रविवार, 20 अप्रैल 2014

166. आर.वी.


       रॉबर्ट वढेरा (या वाड्रा, जो भी हो) ने अगर 5 वर्षों (2007 से 2012) के अन्दर अपनी 90 हजार की पूँजी को 324 करोड़ बना लिया, तो जाहिर है कि ऐसा उसने अपनी प्रतिभा या मेहनत के बल पर नहीं किया है; बल्कि राजसत्ता के प्रभाव का दुरुपयोग करते हुए किया है
       किसी भी सभ्य, स्वतंत्र एवं सम्प्रभु राष्ट्र के दण्ड विधान के नजरिये से देखें, तो इसे एक गम्भीर अपराध माना जायेगा और उस देश में ऐसा करने वाले को इतनी कठोर सजा मिलेगी कि दूसरों को सबक मिले। मगर भारत का औपनिवेशिक दण्ड विधान सत्ताधारियों द्वारा लूट को अमतौर पर गलत नहीं मानता- ऐसे मामलों में खुद संज्ञान तो कभी नहीं लेता। यहाँ की राजभक्त जनता के लिए भी यह स्वाभाविक है- वह कहेगी, अरे इतने बड़े परिवार का दामाद है, थोड़ा-बहुत पैसा बना लिया तो कौन-सी आफत आ गयी!
       फिर भी, कुछ सरफिरे लोग अगर न्यायपालिका पहुँच ही जायें, तो क्या होगा? 10 साल जाँच, 20 साल सुनवाई, 10 साल फैसला सुरक्षित, और उसके बाद दोषी की उम्र एवं स्वास्थ्य को देखते हुए उसे जेल नहीं भेजने का निर्णय। सुखराम के मामले में ऐसा ही हुआ था। अगर किसी लुटेरे को जेल हो भी गयी, तो खानापूरी के लिए वह कुछ हफ्ते जेल में बिताता है, फिर बाहर आ जाता है- जैसे कि लालू प्रसाद यादव। एक और विचित्र परिपाटी है इस दण्ड विधान की- कभी किसी बड़े राजनेता को तीन साल की कैद से अधिक सजा न दी जाय- ताकि अदालत में ही गिरफ्तार करके उसे जेल भेजने की नौबत न आये। इसके उदाहरण नरसिंहाराव, जयललिता इत्यादि हैं।
कहने का तात्पर्य इस देश में लूट या घोटाले की कमाई का पूरा-पूरा उपभोग करने का अवसर सत्ताधारियों को प्राप्त होता है। रॉबर्ट वढेरा का भी बाल बांका नहीं होगा- चाहे मोदी प्रधानमंत्री बन जायें, या केजरीवाल, या फिर कोई और। भारत की शासन-प्रणाली, यहाँ का प्रशासनिक ढाँचा, यहाँ की पुलिस व्यवस्था, यहाँ की न्यायपालिका, यहाँ का संविधान- सबके-सब औपनिवेशिक हैं- इन सबका उद्देश्य है- गुलामों पर राज करना। इस व्यवस्था के तहत कभी किसी बड़े राजनेता (या उसके परिजन) को उसके किये की पूरी-पूरी सजा नहीं दी जा सकती!
सबसे माशाअल्लाह तो यहाँ की पब्लिक है- क्या शिक्षित, क्या अशिक्षित.....
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This issue was highlighted in 2012 also. That time I had written following note. This is a complete imagination (hypothesis)- need not to be taken seriously:- 
  • Conversation started 14 अक्टूबर 2012
  • जयदीप शेखर
    जयदीप शेखर

    किसी के व्यक्तिगत मामलों में रुचि रखना उचित नहीं है; मगर जब किसी के व्यक्तिगत प्रसंग किसी राष्ट्र, किसी समाज की दशा एवं दिशा को प्रभावित करने जा रहे हों, या अतीत में किसी के व्यक्तिगत प्रसंगों ने किसी कौम की नियति को प्रभावित किया हो, तो फिर उन प्रसंगों का अन्त्य-परीक्षण होना ही चाहिए- चाहे वे कितने भी व्यक्तिगत क्यों न रहे हों!

