शनिवार, 12 अप्रैल 2014

163. मतदान



किसी को ध्यान भी है- भारतीय सशस्त्र सेनाओं के सदस्य तथा उनके ज्यादातर परिजन वोट नहीं डाल पाते हैं एक डाक द्वारा मतदान की प्रणाली है जरुर, मगर यह व्यवहारिक और कारगर नहीं है। अन्यान्य नौकरियों के जो लोग चुनाव ड्यूटी करते हैं, उनकी भी यही गति है। मेरे साथ भी ऐसा होते आया है।
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आज सूचना तकनीक की तरक्की जिस मुकाम पर है, उस लिहाज से मतदान ऑनलाईन होना चाहिए ऐसा होने पर एक मतदाता को वोट डालने के लिए अपने गृहक्षेत्र में नहीं जाना पड़ेगा; 24 से 48 घण्टों के अन्दर सारे देश में एकसाथ मतदान हो जायेगा और 72 घण्टों के अन्दर परिणाम आ जायेंगे। (फिर बेचारा चुनाव आयोग महीने-दो महीने के मार्शल लॉ का आनन्द कहाँ ले पायेगा- यह भी एक विचारणीय प्रश्न है!)
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       तब ऐसा है कि इसके लिए देशभर में बूथों की स्थायी व्यवस्था करनी होगी; (बेशक, "घुमन्तु" बूथ की भी व्यवस्था करनी पड़ेगी कुछ इलाकों के लिए) चुनाव आयोग में पूर्णाकालिक कर्मचारी-अधिकारी तैनात करने होंगे; मतदाता पहचानपत्र, आधार कार्ड तथा पैन कार्ड को एकीकृत करते हुए एक बहुद्देशीय नागरिक पहचानपत्र बनाना होगा; तथा और भी कुछ काम करने होंगे, जिनकी दूर-दूर तक सम्भवना नहीं है।
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सम्भावना क्यों नहीं है- इसके पीछे कारण न बताकर एक कहानी बता रहा हूँ। जेम्स वाट ने ब्रिटिश संसद के लिए एक वोटिंग मशीन का आविष्कार किया। संसद में उसके प्रदर्शन के समय सबने उसकी तारीफ की। मगर बाद में प्रधानमंत्री जेम्स को अपने कक्ष में ले जाकर पूछते हैं- इसके परिणामों से छेड़-छाड़ करने का तरीका क्या होगा? जेम्स वाट के होश उड़ गये। उन्होंने कान पकड़ लिया कि वे कभी राजनीतिज्ञों के लिए कोई आविष्कार नहीं करेंगे!
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अगर यह कहा जाय कि देश के कुछ इलाके दुर्गम हैं; कुछ इलाकों में नक्सलवाद, तो कुछ में आतंकवाद हावी है; सुरक्षा बलों की संख्या कम है, इसलिए कई चरणों में मतदान कराना मजबूरी है, तो जवाब में यही कहा जा सकता है कि साहेबान, पिछले छह-सात दशकों से आपलोग कर क्या रहे हैं, जो ऐसी स्थितियाँ पनपीं?
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