सन्दर्भ नं. 1:
कुछ समय पहले एक देश में विश्व का जघन्यतम बलात्कार हुआ था। अगर वहाँ का सर्वोच्च
न्यायालय चाहता, तो ऐसा निर्देश दे सकता था कि चूँकि यह एक अ-साधारण मामला है, अतः
इसकी सुनवाई के दौरान "बालिग-नाबालिग" का मुद्दा नहीं उठाया जायेगा। अगर
कोई आरोपित नाबालिग है भी, तो अपराध की जघन्यता एवं वीभत्सता को देखते हुए उसे
किशोर-न्यायालय में नहीं भेजा जायेगा, बल्कि सभी आरोपितों पर सामान्य अदालत में ही
मुकदमा चलेगा। ..मगर वहाँ के सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसा कोई निर्देश नहीं जारी किया।
सन्दर्भ नं. 2:
उस देश के किशोर-न्यायालय ने एक आरोपित को स्कूल में दर्ज
जन्मतिथि के आधार पर नाबालिग घोषित कर दिया; जबकि पुलिस जाँच में यह साबित हो गया
है कि उसी आरोपित ने वहशीपन की सारी हदें पार की थीं। मगर चूँकि उसकी उम्र 18 साल
से छह महीने कम है, सो अब उसपर किशोर-न्यायालय में मुकदमा चलेगा और वह एक तरह से
बाइज्जत बरी हो जायेगा। सभी जानते हैं कि उम्र-निर्धारण की एक
"वैज्ञानिक" पद्धति आज की तारीख में मौजूद है (अस्थि-मज्जा, बोन-मैरो की
जाँच), मगर फिर भी, वहाँ की अदालत ने स्कूल में दर्ज जन्मतिथि को सही माना। यह भी
सभी जानते हैं कि उस देश में आम तौर पर स्कूल में नाम लिखवाते समय बच्चे की उम्र
दो-ढाई साल तक घटाकर ही माता-पिता दर्ज करवाते हैं।
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कुल-मिलाकर, पहली
बात यह है कि दुनिया के इस जघन्यतम बलात्कार में बालिग-नाबालिग का मुद्दा उठाया जाना
ही नहीं चाहिए था, और दूसरी बात यह है कि मुद्दा उठ गया, तो वैज्ञानिक तरीके से
उम्र का निर्धारण होना चाहिए था।
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एक तीसरी बात भी
है। उस देश के वासियों के अलावे दुनिया के सभी देशों की और यू.एन.ओ. की नजरें भी
इस बलात्कार की न्यायिक प्रक्रिया पर टिकी हैं- सभी देखना चाहते हैं कि इन
दरिन्दों को कितनी जल्दी और कितना कठोर दण्ड मिलता है!
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इन सबके बावजूद उस
देश की न्यायपालिका ने उपर्युक्त दोनों फैसले लिये। ऐसा करके वह अपने देशवासियों
को तथा विश्व-बिरादरी को क्या सन्देश देना चाहती है- मुझे नहीं पता। मगर मेरी
सामान्य बुद्धि इन दोनों फैसलों से जो सन्देश ग्रहण कर रही है, वह इस प्रकार है-
1.
उस देश की न्यायपालिका एक
"जड़बुद्धि" व्यवस्था या संस्था है, जो
याची/पीड़ित को "न्याय" दिलाने, अभियुक्त को दोषी या निर्दोष साबित करने
तथा दोषी को कठोरतम दण्ड देना नहीं चाहती। उसकी रुची सिर्फ इस बात में होती है कि
न्यायिक-"प्रक्रियाओं" का अक्षरशः पालन हो रहा है, या नहीं! दूसरी बात,
वह कानून के शब्दों के "भावार्थ" को एक रत्ती भी नहीं समझती है, वह
सिर्फ "शब्दार्थ" समझती है!
