रविवार, 21 अप्रैल 2013

127. बुरे राजनेताओं के लिए दो ही विकल्प-


       साथियों,
       जय हिन्द!
निम्न आलेख को आज सुबह लिखकर मैंने ब्लॉग में पोस्ट कर दिया था, मगर बाद में पोस्ट को "ड्राफ्ट" बना दिया- कि क्या जरुरत है देश को सुधारने-सँवारने के चक्कर में दीवानगी की हद तक जाने की और इस तरह की उग्र बातें लिखने की?
मगर बाद में अखबार (प्रभात खबर) में सम्पादक हरिवंश जी का लेख पढ़ा- 'झूठ और कपट में जीता देश' (लिंक- http://www.prabhatkhabar.com/node/286568?page=show ) और फिर मैंने निर्णय लिया- इसे प्रकाशित करने का- अन्जाम चाहे जो हो!
*** 
अगर आप खुद को थोड़ी देर के लिए अपने राजनीतिक पूर्वाग्रहों से मुक्त कर सकते हैं, कृपया तभी इसे पढ़ें, अन्यथा छोड़ दें
       ***
सबसे पहले तो- जिस प्रकार पृथ्वी पर की हर सजीव वस्तु "अन्तिम रुप से" (ultimately) सूर्य से अपनी ऊर्जा ग्रहण करती है, उसी प्रकार आज की तारीख में इस देश की हर बुराई अन्तिम रुप से राजनेताओं से अपनी शक्ति प्राप्त करती है- इस बात को आप स्वीकार कर लें
       ***
       ठीक है कि समाज भी दोषी है, नागरिकों का भी चारित्रिक पतन हो गया है, मगर नागरिकों को सुसभ्य, सुशिक्षित और सुसंस्कृत बनाने की जिम्मेवारी भी "अन्ततः" राजनेताओं पर ही आती है- देश के लिए नीतियाँ बनाने वालों पर- इसमें कोई दो राय नहीं होनी चाहिए।
       ***
       आज की भारतीय राजनीति में मुश्किल से 1 या 2 प्रतिशत राजनेता अच्छे होंगे- 98 से 99 प्रतिशत राजनेता बुरे हैं- इसमें किसी को भी सन्देह नहीं होना चाहिए- इनमें से प्रायः 60 प्रतिशत तो "घोषित रुप से"- दस्तावेजों पर- बुरे होंगे, बाकी 38-39 प्रतिशत "सफेदपोश" बुरे होंगे।
       ***
       एक चक्रव्यूह बन गया है- बुरे राजनेता चुनाव-प्रणाली के दोषों को दूर नहीं होने देंगे और इस दूषित चुनाव-प्रणाली के तहत 100 में 1 या 2 ही अच्छे राजनेता चुने जा सकते हैं- 98 से 99 बुरे राजनेता ही चुने जायेंगे।
***
इस प्रकार, 2014 की कौन कहे- 2019, 2024, 2029, 2034..... के आम चुनावों के बाद भी इस देश में कोई सकारात्मक बदलाव नहीं आने वाला है।
***
दो ही स्थिति में इस देश से बुराई दूर हो सकती है-
1. या तो बुरे राजनेता राजनीति से सन्यास ले लें;
2. या फिर, उन्हें मार दिया जाय।
(मार देने की बात फिलहाल मैं 'आक्रोश' में लिख रहा हूँ, वर्ना मैं अण्डमान में विशेष न्यायालयों की स्थापना कर उनपर मुकदमा चलाने और दोषी पाये जाने पर उन्हें निकोबार के किसी टापू पर- कम-से-कम 12 वर्षों के लिए- निर्वासित करने का पक्षधर हूँ।)
***
मोटी चमड़ी वाले, घाघ, बाहुबली, धनपशु, माफिया, क्रूर, शातिर किस्म के इन बुरे राजनेताओं को बिना बगावत के न तो सन्यास लेने के लिए मजबूर किया जा सकता है, और न ही मारा जा सकता है। ध्यान रहे, वर्तमान शासन-प्रणाली तथा न्याय-प्रणाली के अन्तर्गत इन्हें छुआ भी नहीं जा सकता।  
***
बगावत भी वही, जिसमें सेना के जवान भी शामिल हों- सिर्फ नागरिकों की बगावत को तुरन्त कुचल दिया जायेगा। याद रहे, अँग्रेजों ने दर्जनों सविनय अवज्ञा आन्दोलनों के बावजूद भारत छोड़ने के मुद्दे पर विचार नहीं किया था, मगर जैसे ही 1945-46 में ब्रिटिश भारतीय जलसेना में बगावत हुई और इसकी लपटें ब्रिटिश भारतीय थलसेना तक पहुँची, अँग्रेजों ने भारत को छोड़ने का फैसला ले लिया था।
***** 
आप सोचेंगे- कहीं ये बातें "देशद्रोह" की श्रेणी में तो नहीं आती?
