कायर हूँ- क्लीव, भीरू;
...या फिर, मैं दुनिया के बड़े-बड़े शस्त्र निर्माताओं से मोटी
दलाली पाने का लालच मन में पालता हूँ!
(यह मेरी अपनी भावना है, किसी और पर लागू होना जरूरी नहीं है।)
***
हाँ, तब है कि भारतीय युद्धक साजो-सामान बनाने वाले विभाग को
आई.ए.एस अफसरों तथा राजनेताओं के चंगुल से पूरी तरह मुक्त रखना होगा! मेरी बात पर
यकीन न हो, तो 'इसरो' को आई.ए.एस अफसरों के अधीन करके देख लिया जाय, कि दो वर्षों
के अन्दर इसकी कैसी दुर्गति होती है! (चन्द देशभक्त, ईमानदार, साहसी आधिकारियों से
क्षमाप्रार्थना सहित मैं यह कह रहा हूँ।)
***
अन्त में, मेरा एक सवाल, जिसे मैंने अपने 'घोषणापत्र' में भी
उठाया है:
जो देश अपनी रक्षा-प्रतिरक्षा सामग्रियों का निर्माण/उत्पादन स्वयं
ना कर सके, उसे स्वतंत्र रहने का नैतिक अधिकार है?
(क्रमांक
50.8)
***
जब वाजपेयी जी के सामने स्वदेशी अर्थव्यवस्था का मॉडल रखा
गया था, तो उनका सवाल था- व्हेयर इज द कैपिटल?
फिर इतिहास को दुहराया जा रहा है...
अरे, सांसदों/विधायकों के वेतन-भत्तों-सुविधाओं को
चौथाई करो, सरकारी वेतन को आधा करो,
लॉकरों की गोपनीयता समाप्त
करो, आयकर विभाग/प्रवर्तन निदेशालय/सीबीआई को देशी कालाधन जब्त करने की
खुली छूट दो, बैंकों के बड़े कर्जदारों की सम्पत्ति जब्त करो, ऐसे
दर्जनों उपाय हैं पूँजी की व्यवस्था करने के लिए.
आवारा पूँजी के भरोसे यह देश कभी सम्मानजनक स्थिति नहीं पा
सकेगा दुनिया में.
मुझे लगता है, देश को एक ऐसे राष्ट्रनायक की जरुरत है, जिसका
मस्तिष्क यानि जिसकी प्रतिभा सुभाष-जैसी हो और जिसका हृदय यानि जिसकी भावना
शास्त्री-जैसी. तभी इस देश में बदलाव आयेगा.
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