विचार एक तरह की
"ऊर्जा" है (हालाँकि यह वैज्ञानिक रुप से साबित नहीं हुआ है), जो "तरंगों"
के रुप में बहता है. ये तरंगें दूसरों के विचारों से तो टकराती हैं, साथ ही, "नियति" की रेखा से
भी टकराती हैं ("नियति" "समय" की ही रेखा है, जिसके आदि-अन्त को हम
नहीं जानते. इसपर भूत-वर्तमान-भविष्य की सारी घटनायें दर्ज रहती हैं. हालाँकि इसका
भी अस्तित्व अभी सिद्ध नहीं हुआ है.)
एक-दो व्यक्तियों के विचार शायद
नियति की रेखा तक पहुँचते ही नहीं हैं- उसपर असर डालना तो दूर की बात है. जब बहुत
सारे लोग एक-जैसा सोचने लगते हैं, तो "नियति" की रेखा पर विचार-तरंगों का खासा प्रभाव पड़ता
है और नियति की रेखा में भविष्य के लिए दर्ज घटनाओं में विचार के अनुसार परिवर्तन
हो जाते हैं. दूसरे शब्दों में, जब बहुत-से लोग एक-जैसा विचार रखने लगते हैं, तब
जाकर वह विचार व्यवहार में परिणत होता है.
आज अगर देश 120 करोड़ में
से सवा करोड़
लोग किसी एक विचार को मन-प्राण से अपना लें, तो फिर देखिये, 2-4 साल के अन्दर ही वह विचार लागू होता है या नहीं! मगर ऐसा नहीं
होगा... हम भारतीयों की "मानसिक" स्थिति अभी उस स्तर तक पहुँची ही नहीं
है कि देश के 1 प्रतिशत
लोग भी देश की भलाई के बारे में सोच सकें. वे हजारों विचारधाराओं में बँटे हुए
हैं. यही नहीं, वे विरोधी विचार रखने वालों की टाँग खींचने के लिए भी दुनियाभर में
जाने जाते हैं.
एक प्रतिशत तो बहुत ज्यादा हो
गया... 4 भारतीय भी एक-जैसा विचार नहीं रख सकते, या एक-दूसरे का साथ नहीं दे सकते-
चाहे मुद्दा मातृभूमि की भलाई से ही क्यों न जुड़ा हो! ताजा उदाहरण हैं- अन्ना
हजारे, स्वामी रामदेव, अरविन्द केजरीवाल और किरण बेदी.
इसीलिए अच्छे विचारों को बस
फैलाया जाय.... हजार-लाख में कोई एक एक भी ग्रहण कर ले तो बहुत है... और इस उम्मीद
पर कायम रहा जाय कि जब बहुत-से लोग अच्छा सोचते हैं, तो कुछ अच्छा घटित होता है...
भावनाओ से ओत -पोत बहुत उम्दा प्रस्तुति आभार
जवाब देंहटाएंआज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
अर्ज सुनिये
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behatarin likha hai apne. badhai
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