शनिवार, 6 अप्रैल 2013

122. मैं समर्थन करता हूँ बलात्कारी के हाथ तोड़ने वाले कैदियों का!



      एक महिला-वकील टीवी परिचर्चा में साफ-साफ कह रही थीं कि हमारी व्यवस्था सिर्फ "अपराधियों-अत्याचारियों" के मानवाधिकार के लिए तत्पर रहती हैं- पीड़ित-भुक्तभोगी के मानवाधिकार की वह जरा भी चिन्ता नहीं करती। उदाहरण में उन्होंने 16 दिसम्बर दुष्कर्म के एक आरोपित का जिक्र किया, जो जेल के अन्दर दूध माँग रहा है, फल माँग रहा है, किताबें माँग रहा है, क्योंकि उसे एयर फोर्स की परीक्षा देनी है। वे महिला वकील कह रही थीं- उस आरोपित को सारी सुविधायें मिल भी रही होंगी। सोचिये कि कितना आत्मविश्वास भरा है उस बलात्कारी के अन्दर कि मुझे कुछ होना तो है नहीं- मामला यूँ ही लटकता रहेगा और मैं परीक्षा पास करके एयर फोर्स में भर्ती भी हो जाऊँगा। यहाँ सोचकर देखिये कि अगर जेल प्रशासन आरोपित की माँगों को नहीं पूरा करता है, या एयर फोर्स उसे परीक्षा देने से रोकता है, तो मानवाधिकार वाले कितना बड़ा बवाल खड़ा कर देंगे! 
       टीवी पर (सहारा-समय चैनल) पर यह परिचर्चा केन्द्रित थी पटना की उन दो बहनों पर, जिन्हें बीते सितम्बर में तेजाब से बुरी तरह जला दिया गया था। वे बहनें बता रहीं थीं कि हमें कानून पर कोई भरोसा नहीं है- क्योंकि छह महीने हो गये, अभी तक हमारा बयान भी दर्ज नहीं हुआ है। आगे उन बहनों ने बताया कि आरोपितों में से जो मुख्य आरोपित है, वह बालिग होते हुए भी खुद को नाबालिग बताकर मजे ले रहा है! इस पर उक्त महिला वकील की टिप्पणी थी कि "अपराध" की गम्भीरता के हिसाब से कानूनी कार्रवाई चलनी चाहिए, न कि आरोपित के बालिग-नाबालिग होने के आधार पर। अगर तेरह साल का एक लड़का रेप कर सकता है, लड़की पर तेजाब फेंक सकता है, तो उसके साथ नर्मी क्यों? अब यहाँ सोचकर देखिये कि पीड़िता बहनों के समर्थन में मानवाधिकार आयोग वाले चूँ तक नहीं करने वाले हैं!
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मैंने कुछ दिनों पहले अखबार में पढ़ा था कि 16 दिसम्बर का एक आरोपित एयर फोर्स की परीक्षा देना चाहता है। आज फिर अपनी जानकारी को ताजा किया, तो पता चला कि उस आरोपित का नाम विनय शर्मा है। कल यानि 7 अप्रैल को उसकी परीक्षा है। अब चूँकि इस महान देश की महान कानूनी व्यवस्था एक बलात्कारी को अपना कैरियर बनाने से रोक नहीं सकती, इसलिए कल शाम तिहाड़ जेल के अन्दर कुछ अन्य कैदियों व सुरक्षाकर्मियों ने मिलकर उसका हाथ तोड़ दिया- ताकि वह परीक्षा न दे सके।
मैं चूँकि अपराधियों-अत्याचारियों के मानवाधिकार की रक्षा का हिमायती नहीं हूँ, इसलिए मैं उन कैदियों व सुरक्षाकर्मियों के प्रति तहे-दिल से अपना आभार प्रकट करना चाहता हूँ, उनका समर्थन करता हूँ, जिन्होंने इस बलात्कारी के हाथ तोड़े। अफसोस तो मुझे कल तब होगा, जब पता चलेगा कि हाथ की चोट मामूली है, या एयर फोर्स वालों ने उसे एक्जाम में एक सहयोगी रखने की छूट दे दी है, और इस प्रकार, वह सफलतापूर्वक परीक्षा दे रहा है!
बलात्कारी के हाथ तोड़े जाने का समर्थन करने के पीछे मेरे दो व्यक्तिगत कारण भी हैं-
1. मैं एक पूर्व वायुसैनिक हूँ और मैं हर्गिज नहीं चाहूँगा ऐसा बलात्कारी (बड़ी मुश्किल से गालियों को रोक रहा हूँ- यकीन कीजिये) मेरी वायु सेना में कभी शामिल हो!
2. मेरी पत्नी को भी तेजाब से जलाया गया था (तब वह बेशक, 12वीं की छात्रा थी, मेरी पत्नी तो वह बाद में बनी), उसकी भावनाओं को मैंने हृदय से समझा है और इसलिए स्त्रियों पर अत्याचार करने वालों से मैं पूरी शिद्दत से नफरत करता हूँ! 

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