शुक्रवार, 8 जून 2012

पेट्रो-पदार्थों की खपत को कम करने के लिए पाँच-सूत्री उपाय


24/5/2012

प्रस्तुत है पेट्रो-पदार्थों की खपत को कम/नियंत्रित करने के पाँच उपाय:-
1. "मकड़जाल साइकिल ट्रैक" नगरों-महानगरों में "फ्लाइओवर" साइकिल ट्रैकों का निर्माण किया जाय, जो "छायादार" हो और जिसकी संरचना "मकड़ी के जाले" पर आधारित हो। इस ट्रैक के प्रत्येक "जंक्शन" पर सीढ़ियों तथा पार्किंग की व्यवस्था हो। प्रत्येक पार्किंग में पर्याप्त मात्रा में साइकिलें पहले से उपलब्ध हों। लोग नाममात्र की कीमत पर टिकट कटाकर ट्रैक पर आयें, कोई भी साइकिल उठाकर नगर-महानगर के अन्दर कहीं भी जायें और फिर साइकिल छोड़कर नीचे उतर जायें। बेशक, एक टिकट दिनभर के लिए वैध हो!
2. दूकानों के लिए "सौर-बिजली"। मकड़जाल साइकिल ट्रैक पर (छाया के लिए) जो "शेड" हो, उसपर "सौर-प्लेट" बिछा दिये जायें। (इसे कहेंगे- आम के आम, गुठली के दाम!) जंक्शन के नीचे "बैटरी घर" हों और इन बैटरी घरों से डी.सी. बिजली की सप्लाई दूकानों को दी जाय। बदले में दूकानों से जेनरेटर हटा दिये जायें। बड़े-बड़े भवनों, मॉलों से भी जेनरेटर हटवाये जा सकते हैं- अगर हर भवन को "सोलर ऊर्जा" अपनाने के बाध्य कर दिया जाय! रही बात एयर कण्डीशनर की, तो इनके स्थान पर "खस के पर्दों" या "डेजर्ट कूलर" की व्यवस्था की जा सकती है। हाँ, "लिफ्ट" का विकल्प फिलहाल मुझे नहीं सूझ रहा।
3. गाड़ियों की संख्या पर नियंत्रण। न तो हमारा पर्यावरण, न ही हमारी सड़कें मोटर-गाड़ियों की बेतहाशा बढ़ती संख्या को झेलने की स्थिति में है। बेहतर है कि जो नगर-महानगर "प्रदूषित" घोषित किये जा चुके हों, उनमें मोटर-गाड़ियों के पंजीकरण पर प्रतिबन्ध लगा दिये जायें। गाड़ियों का "स्थानान्तरण" भी वहाँ न होने पायें। ये प्रतिबन्ध तब तक जारी रहने चाहिए, जब तक कि नगर-महानगर "प्रदूषणमुक्त" घोषित न हों!
4. सेनाओं के लिए "सिमुलेटर"। एक लड़ाकू विमान या एक टैंक अपने "दैनिक" एवं "नियमित" "अभ्यास" के दौरान जितनी मात्रा में ईंधन पीता है, उस मात्रा को अगर वायुयानों/टैंकों की कुल संख्या से गुणा करके फिर गुणनफल को 365 से गुणा किया जाय, तो उत्तर देखकर किसी का भी सर चकरा जायेगा! इस बेशकीमती प्राकृतिक संसाधन का यह अन्धाधुन्ध प्रयोग चूँकि "देश की सुरक्षा" के नाम पर हो रहा है, इसलिए कोई उँगली उठाना नहीं चाहता। मगर मैं उँगली उठाता हूँ और कहता हूँ कि सेनाओं में "सिमुलेटरों" की पर्याप्त मात्रा में व्यवस्था की जाय। सेनायें अपना दो-तिहाई अभ्यास सिमुलेटर पर कर सकती हैं। वास्तविक विमानों/टैंकों में एक-तिहाई अभ्यास पर्याप्त होना चाहिए। इस प्रकार पेट्रों-पदार्थों की एक बहुत-बहुत बड़ी मात्रा बचाई जा सकती है!
5. अन्तर्देशीय नौवहन को बढ़ावा। नदियों के रास्ते माल ढुलाई किसी भी अन्य साधन के मुकाबले सस्ती पड़ेगी। अतः नदियों पर बने बाँधों को (मैं "पुल" नहीं, "बाँध" कह रहा हूँ) को तोड़ा जाय; गाद की सफाई कर नदियों की गहराई बढ़ायी जाय; और "घाटों" को पक्का बनाया जाय। माल-ढुलाई का एक बहुत बड़ा हिस्सा नदियों के रास्ते हो सकता है।
मगर इन उपायों को अपनाने के लिए एक ऐसी "शक्ति" की जरुरत है, जिसे देश की जनता ने पिछले 65 वर्षों में किसी भी सरकार में नहीं देखा है। जी हाँ, मैं "इच्छाशक्ति" की बात कर रहा हूँ।  
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पुनश्च:
एक छ्ठा उपाय भी है, जिसके बारे में मैंने बाद में लिखा:

113. दो पड़ोसी नगरों के बीच "फ्लाइ-ओवर" "शटल" ट्रेन सेवा- बिना बिजली, बिना डीजल के!

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