शनिवार, 26 अप्रैल 2014

167. आदरणीय नरेन्द्र मोदी जी




आदरणीय नरेन्द्र मोदी जी,
       जय हिन्द!

       साउथ ब्लॉक से लेकर कस्बों की नुक्कड़ तक और प्रिण्ट/इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक- सभी जगह यह माना जाने लगा है कि आप ही अगले प्रधानमंत्री बनने वाले हैं
       कल के अखबार में देखा, लॉर्ड स्वराज पाल कह रहे हैं, "हम उम्मीद करते हैं कि भारतीय प्रधानमंत्री के रुप में जिसका भी चयन करेंगे, वह अच्छा काम करेगा। मुझे उम्मीद है कि जो भी चुनाव जीतेगा, वह सिर्फ कुछ उद्योगपतियों के बजाय देश के 1.2 अरब लोगों की चिन्ता करेगा।"
       नाजुक मसलों/मौकों पर समझदार लोग अक्सर इशारों में बात कहते हैं। लॉर्ड पॉल साहब का यह कथन भी एक इशारा ही है- कम-से-कम मेरी नजर में। यानि वे कहना चाहते हैं कि नरेन्द्र मोदी साहब को चाहिए कि वे प्रधानमंत्री बनने के बाद सिर्फ कुछ औद्योगिक घरानों को फायदा पहुँचाने के लिए आर्थिक नीतियाँ न बनायें, बल्कि वास्तव में "जनकल्याणकारी" आर्थिक नीतियाँ बनायें। देश की जनता त्रस्त है! मुझे ऐसा लगता है लॉर्ड पॉल साहब आशा तो रखते हैं कि आप देश की सवा अरब जनता को ध्यान में रखकर नीतियाँ बनायें, मगर उनके मन में यह आशंका भी है कि आप शायद ऐसा न करें... आप शायद मुट्ठीभर उद्योगपतियों, बहुत हुआ, तो 5-10 प्रतिशत खाते-पीते, भोग-विलास का जीवन बिताते भारतीयों (क्षमा, इण्डियन्स!) के प्रधानमंत्री बन कर रह जायें!
       खैर। यह कथन पढ़कर मुझे याद आया कि मैंने भी कभी ऐसा ही कुछ लिखा था। ब्लॉग खोजा, तो पाया, नौ महीने पहले 18 जुलाई 2012 को (तब 25 जुलाई को अन्ना हजारे का तथा 9 अगस्त को स्वामी रामदेव का अन्दोलन प्रस्तावित था) मैंने निम्न पंक्तियों में अपनी आशा-आशंका को अभिव्यक्ति दी थी:
       (उद्धरण शुरु)
       "मैं आशा करता हूँ कि 2014 के आम चुनाव के बाद नरेन्द्र मोदी जी देश के प्रधानमंत्री बने; देश की कमान थामने के बाद वे- 1.) देश की अर्थव्यवस्था को विश्व बैंक और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के चंगुल से बाहर निकालें, 2.) घरेलू संसाधनों एवं प्रतिभा के बल पर ही सूई से लेकर जहाज तक के निर्माण में स्वदेशीकरण को अपनायें, 3.) देश में जड़ें जमा चुकी बहुराष्ट्रीय निगमों को देश से निकाल बाहर करें, 4.) खेतीहर मजदूरों एवं सीमान्त किसानों को जमीन दिलाते हुए खेती योग्य जमीन का पुनर्वितरण करें, 5.) सरकारी वेतनमान में न्यूनतम व अधिकतम वेतन-भत्तों-सुविधाओं के बीच 1:15 से ज्यादा का अन्तर न रहने दें, 6.) आयात-निर्यात के मामले में शत-प्रतिशत बराबरी यानि 1:1 का अनुपात अपनायें, 7.) राष्ट्रमण्डल की सदस्यता का परित्याग करें, 8.) अमेरीकी प्रभुत्व के सामने झुकने से इन्कार करें और 9.) तिब्बत की आजादी का समर्थन करते हुए चीनी धमकियों से डरना छोड़ दें।
      "मगर मुझे डर है कि ऐसा कुछ नहीं होगा। या तो जनता को बरगला कर तथा राष्ट्रपति महोदय के माध्यम से दाँव-पेंच खेलकर काँग्रेस फिर से सत्ता हथिया लेगी; या फिर, सत्ता थामने के बाद नरेन्द्र मोदी जी वैश्वीकरण, उदारीकरण एवं निजीकरण के अगले चरणों को लागू करने में अपनी सारी ताकत झोंक देंगे, ताकि बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ और देशी पूँजीपति/उद्योगपति जबर्दस्त मुनाफा कमा सके!