    मिसाल के तौर पर, अगर प्रश्न उठता है कि क्या JLN-LEM के प्रेम प्रसंग ने स्वतंत्र भारत की नियति को प्रभावित किया है- तो फिर इस प्रसंग की बाकायदे जाँच होनी चाहिए कि सत्ता-हस्तांतरण के समय भारतीय पक्ष के कमजोर पड़ने के पीछे इस प्रेम-प्रसंग का कितना बड़ा हाथ रहा था?

    फिलहाल, कुछ दिनों से PG-RV की जोड़ी चर्चा में है। जोड़ी ‘बेमेल’ है, फिर भी, अब तक सोच-विचार करने की जरुरत नहीं पड़ी थी कि आखिर यह बेमेल जोड़ी बनी तो क्यों? मगर अब लग रहा है कि अगले 5-7 वर्षों के अन्दर यह जोड़ी देश की नियति को प्रभावित कर सकती है, इसलिए इस पर सोच-विचार की जरुरत आन पड़ी है।

    JLN ने लम्बे समय तक देश पर शासन किया- एक “विधुर” के रुप में। IG ने भी लम्बे समय तक देश पर शासन किया- एक “विधवा” के रुप में। RG-1 पहले भारतीय राजनीति से दूर थे, मगर “टुअर” बनते ही उन्हें देश पर शासन करने का अवसर मिल गया। ...क्या कोई “शातिर” दिमाग इन बातों को “नोट” कर रहा था? क्या उसे पक्का विश्वास हो गया कि इस परिवार के सदस्यों के “सत्तासीन” होने लिए उनका “विधुर”, “विधवा” या “टुअर” होना अनिवार्य है?? क्या उसने तभी से जाल बिछाना शुरु कर दिया??? इनका कोई आइडिया लगाना फिलहाल तो मुश्किल है, मगर SG “विधवा” बनीं और थोड़े समय के अन्दर वे इस देश की “भाग्य-विधाता” बन गयीं।

    “राजतंत्र” को आगे भी कायम रखना है। इसके लिए जरुरी है कि RG-2 या तो “टुअर” बनें या फिर “विधुर”। “टुअर” बनने का मतलब है, खुद SG की मृत्यु- अतः इसका सवाल ही नहीं उठता। “विधुर” के साथ हालाँकि कोई खास आकर्षण नहीं है, फिर भी, विधुर बनने के लिए जरुरी है कि RG-2 एक “मामूली” “देशी” लड़की से विवाह करे, जिसके साथ RG-2 का “प्यार-लगाव” न हो। मगर RG-2 नहीं माने- वे अपनी विदेशी गर्लफ्रेण्ड से ही विवाह करने के इच्छुक थे, जिससे वे “प्यार” करते थे। RG-2 को उसके हाल पर छोड़ दिया गया।

    अब PG से कहा गया कि वह एक नालायक (Lull) हिन्दुस्तानी से विवाह करे, ताकि समय आने पर PG “विधवा” बनकर देश की राजगद्दी पर बैठ सके। PG राजी हो गयी और उसने RV से विवाह कर लिया। जब तक विधवा बनने का “सुअवसर” नहीं आता है, तब तक उस नालायक के माध्यम से कमाई करके कालाधन स्विस बैंक में जमा करना है- यह योजना भी बनी। फिलहाल इसी योजना पर हंगामा बरपा हुआ है।

    ऐसा लगता है कि SG के दिमाग में “मिशन-2014” नहीं, बल्कि “मिशन-2019” है। 2019 से ठीक पहले PG को “विधवा” बनाकर उसका राज्याभिषेक करने की योजना है। इस बीच “रिस्क” के रुप में 2014 में RG-2 के राज्याभिषेक के लिए एकबार कोशिश करके देखनी है- हालाँकि उम्मीद कम ही है SG को। 2009 में भी RG-2 खुद को साबित नहीं कर पाये थे। यानि 2014 में बिना “टुअर” या “विधुर” बने RG-2 राज्याभिषेक हो, या न हो; मगर 2019 में “विधवा” के रुप में PG के राज्याभिषेक के प्रति SG आश्वस्त हैं!

    “बलि का बकरा” बेचारा RV कब तक खैर मना पाता है- देखा जाय! (उसके परिवार में जिन्दा बचा ही कौन है, जो उसकी “बलि” पर जाँच की माँग करेगा?)

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