शनिवार, 27 अक्टूबर 2012

आर्थिक-नीतियों के मामले में काँग्रेस-भाजपा एक है...



वर्षों पहले, जब इण्टरनेट का जमाना नहीं था, तब मैं जनसत्ता में और बाद में अमर उजाला में खूब पत्र लिखा करता था और एक समय ऐसा भी आ गया था, जब मैं निश्चिन्त रहता था कि मेरा पत्र छपेगा ही!
      ऐसे ही एक पत्र में एकबार मैंने लिखा था कि ब्रजेश मिश्र, जसवन्त सिंह और यशवन्त सिन्हा को भविष्य में अपराधी के रुप में आधुनिक भारत के इतिहास में दर्ज किया जायेगा
      आज मुझे इस बात की याद इसलिए आयी कि आज ‘प्रभात खबर’ में मैं यशवन्त सिन्हा जी का व्याख्यान सुधारों को आम लोगों से जोड़ना होगा पढ़ रहा था। एक स्थान पर वे कहते हैं कि भविष्यनिधि पर ब्याज घटाकर उन्होंने मुद्रास्फीति में कमी लायी, मगर फिर भी, विरोधी उन्हें अपराधी के रुप में पेश करने में सफल रहे।
सिन्हा जी, सरकारी फिजूलखर्ची में कमी लाकर आपने अगर मुद्रास्फीति में कमी लायी होती, तो भाजपा न तो 2004 में चुनाव हारती और न ही 2009 में। मगर आपने पी.एफ. पर मिलने वाले ब्याज को घटाया। आपने किरासन का दाम बढ़ाया, आपने अन्यान्य जरूरी जिन्सों का दाम बढ़ाया। क्यों? क्योंकि आपने सांसदों का वेतन जो तीनगुना बढ़ा दिया था.... याद है? इस तीनगुना बढ़े वेतन के लिए पैसा जुगाड़ करने के लिए ही तो आपने मुनाफा कमाने वाले सरकारी उपक्रमों का विनिवेश यानि निजीकरण शुरु किया था! कुछ याद है कि आपने सरकारी नौकरियों में 33 प्रतिशत कटौती का सख्त आदेश जारी किया था- 3 रिटायर होने वाले के बदले 1 ही भर्ती की जानी थी!
      ***
      मैंने कई बार यह लिखा है कि सत्ता पाने के बाद आर्थिक नीतियों के मामले में भाजपा न केवल दूसरी काँग्रेस, बल्कि काँग्रेस से भी बीस साबित होगी। मैं जानता हूँ कि इस आभासी दुनिया के मेरे बहुत-से साथियों को मेरा यह विचार तल्ख लगेगा। मगर मेरा मन कहता है कि मैं सही हूँ। 2014 में अगर भाजपा की (या भाजपा के नेतृत्व में) सरकार बनती है, तो आर्थिक उदारीकरण को बहुत ही आक्रामक तरीके से लागू किया जायेगा। चुनाव से पहले जारी होने वाले घोषणापत्र में इस सम्बन्ध में गोलमोल घोषणायें की जायेंगी। अगर नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बनते हैं, तो वे भी पार्टी-लाईन के खिलाफ नहीं जायेंगे और उदारीकरण को जोर-शोर से लागू करेंगे, जो इस देश में तथा सारी दुनिया में सिर्फ और सिर्फ आर्थिक विषमता बढ़ा रहा है, और कुछ नहीं।
      मेरी बात पर यकीन नहीं है, तो मैं यशवन्त सिन्हा के उपर्युक्त व्याख्यान से तीन पंक्तियाँ यहाँ उद्धृत कर देता हूँ:-
      लेकिन क्या ऐसे अनुभव (2004 की हार) सुधारों के प्रति मेरी प्रतिबद्धता को कम कर देंगे? हरगिज नहीं। चुनावी फायदों से ज्यादा महत्वपूर्ण राष्ट्रीय हित हैं। अगर मुझे दुबारा मौका मिले, तो इन सुधारों को और भी जोश-खरोश से लागू करूँगा।
      कृपया सिन्हा जी के इस विचार को भाजपा की पार्टी लाईन ही समझें- भले चुनाव से पहले उनके नेता मुँह से कुछ भी बोलें।
      ***
      साथियों मेरी बात मानिये- 1. काँग्रेस देश का बेड़ा गर्क कर रही है; 2. भाजपा दूसरी काँग्रेस बन चुकी है; 3. अन्ना-रामदेव इत्यादि आदर्शवादी बातें करते हैं, मगर सत्ता की बागडोर थामने से कतराते हैं; 4. केजरीवाल वगैरह सबकी पोल तो खोल रहे हैं, मगर उनके पास न कोई आर्थिक नीति है देश के लिए और न ही कोई राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय नीति।
      इन सबके बदले में आपलोग दस वर्षों की तानाशाही की मेरी अवधारणा का समर्थक बनिये... इसी में देश का भला है!
      (अगर आपने इस तानाशाही का घोषणापत्र अब तक नहीं देखा है, तो एकबार देख सकते हैं- http://jaydeepmanifesto.blogspot.in/

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