शुक्रवार, 8 जून 2012

कोई भी "विमुद्रीकरण" की बात नहीं करता!


11 फरवरी 2012 को लिखा गया 

      लीजिये, आज फिर एक छापेमारी में करोड़ों की सम्पत्ती बरामद हुई। इसबार 'नोट गिनने वाली मशीन' भी बरामद हुई, जिसे टी।वी। समाचारों में प्रमुखता से दिखाया जा रहा था। दो-चार महीनों में ऐसी एक खबर आजकल आ ही जाती है। आई।ए।एस। से लेकर नगर निगम कर्मचारी तक और मंत्री से लेकर पंचायत सेवक तक के घरों से करोड़ों रूपये के नोट यहाँ पाये जाते हैं। कुछ ही रोज पहली चुनावी राज्यों में भी करोड़ों के नोट धराये थे। कहा यही जा सकता है कि अपने यहाँ "काली कमाई" को "नकदी" के रुप में "छुपाकर" रखने का "रिवाज" अब भी कायम है।
      एक दूसरे विन्दु पर विचार करें- जाली नोट अब ऐसे बनने लगे हैं कि 'अल्ट्रा वायलेट' मशीन में देखने पर ये असली लगते हैं। ये हजार-पाँच सौ के नोट आम लोगों के लिए तो आफत हो ही गये हैं, बैंकों की तिजोरियों तक से इनकी बरामदगी होने लगी है! जाली नोटों से जनता को व्यक्तिगत नुक्सान हो रहा है, नौजवान गलत रास्ते पर जा रहे हैं और देश की अर्थव्यवस्था को चोट पहुँच रही है।
      सब जानते हैं कि (देशी) "काले धन" तथा (पाकिस्तानी) "जाली नोट"- इन दोनों का खात्मा एक ही हथियार से किया जा सकता है, और वह है- "विमुद्रीकरण"! या तो (1।) हजार-पाँच सौ के नोटों को बन्द ही कर दिया जाय, या फिर, (2।) इन्हें वापस मँगवाकर इनके स्थान पर नये किस्म के नोट जारी कर दिये जायें।
      बेशक, पहला विकल्प आसान है- बिलकुल 'हर्रे लगे न फिटकरी और रंग चोखा हो जाये' वाली बात है। ध्यान रहे, सौ-पचास के नकली भारतीय नोट छापकर पाकिस्तान को कोई फायदा नहीं होगा- लागत ज्यादा पड़ जायेगी।
दूसरा विकल्प कठिन है। दूसरी बात- चार-पाँच वर्षों के अन्दर पाकिस्तान इन नये किस्म के नोटों का भी नकल करने में सफल हो ही जायेगा।  
अतः आज की तारीख में हजार-पाँच सौ के नोटों को बन्द करना ही कारगर उपाय नजर आ रहा है- "काले धन" एवं "जाली नोट" की समस्या से निपटने के लिए। इसका एक अच्छा 'साईड इफेक्ट' भी पड़ेगा- "नकदी" के स्थान पर "चेक"/"ड्राफ्ट" द्वारा तथा "ऑनलाईन"/"इलेक्ट्रॉनिक" माध्यम से लेन-देन बढ़ जायेगा। यह "सफेद" लेन-देन होगा।
हाँ, दोनों में से जो भी विकल्प अपनाया जाय, इतना जरूर ध्यान रखा जाय कि-
1.   30 दिनों के अन्दर सारे देश में एक साथ; या 90 दिनों के अन्दर देश के अलग-अलग हिस्सों में नोटों की अदला-बदली की जाय।
2.      अदला-बदली के दौरान एक हजार रुपये तक की राशि को डाकघर की शाखाओं में हाथों-हाथ बदला जाय
3.      इसी प्रकार, पाँच हजार रुपये तक की राशि को बैंकों की शाखाओं में हाथों-हाथ बदला जाय
4.      पाँच हजार से बड़ी राशि को पास बुक के माध्यम से बदला जाय- यानि, पुराने नोटों को खाते में जमा करके सौ-पचास के या नये नोटों का भुगतान दिया जाय
5.      पचास हजार रुपये से अधिक की राशि को बदलने के लिये आयकर विभाग की मंजूरी अनिवार्य की जाय
6.      भविष्य में प्रत्येक बीस वर्ष में एक बार विमुद्रीकरण की इस प्रक्रिया को दुहराने की व्यवस्था की जाय
7.      बैंक और बैंक-जैसी संस्थाओं में लॉकर की व्यवस्था या तो समाप्त कर दी जाय, या फिर, इसकी गोपनीयता समाप्त कर दी जाय
अगर वास्तव में ऐसा होता है, तो यकीन कीजिये, पाकिस्तान में दाऊद कम्पनी तथा भारत में भ्रष्ट बिरादरी दो-तीन जाड़े नोट जलाकर हाथ तापते हुए बितायेंगे!
मगर अफसोस, कि "विमुद्रीकरण" पर न तो राजनीतिक दल कुछ बोलते हैं, और न ही रिजर्व बैंक। आखिर इसका क्या अर्थ निकालें हम पब्लिक? 

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