शुक्रवार, 8 जून 2012

31 मई 2012: एक निर्णायक दिन साबित होगा...


6 अप्रैल' 2012

खबर है कि पूर्व एडमिरल रामदास, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एन. गोपालास्वामी तथा कुछ अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दाखिल की है, जिसमें अनुरोध किया गया है कि लेफ्टिनेण्ट जेनरल विक्रम सिंह को अगला थलसेनाध्यक्ष न बनने दिया जाय, क्योंकि उनके पिछले कार्यों में दाग हैं। (इस साल भारत में बहुत कुछ 'पहली बार' हो रहा है, उसी लड़ी में एक और कड़ी जुड़ गयी- सरकार द्वारा नामित सेनाध्यक्ष के खिलाफ जनहित याचिका!)
      व्यक्तिगत रुप से मुझे न्यायपालिका से कोई उम्मीद नहीं है। जो न्यायपालिका जेनरल वी.के. सिंह के उम्र-विवाद मामले में सरकार से तीन-चार स्वाभाविक सवाल नहीं पूछ सकी-  कि 1. जेनरल के मैट्रिक-प्रमाणपत्र में दर्ज जन्मतिथि को प्रामाणिक मानने में सरकार को आपत्ति क्या है? 2. सरकार को जल्दी क्यों मची है जेनरल को रिटायर करने की? 3. अगर जेनरल एक साल और सेनाध्यक्ष रह जाते हैं, तो देश को, सेना को, सरकार को, या किसी को भी क्या नुकसान पहुँचने जा रहा है? 4. क्या सरकार इस मामले में भारत की जगहँसाई करवाते हुए गलत परम्परा स्थापित नहीं कर रही है?- वह न्यायपालिका ले. जेनरल विक्रम सिंह के मामले में सरकार के निर्णय के खिलाफ कोई फैसला देगी, ऐसा तो मुझे नहीं लगता। न्यायपालिका सरकार के निर्णय का बचाव करती नजर आयेगी, चाहे इसके लिए कितना भी विचित्र तर्क क्यों न गढ़ना पड़े!
(मुझे तो कभी-कभी लगता है, हमारी न्यायपालिका "डबल गेम" खेलती है। पहले "कैश फॉर वोट" काण्ड में सरकार पर कोड़े फटकार कर जनता की वाहवाही बटोरो और जब लगे कि कहीं अमर सिंह कोर्ट में मुँह खोलकर सरकार को साँसत में न डाल दें, तो मामले को भूल जाओ! "रावणलीला" काण्ड में भी यही हुआ- एक ओर 'शासक व शासितों के बीच बढ़ते अविश्वास' की टिप्पणी कर जनता के जख्मों पर मरहम लगाया गया, तो दूसरी तरफ काँन्सटेबलों तथा स्वामी रामदेव को दोषी ठहरा कर सरकार को बचाते हुए मामले का पटाक्षेप कर दिया गया!)  
कुल-मिलाकर, जेनरल वी.के. सिंह 31 मई 2012 को अवकाशग्रहण कर लेंगे और लेफ्टिनेण्ट जेनरल विक्रम सिंह उस दिन थलसेनाध्यक्ष का भार सम्भाल लेंगे- यही होगा।
थोड़ा-सा विषयान्तर।
पिछले करीब 25-30 वर्षों से सुना जा रहा है कि वर्ष 2012 में भारत का न केवल पुनरूत्थान होने वाला है, बल्कि भारत के ही नेतृत्व में एक "आदर्श विश्व-व्यवस्था" भी कायम होने वाली है। ऐसे में, उजागर होते नित नये घोटाले तथा सन्तरी से मंत्री तक के घरों से बरामद होती करोड़ों-अरबों की काली सम्पत्ति "सूर्योदय से पहले के अन्धेरे" की ओर संकेत करती है। और इन सबके प्रति जनता का मौन "तूफान से पहले की शान्ति" को बयान करती है।
यानि "सूर्योदय" या "परिवर्तन की आँधी" नजदीक ही है। स्वामी रामदेव तथा अन्ना हजारे ने संयुक्त रुप से आगामी अगस्त में जिस विशाल जनान्दोलन की बात कही है, क्या वहीं से इसकी शुरुआत होगी?
बस, यहीं से मेरे दिमाग व दिल में द्वन्द शुरु हो जाता है।
