मान लीजिये कि किसी स्थान पर किसी अवसर पर पाकिस्तान का राष्ट्रगीत गाया जा
रहा है। या
फिर, चीन का ही राष्ट्रगीत गाये जाने की तैयारी है। वहाँ उपस्थित पाकिस्तानी या
चीनी नागरिक सावधान की मुद्रा में खड़े हो चुके हैं।
ऐसे में, वहाँ उपस्थित भारतीय क्या बैठे रहेंगे? या वहाँ से उठकर
चले जायेंगे??
मुझे तो ऐसा नहीं लगता। मुझे लगता है, वहाँ
उपस्थित भारतीय भी पाकिस्तानी या चीनी नागरिकों के साथ सावधान की मुद्रा में खड़े
हो जायेंगे और तब तक खड़े रहेंगे, जब तक कि उनका राष्ट्रगीत या राष्ट्रगान पूरा
नहीं हो जाता।
कहने का तात्पर्य, एक सभ्य एवं देशभक्त
व्यक्ति, समाज या कौम अपने दुश्मन देश के भी राष्ट्रगीत के प्रति सम्मान की भावना
प्रदर्शित करेगा।
...और अगर कोई व्यक्ति, समाज या कौम अपने ही देश के राष्ट्रगीत के
प्रति असम्मान की भावना मन में रखे, तो न केवल इसे जहालत की पराकाष्टा समझनी
चाहिए, बल्कि उसकी देशभक्ति को भी सन्देह के घेरे में रखा जाना चाहिए!
***
पुनश्च:
मेरी उपर्युक्त कल्पनिक स्थिति में सभी भारतीय
शामिल हैं, चाहे वे किसी भी उपासना पद्धति को मानने वाले
हों। मुझे लगता है, जब भी ऐसी काल्पनिक स्थिति पैदा होगी, सारे भारतीय सावधान की मुद्रा में खड़े हो जायेंगे- चाहे
राष्ट्रगीत/राष्ट्रगान/राष्ट्रधुन इजरायल की हो, या अरब की; या फिर चीन की हो, या अमेरिका की।
बेशक, दूसरे देश वाले
भी ऐसा ही करेंगे- अगर भारत का राष्ट्रगीत/राष्ट्रगान/राष्ट्रधुन गाया/बजायी जा
रहा हो- भारतीय सावधान में खड़े हों, तो दूसरे देशों
के नागरिक भी सावधान में खड़े हो जायेंगे।
क्योंकि यही तो सुसभ्य, सुशिक्षित, सुसंस्कृत होने
की पहचान है! वर्ना काहे की सभ्यता, काहे की शिक्षा
और काहे का संस्कार!
जो व्यक्ति, समाज या कौम ऐसा
नहीं कर पाता है- बहाना चाहे कोई भी हो- बहाने तो एक हजार खोजे का सकते है, उसकी सभ्यता, उसकी शिक्षा,
उसके संस्कार, उसकी देशभक्ति किस काम की- किस दिन के लिए?
बात धर्म की नहीं है- धर्म तो ऐसा विषय है, जिसका जिक्र करना मैं कभी पसन्द ही नहीं करता। मैं बात
"राष्ट्रीयता" की कर रहा हूँ, सभ्यता-संस्कृति
की कर रहा हूँ, शिक्षित और देशभक्त होने की कर रहा हूँ।
ओलिम्पिक में कभी ऐसा हुआ, कि पुरस्कार वितरण के दौरान सोवियत संघ की राष्ट्रधुन
बज रही हो और पोडियम पर खड़ा अम्ररिकी खिलाड़ी हिल-डुल रहा हो? या अमेरिकी
राष्ट्रधुन के दौरान रूसी खिलाड़ी हिल-डुल रहा हो? ऐसा कभी नहीं
होता!
राष्ट्रगीत/राष्ट्रगान/राष्ट्रधुन किसी भी देश की
हो, हर सभ्य, शिक्षित, संस्कृत, देशभक्त व्यक्ति, समाज और कौम का फर्ज बनता है कि उसके प्रति सम्मान की भावना
प्रदर्शित करे- फिर चाहे वह गीत, गान, या धुन दुश्मन
देश की हो, या किसी छोटे-कमजोर देश की, या अपने देश की।
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