सच कहूँ, तो नरेन्द्र मोदी जी के नाम पर भाजपा को इस चुनाव में
ऐसा तगड़ा बहुमत मिलेगा- ऐसी उम्मीद मुझे नहीं थी। दूसरी तरफ, जहाँ तक मैंने जाना है, व्यक्तिगत रुप से मोदी
जी बहुत ही चरित्रवान व्यक्ति हैं। थ्योरी कहती है, एक चरित्रवान व्यक्ति को अगर
पूर्ण बहुमत मिल जाय 5 वर्षों तक शासन करने का, तो वह व्यक्ति चाहे, तो देश की
तकदीर बदल सकता है!
बस यहीं से मेरे मन में अन्तर्द्वन्द शुरु
हो गया था। क्या मोदी जी ही वह राष्ट्रनायक हैं, जिनके नेतृत्व में भारत का पुनरुत्थान
होना है? अगर ऐसा ही है, तो साल भर से मेरी अन्तरात्मा मुझे गलत सन्देश क्यों दे
रही थी?
मगर जल्दी ही मुझे अपनी उम्मीदों को ताबूत
में डालने के लिए मजबूर होना पड़ा। यह काम क्रम से हुआ-
पहली
कील- सुभाष को भारतरत्न। शपथग्रहण से ऐन पहले खबर फैलाई गयी कि मोदी जी अपनी सरकार
की तरफ से जो पहला काम करेंगे, वह है नेताजी सुभाष को भारतरत्न देना। मुझे आश्चर्य
हुआ कि नरेन्द्र मोदी-जैसा गम्भीर राजनेता भला ऐसा शिगूफा कैसे छुड़वा सकता है अपनी
सोशल मीडिया की टीम के माध्यम से? नेताजी सुभाष को 1992 में भारतरत्न दिया जा चुका
है और देकर वापस लिया जा चुका है। बिना उनकी मृत्यु के रहस्य से पर्दा उठाये
दुबारा ऐसी कोशिश को मूर्खता ही कहा जायेगा। मुझे अब तक समझ में नहीं आया कि इस
शिगूफे के पीछे वास्तविक कारण क्या था? अगर अटल जी को देना है, तो ऐसे ही दे
दीजिये- कौन रोकेगा?
दूसरी कील- पाकिस्तान प्रेम। सार्क के सभी देशों से मेहमान आये थे शपथग्रहण में, मगर
पाकिस्तान को ज्यादा तवज्जो देना मुझे ठीक नहीं लगा।
तीसरी कील- 100 दिनों की मोहलत। शपथग्रहण के तुरन्त बाद मोदी जी ने जनता से 100 दिनों की
मोहलत माँग ली! क्यों? महँगाई कम करने के लिए कई आयोगों ने सुझाव दे रखे हैं। एक
आयोग के मुखिया आप स्वयं थे। सीधे उन सिफारिशों को अमल में लाने के बजाय 100 दिनों
की मोहलत। यह तो अच्छी बात नहीं हुई। आपने जो 10 सूत्री एजेण्डा पेश किया, उसमें
से भी महँगाई गायब!
चौथी कील- धारा 370। सरकार के गठन के बाद जनता उम्मीद करेगी कि सरकार महँगाई कम
करने तथा भ्रष्टाचार पर नियंत्रण के लिए ठोस कदम उठाये। मगर जनता अभी मुँह खोलती
कि उसके पहले ही धारा 370 का भावनात्मक मुद्दा उठा दिया गया। यह भी मुझे ठीक नहीं
लगा।
पाँचवी
कील- रॉबर्ट वढेरा का वीवीआईपी रुतबा।
वढेरा का यह रुतबा देश के माथे पर कलंक है। जिन देशों में सी या डी ग्रेड की
राजनीति चलती है, वहाँ की बात अलग है। मगर किसी सभ्य देश में, जहाँ राजनेताओं में
थोड़ी-बहुत शर्मो-हया पायी जाती हो, ऐसा नहीं होता होगा। इस रुतबे को कायम रखकर
मोदी जी ने यह संकेत दे दिया है अगले पाँच वर्षों में वढेरा के खिलाफ कोई जाँच
नहीं होगी- सजा तो भूल ही जाईये! (अब अगर उमा भारती जी ने उँगली भी उठाई वढेरा की
तरफ, तो शायद उमा जी ही निष्काषित हो जायें!) यह और बात है कि खुद मोदी जी चुनाव
से पहले भाषणों में वढेरा का मजाक उड़ाया करते थे- मगर अब वे उनके भी जमाई राजा हैं!
छठी कील- सुरंग? एक अपुष्ट खबर के अनुसार, 7 आरसीआर से साउथ ब्लॉक तक सुरंग बन रही
है मोदी जी के लिए- तकि आम लोगों की उन्हें नजर न लग जाय! यह और बात है कि चुनाव
से पहले इन्हीं आम लोगों को अपनी सभाओं में जुटाने के लिए उन्होंने क्या-क्या न
पापड़ बेले थे! कोई कहता है, सुरंग का काम मनमोहन जी ने शुरु करवाया था। सच्चाई
चाहे जो हो, मगर इतना जान लिया जाय कि ये सुरंग, ये बंकर किसी को परमाणु विकिरण से
तो बचा सकते हैं, मगर लोगों की बद्दुआ से नहीं!
