कल जब मैंने ‘जेनरल आप चूक गये...’ लिखते वक्त यह लिखा
था कि कुछ शक्तिशाली लोग देश को गृहयुद्ध की आग में झोंक रहे हैं, तब मैं खुद सोच
रहा था कि क्या यह आकलन सही है? क्या सचमुच कुछ शक्तिसम्पन्न लोग देश में
गृहयुद्ध-जैसी स्थिति पैदा करना चाहते है?
संयोग
देखिये, आज ही उत्तर मिल गया।
आज के प्रभात खबर में राजेन्द्र तिवारी अपने स्तम्भ में लिखते हैं-
“आज सब लोग इस बात का श्रेय लेने की होड़ में लगे हैं कि
तुमने नहीं हमने उदारीकरण को तेजी से लागू किया था। अब सब सामने है। आज न देश की
सरकार पर देशवासियों का भरोसा है, और न विपक्ष पर। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर यदि
कोई हस्तक्षेप हुआ तो वह विपक्ष या तीसरे मोर्चे की तरफ से नहीं बल्कि
अन्ना-केजरीवाल और बाबा रामदेव ने किया। यह मुद्दा राजनीति के केन्द्र में
आ ही रहा था कि देश में साम्प्रदायिक माहौल बनाये जाने लगा है। अन्ना और बाबा रामदेव
के धरने के दौरान ही तमाम तरह के फोटो इंटरनेट व मेल पर चलने लगे। क्या कोई बता
सकता है कि इनकी शुरुआत किसने की? कोई नहीं बतायेगा क्योंकि जो यह पता करने की
ताकत रखते हैं, उनको इसमें फायदा नजर आ रहा है। लेकिन राजनीतिक दलों को सतरों के
बीच इबारत पढ़नी चाहिए। देश में हर जगह खदबदाहट है। लोग राजनीति-लूटबाजी से निराश
हैं। इतनी निराशा तो शायद इमरजेंसी के समय भी नहीं थी क्योंकि विकल्प दिखायी दे
रहा था। यह अच्छा संकेत नहीं है। शायद आजादी के बाद का यह सबसे ज्यादा निराशा का
दौर है।”
यानि मेरा आकलन सही है कि कुछ शक्तिशाली लोग
जानबूझ कर देश को गृहयुद्ध की ओर ले जा रहे हैं... ताकि भ्रष्टाचार-कालाधन का
मुद्दा राजनीति के केन्द्र में न आने पाये...
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