शुक्रवार, 8 जून 2012

राजनेता चाहे- अशिक्षित मतदाता


4 फरवरी 2012 को लिखा गया

      हमें पढ़ाया जाता था कि 'साहित्य, समाज का दर्पण है।' इसी तर्ज पर आज कहा जा सकता है कि 'इण्टरनेट, शिक्षित समाज का दर्पण है।' देश के शिक्षित समाज का बड़ा हिस्सा क्या सोचता है, समकालीन राजनीति के प्रति उसका दृषिकोण क्या है, इनका अनुमान सोशल नेटवर्किंग साइट्स, ब्लॉग्स, वेब-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने वाली सामग्रियों तथा उनपर की जाने वाली टिप्पणियों से लगाया जा सकता है।
      आज की तारीख में अगर हम काँग्रेस पार्टी, सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी, कपिल सिब्बल, दिग्विजय सिंह, डॉ। मनमोहन सिंह, इत्यादि की प्रशंसा में लिखी गयी सामग्री इण्टरनेट पर खोजना चाहें, तो शायद ही कुछ हाथ लगे। कम-से-कम, नागरिकों की ओर से प्रस्तुत की गयी ऐसी सामग्री नहीं मिलेगी।
अगर उक्त तथ्य को "नमूना" माना जाय, तो अनुमान यही कहता है कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में काँग्रेस को सफलता नहीं मिलने वाली और 2014 में प्रधानमंत्री बनने का राहुल गाँधी का सपना चूर हो जायेगा। मगर भारत के लोकतंत्र में "कुछ भी" सम्भव हो जाता है! काँग्रेस न केवल उ।प्र। में जीत दर्ज करा सकती है, बल्कि राहुल 2014 में प्रधानमंत्री भी बन सकते हैं। इसके पीछे कारण यह है कि देश में शिक्षित मतदाताओं की संख्या मुट्ठीभर है- अधिकांश मतदाता सीधे-सादे, भोले एवं ग्रामीण हैं, जो मूलभूत शिक्षा से भी दूर हैं- इण्टरनेट तो उनके लिए रहस्य या जादू है।
सीधे-सरल मतदाताओं का यह विशाल वर्ग दिल से, यानि भावुक होकर मतदान करता है। कभी यह राजीव गाँधी को "टूअर" समझकर काँग्रेस को भारी मतों से जिताता है, तो कभी "रामलला" के मन्दिर की आस में भाजपा के लिए भारी मतदान करता है। यह कभी-कभी आक्रोशित भी होता है, जैसे- नागरिकों के अधिकार छीनने वाले "आपात्काल" से क्रोधित होकर इसने काँग्रेस का पत्ता साफ कर दिया था, तो भूखे पेट खुशी महसूस कराने वाले अँग्रेजी नारे "फील गुड" की धज्जियाँ उड़ाते हुए भाजपा को सत्ता से बेदखल कर दिया था। 
फिर भी, सच्चाई यही है कि "इस मतदाता वर्ग की जरूरत काँग्रेस व भाजपा दोनों को है", ताकि वे चुनाव के समय इनकी भावनाओं का दोहन कर सकें, इनमें एक 'लहर' पैदा कर सकें। ।।।और इस वर्ग को "बनाये रखने" के लिए ही 1947 से लेकर आज तक हमारे "बजट" में "शिक्षा" पर पर्याप्त खर्च नहीं किया जाता! (यह खर्च बमुश्किल 5 प्रतिशत है, जबकि भारत-जैसे देश में यह खर्च 15 से 20 प्रतिशत होना चाहिए- कम-से-कम 10 वर्षॉं के लिए!)  

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