तो इसका जवाब-
***  
भारत न तो स्वतंत्र देश है, न सम्प्रभु- यह "तकनीकी" तथा "सांकेतिक" रुप से ही सही, आज भी "ब्रिटिश साम्राज्य का उपनिवेश" है।
***
भारत सही मायने में स्वतंत्र एवं सम्प्रभु राष्ट्र उस दिन बनेगा, जिस दिन
1. "सत्ता-हस्तांतरण" की शर्तों को मानने से वैधानिक रुप से इन्कार किया जायेगा;
2. "राष्ट्रमण्डल" (कॉमनवेल्थ) की सदस्यता का आधिकारिक रुप से परित्याग किया जायेगा, और
3. "1935 के अधिनियम" के बजाय भारतीय पृष्ठभूमि पर नया संविधान बनाया जायेगा।
***
चूँकि तकनीकी रुप से हमारा देश आज भी गुलाम है, और चूँकि अँग्रेजों ने 300 वर्षों में इस देश को जितना लूटा था, उससे कहीं ज्यादा पिछले 30 वर्षों में हमारे ही राजनेताओं द्वारा इस देश को लूटा जा चुका है, इसलिए हम आज भी अगर चाहें, तो भगत सिंह और नेताजी सुभाष के रास्ते पर चल सकते हैं- इस रास्ते को देशद्रोह की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता- अब हमारी न्यायपालिका इस तर्क से सहमत न हो, तो अलग बात है।
*****
यही कारण है कि मैं वर्तमान चुनाव-प्रणाली तथा अन्यान्य वर्तमान व्यवस्था के तहत इस देश की भलाई की उम्मीद नहीं रखता- इसके स्थान पर मैं 10 वर्षों के लिए इस देश में एक-दूसरे ढंग की व्यवस्था कायम करने की बात करता हूँ, जिसका विस्तार से जिक्र मैंने अपने एक ब्लॉग "खुशहाल भारत" (लिंक- http://jaydeepmanifesto.blogspot.in/ ) में कर रखा है। यह ब्लॉग वास्तव में एक सम्पूर्ण 'घोषणापत्र' है, जिसपर अमल करके बेशक, भारत को खुशहाल, स्वावलम्बी और शक्तिशाली राष्ट्र बनाया जा सकता है। (ध्यान रहे, मैं कभी भारत को "विकसित" राष्ट्र बनाने की बात नहीं करता- मैं "खुशहाली" पर यकीन करता हूँ- इस अवधारणा को कभी और स्पष्ट करना चाहूँगा- अभी नहीं।)  
***
वह नयी व्यवस्था एक "नागरिक-सैनिक बगावत" के बाद ही कायम हो सकती है।
***
जैसा कि मैंने ऊपर थोड़ा-सा जिक्र किया है- मेरे "घोषणापत्र" में "भ्रष्ट चौकड़ी"- भ्रष्ट राजनेता, भ्रष्ट उच्चाधिकारी, भ्रष्ट पूँजीपति तथा माफिया सरगना- को निकोबार के किसी टापू पर निर्वासित करने की बात कही गयी है।
***
मगर पिछ्ले दिनों दिल्ली में "गुड़िया" के साथ जो हुआ, उसमें पुलिस की जैसी भूमिका रही, राजनेताओं- खासकर, शासकवर्ग ने जैसी प्रतिक्रिया दी और आने वाले दिनों में न्याय करने में न्यायपालिका जैसी लचर प्रणाली अपनायेगी, इन सबको देखते हुए इस वक्त मैं कुछ ज्यादा ही आक्रोश में हूँ और इस कारण निम्न घोषणा कर रहा हूँ-
***
नागरिक-सैनिक बगावत के दौरान बुरे राजनेताओं को सरेआम पकड़कर उनसे एक ही सवाल पूछा जायेगा- "रासेस" या "पाकुमौ"?
***
("रासेस"- राजनीति से सन्यास। "पाकुमौ"- पागल कुत्ते की मौत।)
*******  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें