शुक्रवार, 24 मई 2013

141. आह!


     






       इन तस्वीरों को देखकर मैं आह भरकर रह जाता हूँ
काश, उस दिन अन्ना हजारे ने राजघाट पर जाकर गाँधीजी का आशीर्वाद लेने और रामलीला मैदान जाकर अनशन करने के बजाय आह्वान किया होता- "संसद चलो- चलो संसद!"... तो आज देश की तकदीर कुछ और ही होती...
ऐसा नहीं है कि नियति हमें अवसर नहीं देती। देती है, मगर कभी जनता चूक जाती है, तो कभी नेता।
1944 में जनता चूक गयी थी, जब वह नेताजी के "दिल्ली चलो- चलो दिल्ली" के आह्वान पर सड़कों पर नहीं निकली। बेशक, जनता से ज्यादा जिम्मेवार उस समय ब्रिटिश सेना के भारतीय जवान थे, जिन्होंने नेताजी का साथ देने के बजाय "महान ब्रिटिश साम्राज्य" की रक्षा का फैसला लिया!  
2011 में अन्ना हजारे चूक गये, जब वे संसद की ओर कूच करने का आह्वान करने का साहस नहीं दिखा पाये। ध्यान रहे- इस वक्त जेनरल वीके सिंह साहब सेनापति थे- किसी कीमत पर वे अपने जवानों को इस जनसैलाब के खिलाफ नहीं उतारते! रही बात पुलिस की, तो घूँसखोरी पर पलने वाले उसके जवानों की औकात क्या थी, जो इस जनसैलाब के सामने टिक पाते!
ऐसा "जन-सैलाब" अब शायद ही फिर कभी सड़कों पर निकले!  
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अब यह मत कहिये कि क्रान्तिकारी तख्तापलट के बाद देश की स्थिति और खराब हो जायेगी- देश में जो भी बदलाव आना है, वह हमारी महान "लोकतांत्रिक" प्रक्रिया के माध्यम से ही आयेगा। यह सुन-सुन कर मेरे कान पक गये हैं।
देश में अच्छे लोगों की कमी नहीं है। क्या देश में सुन्दरलाल बहुगुणा-जैसे पर्यावरणविद् नहीं हैं? क्या देश में सुभाष कश्यप-जैसे संविधानविद् नहीं हैं? क्या देश में माणिक सरकार-जैसे शासक और विनोद राय-जैसे प्रशासक नहीं हैं? क्या देश में जस्टिस राजू-जैसे न्यायाधीश नहीं हैं?
ऐसे ही, अच्छे शिक्षाविद्, अर्थशास्त्री, विदेशनीति विशेषज्ञ, रक्षा विशेषज्ञ, किसानों-मजदूरों के नेता- सब मिल जायेंगे। बस एक ही शर्त हो कि वे "चरित्रवान" हों। क्या चरित्रवान लोगों को हम अपनी महान "लोकतांत्रिक" प्रक्रिया के माध्यम से कभी संसद तक पहुँचा पायेंगे? मेरे इस सवाल को ध्यान से समझने की कोशिश कीजिये- पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर।   
फिर देखिये, ऐसी एक "कार्यकारी परिषद" के शासन के दौरान देश में कैसे बदलाव आता है, कैसे अमीरी-गरीबी की खाई को पाटा जाता है, कैसे चुनाव सुधार किये जाते हैं, कैसे लोकपाल का गठन होता है (भविष्य के लिए), कैसे देश की शासन, प्रशासन, पुलिस, न्याय व्यवस्था को चाक-चौबन्द बनाया जाता है, कैसे देश की जनता सुशिक्षित-सुसंस्कृत, खुशहाल बनती है, कैसे देश स्वावलम्बी और शक्तिशाली बनता है....
नहीं समझना है, तो मत समझिये। देते रहिए वोट- चुनते रहिए नागनाथों और साँपनाथों को बारी-बारी से। गाते रहिये अपने महान लोकतंत्र एवं महान संविधान के तराने और देखते रहिए देश को रसातल में जाते हुए... जैसे कि 'टाइटनिक' को डूबते हुए बहुत-से लोगों ने अपनी आँखों से देखा था... 
बाद में मत कहियेगा कि किसी ने चेताया नहीं था।
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