यकीन कीजिये, मैंने
बहुत बार अपनी अन्तरात्मा से पूछा है कि मेरी अन्तरात्मा, यह तो बता कि मैं अपने
देश के "वरिष्ठ नौकरशाहों" के 'भी' प्रति सम्मान की भावना क्यों नहीं रख
पाता हूँ? (यहाँ, 'भी' का इस्तेमाल इसलिए हुआ है कि "राजनेताओं" के
प्रति मेरे मन में कोई सम्मान नहीं है और इसका कारण जानने के लिए अन्तरात्मा से
कुछ पूछने की जरुरत मैं नहीं समझता!)
जवाब में मेरी
अन्तरात्मा ने हर बार यही कहा है कि बेटे जयदीप, इनकी टाई-सूट वाली ताम-झाम पर मत जाओ-
ये दरअसल दो कौड़ी के लोग होते हैं; अपने देश, अपनी राष्ट्रीयता, अपनी सभ्यता, अपनी
संस्कृति, अपने समाज को जानना-समझना तो बहुत-बहुत-बहुत दूर की बात है- ये अपने घर-परिवार,
नाते-रिश्तेदारों के बारे में भी ढंग से नहीं जानते; अपनी जवानी इन लोगों ने एक
बन्द कमरे में 24 में से 18 घण्टे किताबें रटने में बितायी हैं; बाद में राजनेताओं
के लिए "खैनी बनाते" (इसे एक मुहावरे के रुप में लें) हुए
"वरिष्ठ" पदों तक पहुँचे हैं; इनकी खोपड़ी के अन्दर भेजा ही नहीं होता,
तो प्रतिभा कहाँ से होगी- ये सिर्फ और सिर्फ जी-हुजूरी कर सकते हैं, तलवे चाट सकते
हैं, और नकल कर सकते हैं- अमेरिका ने यह किया, तो हम यही करेंगे; चीन ने वह किया,
तो हम वही करेंगे... बस इतना ही।
अपने इस आक्रोश को
इतने खुले रुप से आज मैं इसलिए व्यक्त कर रहा हूँ कि मेरे सामने अखबार में रिजर्व
बैंक के गवर्नर डी. सुब्बाराव का एक बयान छपा दीख रहा है- "गरीबों के 'अच्छा
खाने' से बढ़ी महँगाई"। उनका मानना है कि गरीबों की क्रयशक्ति बढ़ गयी है, वे खाने-पहनने की अच्छी चीजें खरीदने लगे हैं, और इसलिए देश में महँगाई बढ़ रही है!
बताईये, देश के
दूर-दराज के इलाकों में किस तरह गरीब लोग जीवन बिताते हैं- राजधानियों के एसी दफ्तरों
की गद्देदार कुर्सियों पर बैठने वाले इन नौकरशाहों ने कभी देखा ही नहीं होगा....
और इस तरह का बयान दे रहे हैं। सन्देह है कि ये दो कौड़ी के भी होते हैं या नहीं?
***
बार-बार अपने 'घोषणापत्र' की बातों का जिक्र करना
मुझे भी अब अच्छा नहीं लगता। मगर इतना है कि मैंने नौकरशाहों के लिए एक ऐसी
"चयन प्रक्रिया" अपनाने की बात कही है, जिसमें आई.क्यू के साथ ई.क्यू.
की भी जाँच होगी- 1.12 राष्ट्रीय स्तर के प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति के लिये
उन्हीं युवाओं का चयन किया जायेगा, जो स्नातक होने के अलावे सामाजिक कार्यों, सांस्कृतिक गतिविधियों तथा साहसिक अभियानों में
भाग लेते रहे हैं। (सामाजिक कार्यों के लिये
क्रमांक 21.4, सांस्कृतिक गतिविधियों के लिये 43.6 तथा साहसिक अभियानों के लिये भारत भ्रमण सायकिल यात्रा का अनुभव लिया जा
सकता है।)
(http://khushhalbharat.blogspot.in/2009/12/1_25.html)
नोट- क्रमांक 21.4 में बेसहारों के लिए आश्रयों
की शृंखला कायम करने का जिक्र है, जहाँ कुछ समय स्वयंसेवक के रुप में काम करने
वाले ही यह परीक्षा दे सकेंगे। इसी प्रकार, क्रमांक 43.6 में प्रतिवर्ष बसन्त और
शरत काल में सप्ताहभर का 'भारतीय सभ्यता-संस्कृति उत्वस' मनाने का जिक्र है,
जिनमें सक्रिय योगदान देने वाले ही परीक्षा दे सकेंगे। परीक्षा पास करने वालों को
'भारत-भ्रमण साइकिल यात्रा' पर भेजा जायेगा, जिसका "रुट" ग्रामीण इलाकों
से होकर गुजरेगा- हाइवे से बचते हुए।
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