फण्डा साफ है- पहले सउदी अरेबिया को हथियार बेचो; सउदी अरेबिया उन
हथियारों के बड़े हिस्से को इस्लामिक स्टेट के आतंकवादियों को बेचेगा; ये आतंकवादी
इन हथियारों से कोहराम मचायेंगे; और जब पानी नाक तक पहुँचता हुआ मालूम पड़ेगा, तब
हम हथियार लेकर मैदाने-जंग में कूद पड़ेंगे- इन्सानीयत को बचाने के नाम पर!
हथियारों की बिक्री से कमाई हुई अलग और इन्सानीयत के रक्षक की पहचान मिली अलग!
यह खेल कोई पहला नहीं है। ओसामा बिन लादेन और उसके लोगों को फ्रीडम फाइटर बताते हुए पहले
उसे बड़े पैमाने पर हथियार तथा पैसे दिये गये थे; बाद में (जब बेरोजगारी के दौर में
जब वह भस्मासुर बन गया) उसे मारने के लिए फिर बड़े पैमाने पर पैसे तथा हथियार खर्च
किये गये।
अमेरिका सोचता था कि वह तो समुद्रों से
घिरा देश है- उसे भला आतंकवाद से क्या खतरा? इसलिए यह खेल वह लम्बे समय से खेल रहा
था। जब बिन लादेन ने उसकी खड़ी नाक पर डंक मारी, तब जाकर उसे पता चला कि आतंकवाद
क्या होता है!
जैसे जापान को परमाणु बम की विभीषिका क्या
होती है, यह पता है और वह परमाणु बम नहीं बनाता है। वैसे ही अमेरिका को भी WTC हमले के बाद आतंकवादियों को पोसने का काम
नहीं करना चाहिए था। मगर
अमेरिका एक बेशर्म राष्ट्र है- पैसे और ताकत का भुक्खड़! वर्ल्ड ट्रेड सेण्टर पर
इतने भीषण आतंकवादी हमले के बावजूद (इसके मास्टरमाइण्ड को मारने के कुछ समय बाद
ही) वह फिर वही खेल खेलने लगा।
कभी हमने सोचा कि आतंकवादियों के पास जो
हथियार, गोला-बारूद, विस्फोटक होते हैं, वे कहाँ से आते हैं? क्या उनकी अपनी फैक्ट्रियाँ
होती हैं? जी नहीं, उन्हें हथियार बेचते हैं अमेरिका, रूस, चीन-जैसे देश! हालाँकि
आतंकवाद के हल्के-फुल्के दो-चार दंश इन्हें भी झेलने पड़ते हैं, मगर हथियार सेक्टर
से मुनाफा इतना है कि इन दंशों को झेला जा सकता है। आखिर मरती तो आम जनता ही है!
कौन-सा राजनेता मर रहा है!
कुल मिलाकर, इन तथाकथित सभ्य एवं विकसित देशों
की हथियार लॉबी बहुत ही ताकतवर होती है, कोई भी सरकार उनके खिलाफ नहीं जा सकती; और
हथियारों, गोला-बारूद तथा विस्फोटकों का मार्केट बनाये रखने के ये देश ही पहले आतंकवादियों
को जन्म देते हैं, पालते-पोसते हैं, उन्हें रक्तपिपासु बनाते हैं और फिर अन्त में
मैदान में उतरकर उनमें से कुछ को मारते भी हैं।
अब सोचते रहिये कि असली आतंकवादी कौन है...
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