(जड़बुद्धि
का एक उदाहरण कम्प्यूटर है। वह अपने प्रोसेसर वगैरह में दर्ज निर्देशों तथा मेमोरी
वगैरह में डाली गयी सूचनाओं के आधार पर निर्णय लेता है। किसी भी परिस्थिति में वह
"लीक से हटकर" फैसला नहीं ले सकता; क्योंकि उसमें "चेतना"
नहीं होती। उस देश की न्यायपालिका ने भी "लकीर का फकीर" बने रहकर अपनी
बुद्धि के "जड़" होने का प्रमाण दे दिया है! कभी कम्प्यूटर पर अनुवाद
कार्य करके देखा जाय, कि शब्दों का "भावार्थ" नहीं समझने पर अनुवाद-कार्य
का कैसा गुड़-गोबर होता है!)
2.
उस देश की न्यायपालिका आज भी उन्नीसवीं
सदी की औपनिवेशिक मानसिकता में जी रही है! हालाँकि बीसवीं
सदी के "टाइपराइटर" को वहाँ अपना लिया गया है, मगर "मानसिक"
रुप से वह उन्नीसवीं सदी में ही जी रही है। उस न्यायपालिका को "विज्ञान"
तथा "वैज्ञानिक"-जैसे शब्दों से सख्त चिढ़ है!
(तभी तो उस
देश में आज भी बलात्कार की शिकार पीड़िता के शरीर के अन्दर दो उँगलियाँ डालकर इस
बात की जाँच की जाती है कि कहीं पीड़िता सम्भोग करने की अभ्यस्त तो नहीं है! दुनिया
के किसी भी सभ्य देश में ऐसी घिनौनी, नीच, अवैज्ञानिक जाँच नहीं होती, मगर उस देश
में होती है और वह भी "कानूनन"!)
3.
उस देश की न्यायपालिका स्वतंत्र नहीं है,
बल्कि "सत्ता"-धारियों के इशारों पर कार्य करती है। कुछ "खास
कारणों" से उस देश के सत्ताधारी उस तथाकथित नाबालिग आरोपित को बचाना चाहते हैं। उस
देश का प्रशासन और पुलिसबल तो पहले ही सत्ताधारियों का चापलूस बन गया है, अब वहाँ
की न्यायपालिका ने भी "खुले-आम" खुद को सत्ता का चापलूस साबित कर दिया
है! हर हाल में उस वहशी दरिन्दे को बचाने के प्रयास चल रहे हैं।
(उन
"खास कारणों" का यहाँ जिक्र नहीं किया जा रहा है क्योंकि देश-दुनिया की
जो पब्लिक है, वह सब देख रही है, सुन रही है, जान रही है और समझ रही है!)
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दिल्ली गैंगरेप:नाबालिग आरोपी की हैवानियत की कहानी
जवाब देंहटाएं(http://khabar.ibnlive.in.com/news/90701/1)
" दिल्ली गैंग रेप विक्टिम की मां बलिया में अपने घर के छोटे से कमरे में गुमसुम हैं। बेटी से हैवानियत के सदमे से वह अभी भी नहीं निकल पाई हैं। उनके पति और बेटे तेरहवीं में लगे हुए हैं। हॉस्पिटल में पुलिस को जब अपना बयान दे रही थीं, तो वह उसके पास ही मौजूद थीं। बेटी की बातें उनके दिमाग में अभी भी घूम रही हैं। अपनी बेटी के गैंग रेप के एक आरोपी को नाबालिग बताने पर उनका गुस्सा फूट पड़ता है।
जवाब देंहटाएंवह कहती हैं, 'जिस लड़के ने मेरी बेटी को लोहे की रॉड से पीटा, उसे हर कोई नाबालिग कह रहा है। जब मेरी बेटी ने विरोध किया था तो उसने 'साली मर!' चीखते हुए उसके शरीर में रॉड घुसा दी थी और रॉड के साथ आंतें भी बाहर निकाल ली थीं। इस पर भी कानून उसे नाबालिग कह रहा है।'"
(https://www.facebook.com/HamariDamini/posts/244662425667633)