दिमाग कहता है- चूँकि 31 मई 2012 को जेनरल वी.के. सिंह अवकाश ग्रहण कर लेंगे और नये थलसेनाध्यक्ष के बारे में ऐसी आशंका बनती है कि उनकी निष्ठा देश के प्रति कम तथा सरकार के प्रति ज्यादा होगी, इसलिए सरकार आगामी अगस्त वाले जनान्दोलन को कुचलने में सफल हो जायेगी। वह जनता पर गोली चलवाने या आपात्काल लगाने से भी नहीं हिचकेगी। (इस सरकार में शामिल लोग अच्छी तरह से वाकिफ हैं कि देश की भोली जनता उनकी सारी करतूतों को चार-छ्ह महीनों में ही भुला देगी। या फिर, अगली सरकार इतनी नकारा साबित होगी कि फिर जनता उन्हें ही सत्ता सौंप देगी।)
दिल कुछ और ही कहता है। उसके अनुसार, चूँकि सर्वोच्च न्यायालय ने परोक्ष रुप से ईशारा कर दिया है कि "भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए लक्ष्मण-रेखा को लाँघना जरूरी है", इसलिए जेनरल वी.के. सिंह भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ छेड़े गये अपने युद्ध को "परिणति" (अंजाम) तक पहुँचाने के लिए 31 मई 2012 को अवकाशग्रहण नहीं करेंगे। ऐसे में, अगस्त वाले जनान्दोलन को कुचलने के लिए बल-प्रयोग करने या आपात्काल लागू करने से पहले सरकार एक हजार बार सोचेगी। यकीनन, एक हजार बार!
यहाँ प्रसंगवश, मैं दो बातों का जिक्र करना चाहूँगा। पहली बात, बहुत-से साथी यह मानते हैं कि 2014 के आम चुनाव में (या दिसम्बर'12 में अगर मध्यावधि चुनाव होते हैं तो उसमें) वर्तमान सत्ताधारी दल को हटाकर विपक्षी दल को सत्ता सौंप देने से सब ठीक हो जायेगा। मैं ऐसे साथियों को बता दूँ कि सारे-के-सारे "माननीय" रिश्ते में एक-दूसरे के "मौसेरे भाई" हैं- इनसे "देश की भलाई" की उम्मीद मत रखिये। चुनाव में ये करोड़ों रुपये "देश की भलाई" के लिए नहीं खरचते हैं! आप सब मेरी बात मानिये और दस वर्षों के लिए सभी माननीयों को छुट्टी पर भेजते हुए एक "चाणक्य सभा" के दिशा-निर्देशन में दस वर्षों की एक "चन्द्रगुप्तशाही" कायम करने की मेरी विचारधारा का समर्थन कीजिये। दूसरी बात, स्वामी रामदेव और अन्ना हजारे की "नीति" है- वर्तमान सरकार को सशक्त लोकपाल का गठन करने तथा कालेधन को राष्ट्रीय सम्पत्ति घोषित करने के लिए "बाध्य" करना। उनसे भी मैं कहना चाहूँगा कि वे अपनी इस "नीति" का त्याग करते हुए मेरी विचारधारा पर गहराई से विचार-मन्थन करें- अभी अगस्त आने में समय है।
खैर। मेरे दिमाग और मेरे दिल में से किसकी बात सही साबित होगी, यह तो वक्त ही बतायेगा, मगर मैं इतना जरूर जानता हूँ कि इस देश में व्यवस्था-परिवर्तन का कोई भी जनान्दोलन तभी सफल होगा, जब उसे सेना का मौन समर्थन हासिल हो! चूँकि सेना से "सीधे" समर्थन नहीं माँगा जा सकता, इसलिए पूर्व-सेनानियों (भूतपूर्व सैनिकों) को आगामी जनान्दोलन में "अग्रिम पंक्ति"- "हरावल दस्ता" बनाया जाना चाहिए!
अन्त में, साथियों, 31 मई 2012 का दिन इस देश के इतिहास में एक निर्णायक दिन- टर्निंग प्वाइण्ट- बनने जा रहा है... उस दिन न केवल आगामी "अगस्त जनान्दोलन" की नियति तय होगी, बल्कि देश की नियति भी उसी दिन तय हो जायेगी कि देश को खुशहाल, स्वावलम्बी एवं शक्तिशाली बनना है या बदहाल, पराश्रयी एवं दब्बू बने रहना है... अतः आप सब प्रार्थना करें कि उस दिन जेनरल वी.के. सिंह के अवकाशग्रहण की नौबत न आये।
फिलहाल तो पांसा सर्वोच्च न्यायालय के हाथ में है।

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