शुक्रवार, 8 जून 2012

गोपनीयता? "चिट्ठी-खुलासे" वाली? या "घूँस-पेशकश" वाली???


29/3/2012

      हमारी वर्तमान राजनीतिक विचारधारा के लिहाज से सर्वाधिक ईमानदार, चरित्रवान एवं बेदाग छवि वाले राजनेताओं में से एक माननीय का कहना है कि सेनाध्यक्ष जेनरल वी.के. सिंह को बर्खास्त किया जाना चाहिए। कारण? –कि उन्होंने "गोपनीयता" की नीति को भंग कर दिया है। कौन-सी गोपनीयता? "चिट्ठी-खुलासा" वाली? या "घूँस-पेशकश" वाली?? वे कहेंगे चिट्ठी-खुलासा वाली। तो जनाब, हम भी हिन्दुस्तानी पब्लिक हैं- वर्षों से राजनीति देख रहे हैं, हम जानते हैं कि आपलोगों की "निगाह" कहाँ होती है और "निशाना" कहाँ होता है। बुरबक समझते हैं हमको? आपके पेट में मरोड़ इसलिए नहीं उठा कि जेनरल द्वारा प्रधानमंत्री को लिखी गयी चिट्ठी जाहिर हो गयी और हमारी रक्षा तैयारियों की "गोपनीयता" (पोल) जगजाहिर हो गयी; बल्कि आपको तकलीफ इस बात से है कि जेनरल को चौदह करोड़ की घूँस की जो पेशकश की गयी थी, उस "अति गोपनीय" नीति को उन्होंने जगजाहिर क्यों कर दिया!
      आईये, जरा विस्तार में चलते हैं।
      रक्षा-तैयारियों के मामले में "गोपनीयता" की नीति उन हथियारों, उपकरणों इत्यादि पर लागू होती है, जिनका उत्पादन हम स्वयं करते हों- जैसे कि परमाणु बम। हमारे पास कितने तैयार बम हैं, कितने और बनाने की क्षमता है, कितने समय में बना सकते हैं- इन बातों पर "गोपनीयता" की नीति लागू होती है। हमारे दूसरे परमाणु-परीक्षण की तैयारी इतनी "गोपनीय" थी कि इसकी भनक तक सी.आई.ए. वालों को नहीं लग पायी थी और इस चक्कर में पता नहीं कितने सी.आई.ए. अधिकारियों को अपनी नौकरी भी गँवानी पड़ी होगी! खैर। बाकी युद्धक साजो-सामान हम खुद नहीं बनाते। जलपोत, वायुयान, टैंक, राडार, गोला-बारूद इत्यादि हर चीज हम विदेशों से खरीदते हैं। ऐसे में, दुनिया का जो भी देश भारत की रक्षा-तैयारियों के बारे में जानना चाहे, "डिफेन्स रिव्यू" पत्रिकाओं का अध्ययन करके जान सकता है। चीन, पाकिस्तान, अमेरिका, रूस, इजरायल, फ्राँस, ब्रिटेन वगैरह देश हमारी सेनाओं की मारक-क्षमता के बारे में हम आम भारतीयों से कहीं ज्यादा जानते होंगे। अतः उक्त चिट्ठी का राज खुलने पर हमारे राजनेता भले नाटक कर रहे हों कि "गोपनीयता" भंग हो गयी- वास्तव में ऐसा कुछ नहीं है। चीन-पाकिस्तान वाले भारतीय राजनेताओं की इस नौटंकी पर मन्द-मन्द मुस्कुरा रहे होंगे... ।
      हमारे राजनेताओं के "पेट दर्द" का कारण यह है कि जेनरल ने उस "दलाल" की जानकारी आम कर दी, जो चालीस लाख की गाड़ियों को एक करोड़ दस लाख की दर से खरीदने की पेशकश लेकर जेनरल के पास पिछले साल गया था। उसका कहना था कि इससे जेनरल को घूँस के रुप में चौदह करोड़ रूपये मिलेंगे। उसने यह भी कहा था कि आपसे पहले के जेनरल भी ऐसा करते रहे थे और आपके बाद आने वाले भी ऐसा ही करेंगे। जेनरल उस "दलाल" की हिमाकत देखकर दंग रह गये थे और उन्होंने सी.सी.टी.वी. फुटेज सहित इस बात की जानकारी रक्षामंत्री को दे दी थी। रक्षामंत्री (जो कि वास्तव में ईमानदार हैं) भी राजनीतिक दवाब के चलते उस वक्त उस "दलाल" पर कार्रवाई नहीं कर सके थे। कोई भी समझ सकता है कि "सत्ता के सर्वोच्च शिखर" का "अभयदान" प्राप्त कोई दलाल ही इतनी हिम्मत कर सकता है कि वह सीधे भारत के थल सेनाध्यक्ष के दफ्तर में जाकर उन्हें घूँस की पेशकश कर दे! जेनरल के खुलासे के बाद अब मामला सी.बी.आई. को सौंपा गया है।
मगर हम सी.बी.आई. से कोई उम्मीद नहीं रख सकते। सी.बीआई. गृह मंत्रालय के अधीन है, गृह मंत्रालय सरकार के, और सरकार उसी "गोपनीय" (?) सत्ता-शिखर के अधीन है! सी.बी.आई. की रिपोर्ट जेनरल के खिलाफ ही जायेगी; जैसे कि उम्र-विवाद मामले में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला जेनरल के खिलाफ गया था। इस उम्र-विवाद मामले में फैसला आने से कुछ रोज पहले मैंने अपने एक आलेख में लिखा था- "...सरकार "किन कारणों से" सेनाध्यक्ष को साल भर पहले रिटायर करना चाहती है- इसमें न्यायालय शायद ही रूची दिखाये।..." और बिलकुल यही हुआ! न्यायालय उम्र-विवाद के "तकनीकी" पहलूओं पर विवेचना करता रह गया... उसने एकबार भी यह नहीं सोचा कि आखिर सरकार को जल्दीबाजी क्यों है सेनाध्यक्ष को रिटायर करने की?
अब तो उत्तर मिल गया न? चालीस लाख की गाड़ियों को एक करोड़ दस लाख की दर पर खरीदना है- बेशक सैकड़ों गाड़ियाँ खरीदी जानी होंगी। अरबों-खरबों के और भी "डील" होने वाले होंगे- आगामी एक साल में। घूँस एवं कमीशन के रुप में मोटी कमाई राजनेताओं की तिजोरी में (खासतौर पर सत्ता के सर्वोच्च शिखर तक) जाने वाली है। जेनरल वी.के. सिंह के रहते यह नहीं होने जा रहा था। अतः उन्हें हटाकर एक "मनमाफिक" जेनरल की तत्काल नियुक्ति अनिवार्य हो चली थी। 2014 के बाद इन्हें थोड़े ही सत्ता में रहना है- जो करना है उससे पहले निपटा लेना है! और फिर, भारत की सत्ता के "गोपनीय" सर्वोच्च-शिखर का वरदहस्त प्राप्त एक "दलाल" को सेना का मामूली जेनरल दुत्कार दे- इसे भला बर्दाश्त किया जा सकता है! नहीं, जेनरल को तो मजा चखाना ही होगा! ये सत्तालोलुप माननीय भला किस दिन काम आयेंगे? इन्हीं से जेनरल की बर्खास्तगी की माँग करवाओ।
ओह, देश की "सुरक्षा"? इसकी चिन्ता करें .... "भारतीय" लोग! 

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