शुक्रवार, 8 जून 2012

एक पत्र अन्ना के नाम


27/3/2012

अन्नाजी,
      जय हिन्द!
      सबसे पहले तो मैं यह स्पष्ट कर दूँ कि आपके अप्रैल'11 एवं अगस्त'11 के आन्दोलनों के साथ जैसा भावनात्मक जुड़ाव मैंने महसूस किया था, वैसा जुड़ाव दिसम्बर'11 तथा अभी-अभी सम्पन्न मार्च'12 के आन्दोलनों के दौरान मैंने महसूस नहीं किया है। (यह "अन्तरात्मा की आवाज" का मामला है।)
      बाद में खबरों से मुझे पता चला कि आपने इस मार्च'12 वाले आन्दोलन के दौरान "याचना नहीं, अब रण होगा" का नारा दिया है। मैं इस सम्बन्ध में दो-चार बातें आपसे कहने की अनुमति चाहता हूँ।
"याचना" व "रण" के बारे में मैं इतना जानता हूँ कि "याचना" की नीति गाँधीजी एवं उनके अनुयायियों ने अपनायी थी- अँग्रेजों से आजादी पाने के लिए। इसके तहत आजादी "मुफ्त" में मिलनी थी, या "भिक्षा" के रुप में। इस नीति का फायदा यह था कि आजादी (या "सत्ता-हस्तांतरण") के बाद "सत्ता-सुख" भोगने की सम्भावना स्पष्ट थी! इसके मुकाबले, "रण" की नीति खुदीराम, भगत सिंह, नेताजी सुभाष-जैसे सरफरोशों ने अपनायी थी- अँग्रेजों से उसी आजादी को पाने के लिए। इसके तहत "आजादी की पूरी कीमत अदा" की जानी थी! इस नीति में यह शीशे की तरह साफ था कि इन रणबाँकुड़ों को किसी भी वक्त बलिदान होना पड़ सकता था!
अब चूँकि आपने "गाँधी की याचना" के स्थान पर "सुभाष की रण" की नीति अपना ली है, अतः आपसे निवेदन है कि अगले आन्दोलन से पहले कृपया "राजघाट" जाकर आशीर्वाद न लें। इसके बदले नेताजी सुभाष या भगत सिंह की प्रतिमा के नीचे कुछ देर ध्यानमग्न बैठें- अमर शहीदों का आह्वान करें, उनसे आशीर्वाद लें और उनके अन्दर की देशभक्ति की ज्वाला को अपने सीने के अन्दर धधकती हुई महसूस करें! इससे आपका आन्दोलन सफल जो जायेगा- ऐसा दावा मैं नहीं करता, मगर मुझे लगता है, इससे फर्क पड़ेगा।
दूसरी महत्वपूर्ण बात- कोई भी महान उद्देश्य तब तक सफल नहीं होता, जब तक कि उसके पीछे की "नीयत" सौ फीसदी "पाक-साफ" न हो! आपके साथ, खासकर- आपकी "टीम" के साथ- ऐसा नहीं है। उनके दिलों में "पक्षपात" भरा हुआ है। मेरा ईशारा किस ओर है- आपको समझ जाना चाहिए। जबतक कुछ खास वर्गों के प्रति पक्षपात की यह भावना आपलोगों के दिलों में है- सफलता आपसे दूर ही भागेगी- ऐसा मेरा अनुमान है।
बस, मुझे यही दो बातें आपसे कहनी थीं- 1. गाँधीजी के स्थान पर किसी अमर शहीद से आशीर्वाद लें और 2. अपने हृदय में पक्षपात की भावना न रहने दें- सभी भारतीयों को बराबर समझें। हाँ, अगर आपने उपर्युक्त नारे का इस्तेमाल सिर्फ जोश भरने या दिखावे के लिए किया है, तब तो मेरी सलाहों को आप एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल सकते हैं!
ईति, शुभकामनाओं के साथ।
                                                      आपका-
                                                      जयदीप शेखर 

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