गुरुवार, 7 जून 2012

गणतंत्र दिवस का चिन्तन


24 जनवरी 2012 को लिखा  गया 

      किसी भी और देशभक्त की तरह मैं भी गणतंत्र दिवस पूरी श्रद्धा के साथ मनाता हूँ- क्योंकि यह हमारा "राष्ट्रीय" त्यौहार है। पर जैसा कि गौतम बुद्ध या अन्यान्य मनीषियों ने कहा है, हमें शंका जाहिर करनी चाहिए, सवाल पूछने चाहिए।।। "अन्धभक्त" की तरह बिना चिन्तन-मनन किये, बिना अपनी अन्तरात्मा को भरोसे में लिए माता-पिता या गुरूजन की बात मान नहीं लेनी चाहिए।
      तो मेरे मन में भी हमारे महान "गण"-तंत्र को लेकर दो सवाल हैं।
      सवाल-1: चुनावों में लगभग 50 प्रतिशत मतदान होता है। यह 50 प्रतिशत मतदान भी तीन या चार मुख्य उम्मीदवार तथा सात या आठ गौण उम्मीदवारों के बीच बँट जाता है। यानि चुनाव में जो विजयी होता है, उसे बमुश्किल 5-7 प्रतिशत मत मिला होता है। बहुत हुआ तो 10 प्रतिशत। अब इसे दूसरे नजरिये से देखें- विजयी प्रत्याशी को उसके निर्वाचन क्षेत्र के 90 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन हासिल "नहीं" है! कड़े शब्दों में कहा जाय तो उसके क्षेत्र के 90 प्रतिशत मतदाता नहीं चाहते कि वह उनका प्रतिनिधित्व करे या संसद में बैठकर उनके लिए कायदे-कानून बनाये। फिर भी वह "जनप्रतिनिधि" बनता है और कायदे-कानून बनाता है। क्या "गण"-तंत्र में ऐसा होना चाहिए?
(अगर आप मतदान को "अनिवार्य" बनाते हैं, तो आपको जनप्रतिनिधि को "वापस बुलाने" का अधिकार भी नागरिकों को देना चाहिए। मतदान के दौरान हर उम्मीदवार को "नकारने" का अधिकार भी देना होगा। सोचना भी चाहिए कि आखिर 50 फीसदी लोग मतदान से कतराते क्यों हैं? क्या पता, वे "साँप" और "नाग" में से किसी एक को चुनते-चुनते तंग आ गये हों? वैसे, यह एक अलग मसला है।)
      सवाल- 2: कहने को "संसद" देश के लिए नीतियाँ बनाता है, मगर क्या वास्तव में ऐसा है? नहीं है। "सत्ता पक्ष" ही देश के लिए नीतियाँ बनाता है। सत्ता पक्ष में भी सभी सांसद मिलकर नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री और उसका मंत्रीमण्डल नीतियाँ बनाता है। मंत्रीमण्डल के भी सभी मंत्री नहीं, बल्कि कुछ ही मंत्री- 4-5, या बहुत हुआ तो 5-7 बस! (इसे 'किचन कैबिनेट' कहने का फैशन है।) आप कोई भी तर्क दीजिये, मगर सच्चाई यही है कि ज्यादा-से-ज्यादा "एक दर्जन" लोग मिलकर देश को चलाते हैं! क्या "गण"-तंत्र में ऐसा होना चाहिए?
      लगभग 90 प्रतिशत नागरिकों का प्रतिनिधित्व "नहीं" करने वाले लगभग "एक दर्जन" लोगों द्वारा देश की नियति को तय करना ही अगर "गण"-तंत्र की "महानता" है, तो वाकई हमारा "गण"-तंत्र महान है!

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