गुरुवार, 7 जून 2012

फिर भी यह सरकार शासन कर रही है !


2 फरवरी 2012 को लिखा गया 
2G फैसले पर मेरी प्रतिक्रिया
हालाँकि अखबार में जिक्र नहीं है, पर कल टी.वी. पर एक विचारक कल के फैसले से एक विन्दु को उद्धृत करते हुए बता रहे थे कि सर्वोच्च न्यायालय यह मानता है इस देश में पिछले 15-20 वर्षों के दौरान जितने लोग धनी बने हैं, उनमें से कोई भी नये विचार, नयी खोज या नये आविष्कार, या नये उद्यम के बल पर धनी नहीं बना है बल्कि सबके-सब देश की सम्पदा (चाहे वह खनिज सम्पदा हो, या सरकारी खजाना) को लूटकर ही अमीर बने हैं! इसमें हमारी (केन्द्र व राज्यों की) सरकारों ने ही (घूँस या कमीशन खाकर) उन्हें मदद पहुँचाई है, जबकि देश की सम्पदा की रक्षा का दायित्व उन्हीं पर है! …जरा सोचिये, कितनी दुर्भाग्यजनक स्थिति है।
जिस दूसरे तथ्य पर मेरा ध्यान जा रहा है, वह है- देश की जनता इस सरकार से नाराज है (अगस्त’11 में लगभग सारा देश ही सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतर गया था); देश की न्यायपालिका इस सरकार ने नाराज है (कम-से-कम एक दर्जन बार तो सर्वोच्च न्यायालय इस सरकार की फजीहत कर चुका है); देश की सेना भी इस सरकार से नाराज है (कुछ जाँच में और ज्यादा फँसने के डर से सरकार सेनाध्यक्ष को साल भर पहले रिटायर करना चाहती है), फिर भी यह सरकार हम पर शासन कर रही है ! …क्या इससे अधिक भी दुर्भाग्यजनक स्थिति किसी देश के लिए हो सकती है?
मेरी नजर में, काँग्रेस के स्थान पर भाजपा को सत्ता सौंप देना इस स्थिति से उबरने का रास्ता नहीं है। अब तो यह देश एक नयी ही व्यवस्था माँग रहा है।
मेरे विचार से, “लक्ष्मण-रेखा” लाँघने का वक्त आ गया है… एक ऐसी सरकार इस देश में बने, जिसमें 33 प्रतिशत भागीदारी न्यायपालिका की हो; 33 प्रतिशत सेना की, तथा 33 प्रतिशत आम जनता की। यह व्यवस्था कम-से-कम दस वर्षों तक कायम रहे और इस दौरान सारे जरूरी सुधारों (सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, पर्यावरणीय, इत्यादि-इत्यादि) को देश में लागू कर दिया जाय!
अन्त में, मैं कल के फैसले के लिए न्यायाधीश ए.के. गाँगुली महोदय के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ; सुब्रमण्यम स्वामी को उनकी ‘वन मैन आर्मी’ वाली शैली में कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए बधाई देता हूँ, और स्वामी की सहायता करने के लिए प्रशान्त भूषण को धन्यवाद देता हूँ।

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