      ***
      "मैं आशा करता हूँ कि मेरे उपर्युक्त डर गलत साबित हों; अन्ना हजारे के नेतृत्व में 'लोकपाल' बने तथा भ्रष्टाचार पर लगाम लगे; स्वामी रामदेव के नेतृत्व में कालेधन का राष्ट्रीयकरण हो तथा देश का नवनिर्माण हो; और नरेन्द्र मोदीजी के नेतृत्व में भारत एक खुशहाल, स्वावलम्बी एवं शक्तिशाली देश बने। अगर ऐसा होता है, तो इस देश में मुझसे ज्यादा खुश कोई और नहीं हो सकता।
      मगर मुझे डर है कि मेरे उपर्युक्त डर कहीं सही न साबित हो जायें! अगर ऐसा होता है, तो मेरा अनुमान कहता है कि 2017 तक देश की स्थिति बहुत खराब हो जायेगी।"
       (उद्धरण समाप्त)
महोदय, मैं यह जानता हूँ कि एक आम नागरिक का पत्र एक राजनेता तक कभी नहीं पहुँचता और यह पत्र भी कभी आप तक नहीं पहुँचेगा। फिर भी, अपनी बात मैं कह देना चाहता हूँ।
       इससे पहले भाजपा के नेतृत्व में जो सरकार बनी थी, उसने अपनी सारी नीतियाँ देश के पूँजीपतियों, उद्योगपतियों को लाभ पहुँचाने तथा 5-10 प्रतिशत इण्डियन्स के जीवन में चमक लाने के लिए बनायी थी; देश के 90-95 प्रतिशत भारतीयों को उस सरकार ने एक प्रकार की "सुखानुभूति" की दशा में रखा था- परमाणु विस्फोट वगैरह करके। इस शाइनिंग इण्डिया और फीलगुड के दम पर सरकार अपनी वापसी को लेकर इतनी अश्वस्त थी कि समय से पहले आम चुनाव करवाये गये, मगर "भारतीयों" ने इस सरकार को दुबारा मौका नहीं दिया। (इण्डियन्स हैं ही कितने! और कितने निकलते हैं वोट देने!) यहाँ तक कि बाद वाले आम चुनाव में भी नहीं दिया।
       इस प्रकार, देखा जाय तो 10 साल बाद फिर बड़ी उम्मीद से देश की जनता आपके हाथों में सत्ता सौंपने जा रही है। इस बार भी अगर देश की आम जनता की अनदेखी हुई, उसे किसी किस्म के बहकावे, भुलावे में रखते हुए पूँजीपतियों, उद्योगपतियों, "इण्डियन्स" के फायदे, भोग-विलास के लिए सारी नीतियाँ बनायी गयीं, तो याद रखा जाय, 5 साल बहुत लम्बा समय नहीं होता। देखते-देखते यह समय बीत जायेगा और फिर जो देश के "भारतीय" आपकी पार्टी को सत्ता से बेदखल करेगी, तो शायद इस बार 20 साल में भी उसका गुस्सा ठण्डा न हो!
       व्यक्तिगत रुप से मेरा किसी से राग-द्वेष नहीं है। हाँ, अपने विचार मैं सीधे ढंग से (स्ट्रेट फॉरवार्ड) ढंग से व्यक्त करता हूँ। यह जमाना निन्दक नियरे राखिये का है भी नहीं। इस लिहाज से मुझे यह सब नहीं लिखना चाहिए था शायद...
       ...मगर चूँकि मैं एक मतदाता हूँ और मैंने मत दिया है; जिन मतों के बल पर आप प्रधानमंत्री बनेंगे, उनमें मेरा भी मत शामिल होगा, इसलिए मैं समझता हूँ कि मुझे हक है कि मैं आपसे कुछ उम्मीदें रखूँ और साथ ही, यह भी जता दूँ कि आपका क्या करना, कौन-सी नीति अपनाना मुझे पसन्द नहीं आयेगा।
       इति। 
       शुभकामनाओं के साथ,

                                                                                               एक आम नागरिक
                                                                                                जयदीप शेखर    

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