गुरुवार, 7 जून 2012

यह इतिहास को दुहराने का वक्त है


13 दिसम्बर 2011 को लिखा गया


1942 की सर्दियों में जब नेताजी सुभाष को जर्मनी से जापान लाने की तैयारियाँ चल रही थीं, तब टोक्यो में जापानी ग्राउण्ड सेल्फ-डिफेन्स के लेफ्टिनेण्ट जेनरल सीजो आरिसु रासबिहारी बोस से पूछते हैं- क्या आप नेताजी के अधीन रहकर काम करना पसन्द करेंगे?
उधर बर्लिन में जापानी मिलिटरी अटैश के श्री हिगुति यही सवाल नेताजी से करते हैं- क्या आप रासबिहारी बोस के अधीन रहकर काम करना पसन्द करेंगे?
दरअसल, जापान को डर था कि भारत की आजादी के संग्राम के दो महानायकों के अहम् कहीं आपस में टकरा तो नहीं जायेंगे?
जरा सोचिये, दोनों के जवाब सुनकर जापानियों को कितना सुखद आश्चर्य हुआ होगा! रासबिहारी बोस ने कहा था- देश की आजादी के लिए वे सहर्ष नेताजी के अधीन रहकर काम करेंगे ।।।और नेताजी ने कहा था- वे व्यक्तिगत रुप से तो रासबिहारी बोस को नहीं जानते; मगर चूँकि वे टोक्यो में रहकर देश की आजादी के लिए काम कर रहे हैं, इसलिए वे (नेताजी) खुशी-खुशी उनके (रासबिहारी बोस के) सिपाही बनने के लिए तैयार हैं
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आज इस उदाहरण को दुहराने की आवश्यकता आन पड़ी है। स्वामी रामदेव तथा अन्ना हजारे को इस उदाहरण को दुहराना ही पड़ेगा। अन्यथा समय बीतते जायेगा और देश को न तो भ्रष्टाचार से मुक्ति मिलेगी और न ही विदेशों से देश का धन वापस आयेगा।
दोनों के एक मंच पर न आने से जनता भी दो भागों में बँटती जा रही है। कुछ का मानना है स्वामीजी ने जून में अनशन करके अन्ना के आन्दोलन की धार को कुन्द कर दिया, तो कुछ मानते हैं कि स्वामी जी के आन्दोलन की धार को कुन्द करने के लिए सरकार अन्ना का इस्तेमाल कर रही है।
हालाँकि सच्चाई यही है कि दोनों ही देश का- देश की आम जनता का, भला चाहते हैं और दोनों में से किसी के मन में अहम् नहीं है। फिर यह दूरी क्यों?
सवाल विचारणीय है। मुझे लगता है कि अन्ना की टीम के कुछ लोग खुद को कुछ ज्यादा ही "धर्मनिरपेक्ष" साबित करने के लिए अन्ना को स्वामी से दूर रखने की कोशिश कर रहे हैं। अगर ऐसा है, तो वे देश को नुकसान पहुँचा रहे हैं- इसमें दो राय नहीं होनी चाहिए।
काँग्रेस पार्टी बिलकुल अँग्रेज सरकार की तरह व्यवहार कर रही है। वह दोनों को कभी एक मंच पर नहीं आने देगी- इसके लिए स्वामी अग्निवेश-जैसे लोग उसे हमेशा मिलते रहेंगे। दोनों से अलग-अलग 'निपट लेने' में यह सरकार सक्षम भी नजर आती है। जनता जबतक दो समूहों में बँटी रहेगी, तबतक यह सरकार चैन की साँस लेती रहेगी ।।और तबतक न तो देश को 'लोकपाल' मिलेगा और न ही 'काले धन का राष्ट्रीयकरण' होगा।
मेरी स्पष्ट धारणा है कि जिस दिन स्वामी रामदेव तथा अन्ना हजारे एक संयुक्त मोर्चा का गठन कर लेंगे, उसके तीन से छह महीनों के अन्दर न केवल देश को भ्रष्टाचार से मुक्ति मिल जायेगी; बल्कि विदेशों में जमा देश का धन भी देश में आ जायेगा। बेशक, इसी के साथ काँग्रेस पार्टी का "पारिवारिक साम्राज्य" भी समाप्त हो जायेगा।

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