शनिवार, 6 अक्टूबर 2012

व्यवस्था परिवर्तन का “दूसरा” मौका- 29 अक्तूबर 2012




पिछले डेढ़ साल में जो भी आन्दोलन हुए, वे किसी एक व्यक्ति के आह्वान पर हुए और उनमें ज्यादातर पढ़े-लिखे निम्न-मध्यम एवं मध्यम वर्ग के लोग शामिल हुए थे
      अगले 20-25 दिनों में जो आन्दोलन सुर्खियों में छाने वाला है, उसमें आम लोग शामिल हैं और यह एक संस्था के आह्वान पर शुरु हुआ है।
      2 अक्तूबर को ग्वालियर मेला-मैदान से गरीबों-किसानों का जत्था रवाना हो चुका है- ‘एकता परिषद’ के नेतृत्व में। 2007 में सरकार इस परिषद को एकबार छल चुकी है- अब शायद दुबारा छले जाने का मौका यह परिषद सरकार को न दे।
      26 राज्यों के किसान इस कूच में शामिल हैं। जैसे-जैसे यह मोर्चा आगे बढ़ रहा है, लोग जुड़ रहे हैं और कारवाँ बड़ा होते जा रहा है। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा से होते हुए यह कूच 29 अक्तूबर को दिल्ली पहुँचेगा। इसमें शामिल लोग दिन में 15-20 किलोमीटर चलते हैं और रास्ते में खाना बनाते हैं। उम्मीद की जा सकती है कि दिल्ली पहुँचने तक इस कूच में एक लाख से ज्यादा लोग शामिल हो चुके होंगे।
      अब अगर अरविन्द केजरीवाल से लेकर अन्ना हजारे तक और स्वामी रामदेव से लेकर जेनरल वी.के. सिंह तक आम लोगों के इस कूच को समर्थन दे सकें, तो यह आन्दोलन न केवल राष्ट्रव्यापी रुप ले सकता है, बल्कि निरंकुश एवं अहंकारी सत्ताधारियों को आम जनता के हित में फैसले लेने के बाध्य कर सकता है। अगर राजनेता न झुके, तो वर्तमान व्यवस्था को हटाकर एक नयी राजनीतिक-आर्थिक-सामाजिक व्यवस्था कायम करने के बारे में भी सोचा जा सकता है। (ध्यान रहे- जिन्दा कौमें पाँच साल इन्तजार नहीं करतीं!)  
      मगर सवाल यह है कि मध्यम वर्ग के लोग इन गरीबों के साथ खड़े होंगे? कारों तथा अंगरक्षकों को छोड़कर अन्ना हजारे, स्वामी रामदेव और जेनरल वी.के.सिंह सड़कों पर पैदल चलना, सड़कों पर बने भोजन को खाना तथा सड़कों पर ही रात बिताना पसन्द करेंगे?? पढ़े-लिखे इण्डियन लोग दिल्ली की सड़कों पर इन गरीब भारतीय लोगों की जुलूस को देखकर नाक-भौं सिकोड़ना छोड़कर इनके दुःख-दर्द को अपना दुःख-दर्द समझेंगे???
      मैं अपनी तरफ से यही कहना चाहूँगा कि 19 अगस्त 2011 के दिन हम व्यवस्था परिवर्तन का एक मौका खो चुके हैं... और अब 29 अक्तूबर 2012 को नियति हमें दूसरा मौका देने जा रही है- इस दिन सारे देशभक्त भारतीय एकजुट हो सकें, तो देश की तकदीर बदली जा सकती है...  

पुनश्च: 
खबर है कि अक्तूबर के बीच में ही सरकार तथा आन्दोलनकर्ताओं के बीच आगरा में समझौता हो गया और "दिल्ली-कूच" को "स्थगित" कर दिया गया. अगर सरकार वादे से मुकरती है, तो आगरा से फिर दिल्ली के लिए कूच किया जायेगा. क्या सरकार से वादा निभाने की उम्मीद की जाय? क्या सरकार अगस्त'11 में "लोकपाल" गठन का भी वादा नहीं किया था??  

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