शुक्रवार, 11 जनवरी 2013

बलात्कार: पुरुष की सहज वृत्ति? हर्गिज नहीं!


पिछले दिनों सभी (दुहरा दूँ- सभी!) राजनीतिक दलों के नेता-प्रतिनिधियों की ओर से; जातिवादी पंचायतों के प्रतिनिधियों की ओर से; भारतीय सभ्यता-संस्कृति के स्वयंभू संरक्षक की ओर से; और साधू महात्माओं-मौलवियों की ओर से महिलाओं के साथ होने वाले बलात्कार के मुद्दे पर जो वक्तव्य आये हैं, उन सबका सारांश निकालने पर कुछ यूँ बनेगा-  
“बलात्कार करने वाले पुरुष का कोई "दोष" नहीं होता- यह तो उसकी सहज एवं स्वाभाविक प्रवृत्ति है; सारा दोष लड़कियों, बच्चियों, महिलाओं का होता है, क्योंकि वे- 
1.     महानगरों में रहती हैं
2.       आधुनिक जीवन-शैली अपनाती हैं
3.     पाश्चात्य कपड़े पहनती हैं
4.     सिनेमा-टीवी देखती हैं और इण्टरनेट से जुड़ती हैं,
5.     सूर्यास्त के बाद घरों से निकलती हैं
6.     ब्वॉयफ्रेण्ड रखती हैं
7.     घूँघट/बुर्का नहीं करती हैं, इत्यादि-इत्यादि...” 

यह एक खतरनाक सोच विकसित हो रही है। अफसोस, कि बहुत-सी महिलायें भी इसका विचारधारा का समर्थन करने लगी हैं।
जबकि सच्चाई यह है कि पुरुष को अपनी पत्नी तथा 'नगरवधू' के अलावे किसी और महिला के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाने का अधिकार ही नहीं है! 
अब आप यह सवाल मत उठाईये कि गाँवों में भी दुष्कर्म होते हैं, नन्हीं बच्चियों के साथ भी दुष्कर्म होते हैं, घूँघट करने- साड़ी पहनने वाली महिलाओं के साथ भी दुष्कर्म होते है, और विक्षिप्त महिलाओं के साथ भी दुष्कर्म होते हैं, जिनका उपर्युक्त बुराईयों (उनकी नजर में) से कोई सम्बन्ध नहीं होता।
अन्य दल वाले हो सकता है कि इन प्रश्नों के जवाब में गाली-गलौच करने लगें और जो भारतीय संस्कृति की रक्षा करने वाले लोग हैं, वे कोई-न-कोई तर्क खोज कर आपको निरुत्तर कर ही देंगे! 
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