सातवीं कील- रक्षा क्षेत्र में एफडीआई। इसपर पहले मैं लिख चुका हूँ (पिछले ही पोस्ट में)। दुहराना
नहीं चाहता। सीधी-सी बात, ऐसा चाहने का मतलब है- ....या
तो मेरी रगों में दौड़ता हुआ खून सच्चा भारतीय नहीं है; ...या मैं एक कायर हूँ-
क्लीव, भीरू; ...या फिर, मैं दुनिया के बड़े-बड़े शस्त्र निर्माताओं से मोटी दलाली
पाने का लालच मन में पालता हूँ!
आठवीं
कील- मनमोहन नीति। यह सही है कि चुनाव से पहले मोदी जी ने मनमोहन जी की
आर्थिक नीतियों के खिलाफ कभी कुछ नहीं कहा था- यानि मौन समर्थन दिया था। मगर बिना
कोई बदलाव लाये उनकी नीतियों को फिर से लागू करना कुछ जँच नहीं रहा है। बेकार ही
गया फिर तो यह चुनाव!
अब
आज की आखिरी दो कीलें:
नवीं
कील- अमेरिकी चौखट पर मत्था। खबर आयी की सितम्बर में मोदी जी अमेरिका जायेंगे। कोई
गंगाजी में गले तक पानी में डूबकर कहे कि यह सद्भावना यात्रा है, मगर मैं इसे नहीं
मानूँगा। मेरी नजर में इस यात्रा के दो ही उद्देश्य हैं- 1. एक कर्जदार या बन्धुआ
मजदूर के अगले वारिस का अपने महाजन की चौखट पर जाकर मत्था टेकना कि माई-बाप, हम
स्वावलम्बी या खुद्दार बनने की कोशिश हर्गिज नहीं करेंगे- आपके फेंके टुकड़ों पर ही
पलते रहेंगे और 2. अमेरिकी बहुराष्ट्रीय निगमों से चिरौरी कि साहेबान, आईये, अभी
भी बहुत सोना बचा है इस अभागे मुल्क में- लूटकर ले जाईये...
दसवीं कील- गैस का दाम दुगना। अम्बानी यही गैस बाँग्लादेश को दे रहा है 2.3 डॉलर में- 17
वर्षों का करार है, मगर भारत सरकार को वह देगा 8 डॉलर में! इसे कहेंगे खुली लूट!
जाहिर है, कि चुनाव में जिन उद्योगपतियों ने भी पैसे लगाये थे, सबको सूद सहित पैसे
वसूलने का पूरा मौका मोदी जी देने वाले हैं।
***
यानि मेरी अन्तरात्मा ने मोदी जी के बारे में जो संकेत दिये
थे, वे सही ही थे। उन्हें शब्दों में कुछ यूँ बयां किया था मैंने- 7 अगस्त 2012 को
अपने ही पोस्ट पर आयी एक टिप्पणी के प्रत्युत्तर में:
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पुनश्च (6/6/14): फिनिशिंग कील
ग्यारहवीं कील- बदायूँ काण्ड पर चुप्पी। आज बदायूँ बलात्कार
काण्ड के 10 दिन हो गये। (इस काण्ड के बाद तो मानो झड़ी लग गयी है उत्तर प्रदेश में
दुष्कर्मों की!) जहाँ तक मुझे ध्यान है, प्रधानमंत्री मोदी जी ने इस पर न दुःख
जताया है, न रोष, न क्षोभ; पीड़ित परिवार के प्रति न संवेदना व्यक्त किया है
उन्होंने, न ही त्वरित न्याय का भरोसा दिलाया है। कहा जा सकता है कि इतने बड़े देश
में इतना तो होता रहेगा- प्रधानमंत्री भला सब पर अपनी प्रतिक्रिया क्योंकर देने
लगे! ठीक है, फिर दामिनी काण्ड पर डॉ. मनमोहन सिंह की चुप्पी को क्यों उछाला गया? खुद
मोदी जी ने उन्हें "मौनमोहन सिंह" क्यों कहा? उन्होंने तो फिर भी नवें (या
आठवें) दिन अपनी चुप्पी तोड़ दी थी। आपने तो उनका कीर्तिमान भी तोड़ दिया आज! 10 दिन
हो गये... और कोई प्रतिक्रिया नहीं!
1. जिस प्रकार के क्रान्तिकारी परिवर्तनों (यानि विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ, अमेरिकी वर्चस्व, देशी पूँजीपतियों/उद्योगपतियों के दवाब के खिलाफ जाने) की जरुरत इस वक्त देश को है, उन्हें भाजपा या मोदीजी लागू नहीं कर पायेंगे.
2. "मेरा मन" ऐसा कहता है कि जब तक इस देश की जनता की "सारी उम्मीदें" एक-एक टूट नहीं जातीं, तब तक वे "लीक से हटकर" सोचने के लिए तैयार नहीं होंगे. और जब तक लीक से हटकर एक "नयी व्यवस्था" (टेम्प्रोरी ही सही) के बारे में लोग नहीं सोचते- सब कुछ ऐसे ही चलते रहेगा.