जन्म लेना, संसर्ग करना, अपनी सन्तति पैदा करना और मर जाना- इतना हर जीव करता है।
अगर परमात्मा ने मुझे मनुष्य
बनाया है, तो जरूर इनके अलावे भी मुझे कुछ करना है।
जितनी मेरी क्षमता होगी, उतना करुँगा; जो मुझसे बन सकेगा, वह करुँगा और जो संसाधन मेरे सामने उपलब्ध होंगे, उन्हीं के बल पर करूँगा।
जितनी मेरी क्षमता होगी, उतना करुँगा; जो मुझसे बन सकेगा, वह करुँगा और जो संसाधन मेरे सामने उपलब्ध होंगे, उन्हीं के बल पर करूँगा।
जहाँ मेरी सीमायें समाप्त
होगी, वहाँ सबकुछ ऊपरवाले के भरोसे छोड़ दूँगा।
...बस मेरी
कोशिश यही होगी कि कभी किसी का मजाक न उड़ाऊँ, किसी को नीचा न दिखाऊँ और किसी
का बुरा न चाहूँ।
ब्रह्माण्ड में इलेक्ट्रॉन है, तो प्रोटोन भी है और न्यूट्रॉन भी। तो
बुराई, अच्छाई और उदासीनता- सब बनी रहेंगी। मैं
न किसी को मिटा सकता हूँ, न किसी को बना कर सकता हूँ।
...बस यही देखूँगा कि मैं किस
तरफ हूँ।
जिस परम शक्ति ने मुझे ब्रह्माण्ड की सर्वोत्तम
कृति "मनुष्य" का जन्म दिया; जिस माता-पिता ने मुझे
स्वस्थ मस्तिष्क एवं ह्र्दय के साथ मुझे स्वस्थ शरीर दिया; जिन गुरुओं ने
मुझे पढ़ना-लिखना सीखाकर इस योग्य बनाया कि मैं किसी विषय पर स्वतंत्रतापूर्वक
विचार कर सकूँ; जिन अपनों की शुभकामनाओं ने मेरे चारों तरफ सुरक्षा-कवच बनाते हुए
मुझे हर अनिष्ट से बचाया- उन सबके प्रति मैं जन्म-जन्मान्तरों तक कृतज्ञ रहूँगा।
तुम्हारी इच्छा ही पूरी हो मेरे ईश्वर।
...मेरी सिर्फ इतनी-सी इच्छा है भगवान, कि मेरा
हर जन्म भारत माता की गोद में ही हो।
***** चित्र: साभार: http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/3/32/Flammarion-3.jpg
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