
रविवार, 10 मार्च 2013
115. "काली शक्ति" (The Dark Power)
लम्बे समय से
मेरे मन में यह सन्देह पल रहा है कि एक "काली शक्ति" है इस देश में,
जिसने गुप्त रुप से यह प्रण ले रखा है कि वह- 1. इस देश को अर्थिक रुप से दिवालिया
बनाकर रहेगी; 2. यहाँ राजनीतिक अराजकता या अस्थिरता के हालात पैदा कर के रहेगी; 3.
ऊपर से नीचे तक हर भारतीय को भ्रष्ट, बे-ईमान, चरित्रहीन बनाकर रहेगी, और 4. यहाँ
के सामाजिक ताने-बाने या यहाँ की सभ्यता-संस्कृति को तहस-नहस कर के छोड़ेगी!
मुझे लगता है कि
वह शक्ति बहुत ही शातिर है। बहुत ही ठण्डे दिमाग
से वह अपनी चालें चल रही है। एक-एक कर वह अपने सभी मनसूबों को पूरा कर रही है। उसने
अपने धुर विरोधियों तक को या तो काले जादू से सम्मोहित कर रखा है; या फिर, उनके
कच्चे चिट्ठों को दबाये रखकर उन्हें दब्बू बना रखा है! अपने मनसूबों की कामयाबी के
बाद इस देश से छू-मन्तर होने की फूलप्रूफ योजना भी उसने बना रखी है।
मेरे इस सन्देह को कल-परसों फिर बल मिला,
जब मुझे पता चला कि "आपसी सहमति से शारीरिक सम्बन्ध कायम करने" के लिए
उम्र सीमा 18 वर्ष से घटाकर 16 वर्ष की जा रही है! मैं इसे देश अगली पीढ़ी के
"चारित्रिक पतन" के लिए बड़ी ही सूझ-बूझ से रची जा रही एक साजिश मानता
हूँ! क्योंकि हम सब जानते हैं कि 16 वर्ष की उम्र में भारतीय किशोर आम तौर पर
मासूस एवं चरित्रवान होते हैं! (बाद में उनकी यह मासूमियत तथा आदर्शवादिता कहाँ खो
जाती है और क्यों वे "ऊपरी कमाई" वाली नौकरी तलाशने लगते हैं- इस पर अलग
से शोध की जरुरत है।)
***
थोड़ी देर के लिए
विषय से हटता हूँ।
गाँधीजी की "अहिंसा की जिद" के
चलते अगर "असहयोग आन्दोलन" विफल न हुआ होता, तो हमें 1922 में आजादी मिल
गयी होती। इसके 22 साल बाद ब्रिटिश सेना के भारतीय जवानों ने अगर "महान
ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति राजभक्ति" का परित्याग करते हुए नेताजी सुभाष का
साथ दिया होता, तो आजादी 1944 में मिल जाती। 1922 या 44 में मिली आजादी
"असली" आजादी होती। तब हम अँग्रेजों के किसी भी शर्त को मानने के लिए
बाध्य नहीं होते और (उसके "1935 के अधिनियम" को कचरे की पेटी में फेंकते
हुए) हमने अपना खुद का संविधान बनाया होता! बेशक, यह संविधान "भारतीय"
होता, जिसमें चाणक्य-जैसे विद्वानों की नीतियों तथा भारतीय सभ्यता-संस्कृति के
मूलभूत तत्वों का समावेश होता!
चाण्क्य की एक नीति यह भी है कि किसी राजा
की पत्नी विदेशी मूल की नहीं होनी चाहिए! जरा सोचिये... अगर इस नीति को हमारे
भारतीय संविधान में अपनाया गया होता, तो- बकौल नोस्त्रादमूस- तीन तरफ पानी से घिरे
देश में 'आकाश से उतरकर' कोई राजा नहीं बन सकता था, क्योंकि उसकी पत्नी विदेशी मूल
की होती! (मगर ऐसा हुआ। क्यों? क्योंकि "नियति" ने इसे तय कर रखा था।
तभी तो सैकड़ों साल पहले इसकी भविष्यवाणी हुई!)
अगर भारतीय सभ्यता-संस्कृति के मूलभूत
तत्वों को संविधान में अपनाया गया होता, तो 25 साल की उम्र तक हर किसी को पठन-पाठन
या खेल-कूद में व्यस्त रहने, फिर आजीविका कमाने की सलाह दी जाती और तब जाकर
शादी-ब्याह के बारे सोचने के लिए उन्हें कहा जाता।
मगर यहाँ तो चीख-चीख कर अब तक तो कण्डोम बेचा
जा रहा था और अब उन्हें 16 साल की उम्र में ही शारीरिक सम्बन्ध बनाने के लिए
प्रोत्साहित किया जा रहा है! मकसद क्या है?
वही- कि देश की अगली पीढ़ी, जिसके कन्धों पर
देश चलाने की जिम्मेवारी आयेगी, वह शारीरिक, मानसिक, चारित्रिक रुप से लुंज-पुंज
हो! बताईये, पढ़ने-लिखने, खेलने-कूदने की उम्र में हमारे बच्चों को शारीरिक सम्बन्ध
बनाने के लिए हमारी राजसत्ता बाकायदे उकसा रही है!
***
अब तो बस यही सोच रहा हूँ कि
"नियति" ने इस देश के भविष्य के बारे में आखिर तय क्या कर रखा है... ?
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें